रैयतवाड़ी भू-राजस्व प्रणाली : कारण, विशेषताएं, गुण एवं दोष Notes

Hello दोस्तों, एक बार फिर से स्वागत है आपका Upsc Ias Guru .Com वेबसाइट पर पिछली पोस्ट में हमने आपको स्थायी बन्दोबस्त के बारे में बताया था, आज की पोस्ट में हम आपको रैयतवाड़ी प्रथा (Ryotwari System) के बारे में बताएंगे, तो चलिए शुरू करते हैं आज की पोस्ट

रैयतवाड़ी प्रथा (Ryotwari System)

रैयतवाड़ी व्यवस्था को लॉर्ड विलियम बैंटिक ने मद्रास तथा बम्बई के कुछ क्षेत्रों में लागू किया। इस व्यवस्था के अन्तर्गत सरकार ने लगान वसूल करने के लिए सीधे कृषकों (रैयतों) से सम्बंध किया। कृषकों को भूमि का स्वामी मान लिया गया और भूमि से सम्बन्धित सभी अधिकार उसे दे दिये गये। इस व्यवस्था के अन्तर्गत सरकारी अधिकारी सीधे किसानों से लगान वसूल करते थे। रैयतवाड़ी बन्दोबस्त का प्रमुख उद्देश्य जमीन से उत्पन्न उपज का अधिक से अधिक भाग लगान के रूप में सरकार को प्राप्त कराना था।इस बन्दोबस्त को लागू करते समय यह तर्क दिया गया कि जिन क्षेत्रों में रैयतवाड़ी प्रथा लागू की गयी उन क्षेत्रो में कोई भी बड़ा जमींदार नहीं था, जिससे सरकार समझौता करती। स्थायी बन्दोबस्त के अन्तर्गत जमींदार लोग लगान का अधिकांश भाग हड़प लेते थे जिससे सरकार को नुकसान होता था। जमींदार लोग अधिक से अधिक लगान करने के लिए जनता पर अत्याचार करते थे। इसके परिणामस्वरूप किसानों की स्थिति गुलाम के समान हो गयी थीं, इसी कारण रैयतवाड़ी प्रथा को लागू किया गया। raiyatwari vyavastha


किन्तु इस व्यवस्था से भी किसानों को कोई लाभ नहीं हुआ, क्योंकि किसानों पर लगान की दर अधिक थी। इस संदर्भ में आर.सी.दत्त का कहना था, “इस बन्दोबस्त के फलस्वरूपासरकार के नियंत्रण का स्वरूप वही हो गया जो स्वामी का उसके दास पर होता है और कम्पनी उनसे वे सारे साधन भी छीन सकती थी जो उन्हें जीवित रखने के लिए अनिवार्य थे।’ कम्पनी के अधिकारी ने किसानों से कानूनी और गैर कानूनी ढंग से अधिक से अधिक लगान वसूल करने के लिए अनेक अत्याचार किये। लगान की ऊँची रकम के देने में यदि किसान असमर्थ रहते थे, तो सरकारी अधिकारियों द्वारा उन पर अनेक अत्याचार किये जाते थे। अत्याचारियों के भय से बहुत से किसान अपना घर और जमीन छोड़कर दूसरे क्षेत्रों में चले जाते, इसके परिणामस्वरूप भूमि का बहुत बड़ा हिस्सा बंजर रह जाता था। इस स्थिति की जब शिकायत सरकार को मिली तो उसने एक जाँच आयोग नियुक्त किया जिसने अपनी रिपोर्ट में स्पष्टतः यह स्वीकार किया कि लगान वसूल करने में किसानों पर अत्याचार किये जाते थे और किसानों के पास इस अत्याचार के विरुद्ध आवाज उठाने का कोई साधन नहीं था। raiyatwari vyavastha


14 अगस्त, सन् 1855 को मद्रास सरकार ने एक विज्ञप्ति जारी की जिसमें यह स्वीकार किया गया कि करों के भारी दबाव के कारण कृषि के विकास में अवरोध पैदा हो रहा है और भूमि का एक बड़ा भाग उजाड़ हो चुका है। किसान लोग न तो अपने लिए भरपेट खाना जुटा पाते हैं और न ही आय के साधन इससे स्पष्ट है कि रैयतवाड़ी बन्दोबस्त किसानों के लिए हानिकारक सिद्ध हुआ, लगान देने के पश्चात् उनके पास इतना धन नहीं बचता था कि वे कृषि के उत्पादन को बढ़ाने में अपना कोई योगदान कर सकें। सरकार की अन्यायपूर्ण नीति के कारण किसानों को सूखे और अकाल के समय भी लगान देना पड़ता था। इसके लिए साहकारों से ऋण लेना पड़ता था। इस व्यवस्था में किसानों की जमीन साहूकारों के हाथ में चली गयी और वे जमींदार बन गये। किसान साहकारों के पास अपनी जमीन गिरवी रखकर उनसे ऋण लेते थे और ऋण न चुका पाने की स्थिति में साहूकारों को भूमि पर स्वामित्व प्राप्त हो जाता था और चूँकि कृषक के पास आजीविका का एकमात्र साधन कषि था इसलिए वह भमि पर फसल उगाने वाला मजदूर बनकर रह जाता था। इस स्थिति में किसानों को साहूकारों की हर शर्त माननी पड़ती थी। अत: उसकी स्थिति गुलाम से अधिक नहीं थी। raiyatwari vyavastha

यह तो थी रैयतवारी की जानकारी के नोट्स अगली पोस्ट में हम आपको महालवाड़ी बन्दोबस्त (Mahalwari Setlement) के बारे में जानकारी देंगे तो बने रहिए Upsc Ias Guru .Com के साथ 🙂

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