वैदिक काल : आर्यों का राजनीतिक जीवन Notes

हेलो दोस्तों, स्वागत है, इस पोस्ट से हम आप को वैदिक काल का राजनीतिक जीवन  बारे में बताएंगे

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उत्तर वैदिक काल का राजनीतिक जीवन 

इस काल के राजनीतिक जीवन की जानकारी सामवेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद, ब्राह्मण, आरण्यक एवं उपनिषद् ग्रंथों से प्राप्त होती है। उत्तर वैदिक काल की राजनीतिक व्यवस्था में हमें निरंतरता एवं परिवर्तन दोनों के तत्व दिखाई देते हैं। इस काल में भी राजनीतिक व्यवस्था का स्वरूप राजतंत्रात्मक था किंतु राजा की शक्तियों में कुछ वृद्धि हो गई थी। इस काल में राज्याभिषेक के अलावा कुछ अन्य यज्ञ भी राजा यज्ञ के साथ जुड़ गए थे, जैसे राजसूय यज्ञ व वाजपेई यज्ञ ।

अब राजा की पहचान उसके कबीले के अतिरिक्त भूमि क्षेत्र से भी की जाने लगी थी। इस काल में राजा के पद का अंशतः देवी करण भी हो गया था।  ब्राह्मण में राजत्व की अवधारणा का प्रारंभिक उल्लेख प्राप्त होती है। अब राजा भारी भरकम उपाधियों भी धारण करने लगा था, जैसे सार्वजनिक सर्व भूमिपति, एकराट आदि। इस काल में भी राजा के मुख्य दो कार्य थे- प्रथम युद्ध में सेना का नेतृत्व करना एवं द्वितीय कबीले की रक्षा करना। किंतु अब युद्ध मुख्यतः गायों के लिए नहीं बल्कि उपजाऊ क्षेत्र में अधिकार करने के लिए होने लगे, उदाहरणार्थ-  दशराज्ञ युद्ध । उत्तर वैदिक काल में राजा निरंकुश नहीं, बल्कि प्रजा हितैषी ही होता था, क्योंकि

1) इस काल में राजा को यदीपि शुल्क एवं भाग नामक नियमित कर प्राप्त होने लगे थे, किंतु इनकी मात्रा बहुत कम (उत्पादन का 1/16) होती थी। Political system vedic period notes

2) इस काल में भी स्थाई सेना का निर्माण नहीं हुआ था।

3) इस काल में भी राजा की शक्ति पर अंकुश लगाने वाली कुछ संस्थाएं जैसे- सभा एवम् समिति होती थी। यदिपि ऋग्वैदिक काल की तुलना में उत्तर वैदिक काल में इनका महत्व कम हो गया था।

उत्तर वैदिक काल में प्रशासन की सबसे छोटी इकाई कुल ही थी। कुल के उपर ग्राम, ग्राम के ऊपर विश, विश के ऊपर जन एवम् जन के ऊपर जनपद नामक प्रशासनिक इकाई होती थी। उत्तर वैदिक काल में जनों के मिलने से जनपद का निर्माण हो गया था, उदाहरणार्थ पुरु व भरत जन के मिलने से  कुरू नामक जनपद और तुर्वश एवं कृवी जन के मिलने से पांचाल नामक जनपद का निर्माण । Political system vedic period notes

उत्तर वैदिक काल में प्रशासनिक अधिकारियों की संख्या में वृद्धि दिखाई देती है। इस काल में ऋग्वैदिक कालीन प्रशासनिक अधिकारियों के अतिरिक्त कुछ नवीन अधिकारियों की जानकारी प्राप्त होती है जैसे- संग्रहीत ( कोषाध्यक्ष) , भाग दूध ( कर संग्रह करता),  अशवाप ( धृत कीड़ा में राजा का मित्र) , पलागल ( वन का अधिकारी) आदि।

इस काल में भी न्यायिक प्रशासन के विषय में अधिक जानकारी प्राप्त नहीं होती है। संभवत अन्याय का सर्वोच्च अधिकारी राजा होता था, जो कि पुरोहित एवं सभा के सदस्यों की सहायता से न्याय करता था। इस काल में अपराध सिद्धि के लिए जल परीक्षा एवं अग्नि परीक्षा प्रचलित थी। दंड विधान ऋग्वैदिक काल के ही अनुरूप थे। 

उत्तर वैदिक काल में भी सैनिक प्रशासन की कम जानकारी प्राप्त होती है, क्योंकि इस काल में भी स्थाई सेना का निर्माण नहीं हुआ था। युद्ध के समय कबीलों के वयस्क को सेना में भर्ती कर लिया जाता था। ऐसी सेना को मिलिशिया कहा जाता था। 

इस प्रकार हम देखते हैं कि उत्तर वैदिक काल में यादिपी राजा के अधिकारों में वृद्धि हुई किंतु अभी भी वह निरंकुश नहीं हो सकता था । सभा एवं समिति का अस्तित्व बना हुआ था, किंतु उनके अधिकारों में कमी दिखाई देती है। प्रशासनिक अधिकारियों की संख्या में भी वृद्धि अवश्य हुई थी , किंतु अभी भी ये अधिकारी रक्त संबंध से ही जुड़े हुए थे।  इस काल में यादिपि प्रशासन की सबसे बड़ी इकाई के रूप में जनपद का उल्लेख मिलता है, किंतु सबसे छोटी इकाई कुल ही मानी जाती थी । साथ ही इस काल में भी न्यायिक प्रशासन पूर्व के समान ही बना रहा एवं स्थाई सेना का भी निर्माण नहीं हो सका था।  Political system vedic period notes

दोस्तों यह तो था वैदिक काल के राजनीतिक जीवन अगले विषय में हम आपको वैदिक काल के सामाजिक जीवन के बारे में बताएंगे तो बने रही Upsc Ias Guru .Com के साथ 🙂

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