हेलो दोस्तों, स्वागत है, इस पोस्ट से हम आप को वैदिक काल का सामाजिक जीवन बारे में बताएंगे
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इस काल के सामाजिक जीवन की जानकारी ऋग्वेद से प्राप्त होती है। ऋग्वैदिक काल का सामाजिक जीवन रक्त संबंध पर आधारित था, जिसका स्वरूप कबीलाई था। ऋग्वैदिक समाज समतामूलक समाज था। इसमें छुआछूत एवं जाति प्रथा का प्रचलन नहीं था। प्रायः सभी आर्य लोगों की सामाजिक स्थिति एक समान थी।
ऋग्वैदिक समाज में वर्ण व्यवस्था प्रचलित थी। वर्ण व्यवस्था का सर्वप्रथम उल्लेख ऋग्वैद के 10वे मंडल के पुरूषसुक्त में मिलता है। संपूर्ण समाज ब्राह्मण, क्षत्रिय वैश्य एवं शुद्र वर्ण में विभाजित था। किंतु इस काल में वर्ण व्यवस्था जन्म पर नहीं, बल्कि कर्म पर आधारित थी। उदाहरणार्थ – विश्वामित्र के पूर्वजों ने कई राज्यों की स्थापना की थी, अर्थात विश्वामित्र जन्म से क्षत्रिय वर्ण के थे , किंतु अपने कर्मों से वे ऋषि , अर्थात – ब्राह्मण वर्ण के माने गए। uttarvedic social life notes in hindi
ऋग्वैदिक समाज पितृसत्तात्मक समाज था, परिवार में पुरुष मुखिया का पुण्य नियंत्रण था। उसे परिवार के अन्य सदस्यों के नियमन व नियंत्रण का अधिकार था। किंतु सामान्यतः परिवार का मुखिया क्षमाशील एवं करुणाशील होता था । इस काल में संयुक्त परिवार का प्रचलन था। नाना, दादा, नाती, पोते आदि सभी के लिए एक ही संबोधन नप्तृ का प्रयोग किया जाता था।
उत्तर वैदिक समाज में वर्तमान की भी तुलना में स्त्रियों की दशा अच्छी थी इस काल में भी उन्हें पुनर्विवाह बहुपति विवाह व नियोग प्रथा का अधिकार था। इस काल में भी कुछ विदुषी स्त्रियों का उल्लेख मिलता होता है जैसे – मैत्रीय, कात्यायनी एवं गार्गी।
किंतु ऋग्वैदिक काल की तुलना में उत्तर वैदिक काल में स्त्रियों की दशा में गिरावट आई अब उन्हें उपनयन संस्कार एवं सभा में भाग लेने का अधिकार नहीं रहा इस काल में बाल विवाह भी होने लगे यहां तक कि मैत्रायणी संहिता में स्त्रियों की तुलना पासा- व सुरा जैसी बुराइयों से की गई है। उन्हें सम्पत्ति का अधिकार तो ऋग्वैदिक काल में भी प्राप्त नहीं था। uttarvedic social life notes in hindi
उत्तर वैदिक काल में दास प्रथा प्रचलित थी इस काल में दासों को केवल घरेलू कार्य में लगाया जाता था, कृषि कार्यों में नहीं। इस काल में भी विवाह को एक पवित्र संस्कार माना जाता था तथा समाज में अनुलोम विवाह को ही मान्यता प्राप्त थी। इस काल में शिक्षा मौखिक रूप से ही दी जाती थी तथा अलग-अलग वर्ण के लिए अलग-अलग पाठ्यक्रम का प्रावधान था।
इस काल के खानपान में भी शाकाहारी एवं मांसाहारी भोजन दोनों का प्रचलन था, किंतु अब आर्य यव (जौ) के साथ- साथ गेहूं चावल उड़द नमक एवं मछली का भी सेवन करने लगे थे उस काल में भी गाय का मांस वर्जित था। इस काल में भी आर्यों का पहनावा एवं मनोरंजन के साधन ऋग्वैदिक काल के समान ही था।
उत्तर वैदिक काल एक महत्वपूर्ण विशेषता थी की गोत्र बहीगर्मन का प्रचलन यदपी गोत्र शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग ऋग्वेद में हुआ है, किंतु व्यवस्थित रूप से गोत्र प्रथा उत्तर वैदिक काल में स्थापित हुई। इस काल में ब्राह्मणों द्वारा अपने यजमानों को भी गोत्र बहीगर्मन किया जाना लगा था। इस काल में आश्रम व्यवस्था पूर्णत स्थापित नहीं हुई थी, क्योंकि हमें सर्वप्रथम जाबालि उपनिषद में चारों आश्रम (ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास) का उल्लेख प्राप्त होता है।
इस प्रकार उत्तर वैदिक काल के सामाजिक जीवन में जहां ऋग्वैदिक काल की कुछ विशेषताएं दिखाई देती है वहीं कुछ परिवर्तन के तत्व भी दिखाई देते हैं। वस्तुतः निरंतरता एवं परिवर्तन के यही तत्व सभ्यता के विकास के साथ साथ विकसित होते गए तथा आगे चलकर आधुनिक समाज की प्रमुख मान्यताएं बन गए। uttarvedic social life notes in hindi
यह तो थी ऋग्वैदिक काल में आर्यों का सामाजिक जीवन की जानकारी अगले पोस्ट में हम आपको उत्तर वैदिक काल का आर्थिक जीवन के बारे में जानकारी देंगे तो बने रहिए Upsc Ias Guru .Com के साथ 🙂