रजिया (1236-1240 ई.) | गुलाम वंश | दिल्ली सल्तनत Notes

Hello दोस्तों, स्वागत है आपका फिर से हमारी इतिहास नोट्स की सीरीज में इस से पहले हमने आपको आराम शाह (1210-11 ई.)| गुलाम वंश | दिल्ली सल्तनत Notes के बारे में विस्तार से बताया था, इस पोस्ट से हम आप को रजिया (1236-1240 ई.) के स्रोत के बारे में बतायेगे जिससे आपको  मध्यकालीन भारत के इतिहास की जानकारी मिल सके और आपकी तैयारी को और भी बल मिल सके तो चलिए शुरू करते है आज की पोस्ट 🙂

रजिया (1236-1240 ई.) | गुलाम वंश | दिल्ली सल्तनत Notes Razia Sultan History in Hindi


इल्तुतमिश के समय से दिल्ली में अमीरों तथा अधिकारियों ने रजिया के उत्तराधिकार का विरोध किया। लेकिन शाहतूकर्ण तथा वजीर कमालुद्दीन जुनैदी से अमीर लोग घृणा करने लगे और वे दिल्ली में शान्ति तथा व्यवस्था चाहते थे, इसलिए उन्होने रजिया का साथ दिया। रजिया को राजगद्दी तो प्राप्त हो गयी लेकिन उसका मार्ग काँटों से भरा हुआ था। उसका सिंहासन की सेज न होकर काँटों का ताज था। Razia Sultan History in Hindi

रजिया की प्रमुख चनौतियाँ

  1. प्रतिद्वन्द्वियों की समस्या – रजिया के प्रमख प्रतिद्वन्दी उसके भाई के समर्थक थे, जिनके विद्रोह की सम्भावना थ। वे रजिया को परास्त करके ऐसे व्यक्ति को गद्दी पर बैठाना चाहते थे जो दुर्बल हो और उनकी इच्छानुसार कार्य कर सके। षड्यन्त्रकारियों में इख्तियारुद्दीन आइतीन, भटिण्डा का शासक मलिक अल्तूनिया तथ लाहौर का सूबेदार कबीर खां प्रमुख थे।
  2. राजपूतों के विद्रोह – तुर्कों की अस्थिरता का लाभ उठाकर राजपूतों ने भी विद्रोह का झण्डा बुलन्द किया और उन्होंने रजिया को हटाकर पुनः खोई हुई सत्ता प्राप्त करने का प्रयत्न किया।
  3. समर्थन का अभाव – रजिया को दिल्ली के सभी नागरिकों तथा अधिकारियों का समर्थन प्राप्त नहीं था। उसे केवल विद्रोही अधिकारियों तथा साधारण जनता का ही समर्थन प्राप्त था। प्रधानमन्त्री जुनैदी तथा अन्य तुर्क सरदारों ने सदैव रजिया का विरोध किया। वे अपनी इच्छानुसार सम्राट का चुनाव करना चाहते थे इससे अन्य प्रान्तीय सम्राटों को भी विद्रोह करने के लिए प्रेरणा प्राप्त हुई।
  4. रजिया का नारी होना – रजिया के स्त्री होने के कारण अनेक तुर्क अमीर स्त्री के शासन में रहना पसन्द नहीं करते थे। वे रजिया को राजपद के लिए उपयुक्त नहीं समझते थे। कट्टर मुसलमान इसके प्रबल विरोधी थे क्योंकि एक स्त्री का सुल्तान होना मुस्लिम कानून और भावनाओं के विरुद्ध था। अत: वे उसका पतन चाहते थे। Razia Sultan History in Hindi

रजिया के कार्य

  1. विद्रोहों का दमन – सर्वप्रथम रजिया ने अपने विद्रोहियों का दमन करने का निश्चय किया।बदायुँ, मुलतान, हासी और लाहौर के सूबेदार तथा फिरोज का वजीर निजामुलमुल्क जैदी मिलकर दिल्ली की ओर बढ़े और रजिया को राजधानी में घेर लिया। विद्रोहियों में आपस में एकता नहीं थी और वे एक-दूसरे से ईर्ष्या और द्वेष रखते थे। रजिया ने इसका लाभ उठाकर विद्राहियों में फूट पैदा कर दी और वे आपस में लड़कर छिन्न-भिन्न हो गये। इसी अवसर पर जिया ने उन पर आक्रमण कर दिया और दो को पकड़ कर कत्ल कर दिया। वजीर जुनैदी भाग खड़ा हआ और रास्ते में ही मिरमर की पहाडियों मे मर गया। इस विजय से रजिया की प्रतिष्ठा बढ़ गयी, अनेक प्रान्तीय शासकों ने आतंकित होकर रजिया की अधीनता स्वीकार कर ली। Razia Sultan History in Hindi
  2. राज्य के उच्च पदों में परिवर्तन – इसके पश्चात उसने अपनी सत्ता को दृढ़ बनाने के लिए राज्य के उच्च पदों में परिवर्तन किया। ख्वाजा मुहाजबुद्दीन को अपना वजीर नियुक्त किया। तुर्कों के स्थान पर अन्य मुसलमानों को उच्च पदों पर प्रतिष्ठित किया। उसने एक हब्सी याकूब को घुड़सवारों का सरदार नियुक्त किया। मलिक हसन को अपना प्रधान सेनापति नियुक्त किया। रजिया ने पर्दे का परित्याग कर दिया और दरबार में बैठकर फरियाद सुनने लगी। वह स्वयं विभिन्न विभागों की देखभाल करती थी। Razia Sultan History in Hindi
  3. राजपूतो पर विजय – दिल्ली की राजनैतिक अव्यवस्था का फायदा उठाकर राजपूतो ने रणथम्भौर पर पुनः अधिकार करने का प्रयास किया। रजिया ने एक सेना भेजकर मुसलमानों को मुक्त करवाया। ग्वालियर के दुर्ग का दुर्गापति रजिया के खिलाफ विद्रोह करने की कोशिश कर रहा था। रजिया ने उसे बन्दी बना लिया। रजिया का पतन रजिया का याकूब नामक हब्शी से विशेष अनुराग था जोकि तुर्की अमीरों को खटकता था। अतः तुर्की सरदारों ने रजिया को अपदस्थ करने की योजना बनायी। षड्यन्त्रकारियों का प्रधान नेता बदायूँ का शासक ऐतगीन था। सर्वप्रथम भटिण्डा के हाकिम अल्तूनिया ने विद्रोह का झण्डा बुलन्द किया। इसकी सूचना मिलते ही रजिया अपनी सेना के साथ भटिण्टा के बीच ऐतगीन तथा उसके कुछ साथियों ने याकूब का वध कर दिया और उसने अल्तूनिया से मिलकर को रजिया को बन्दी बना लिया। बंदी बनाये जाने की सूचना मिलते ही इल्तुतमिश का तीसरा लड़का बहराम गद्दी पर बैठा दिया गया। विद्रोही सरदारों ने उसे सम्राट स्वीकार कर लिया। लेकिन वास्तविक सत्ता तुर्की अमीरों के हाथ में रही। विद्रोही तुर्की सरदारों को पारितोशिक भी दिए गये लेकिन अल्तूनिया को कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ, इसलिए अल्तूनिया असन्तुष्ट था।

सुल्तान ने अपनी स्थिति को दृढ़ बनाने के लिए ऐतगीन का वध कर दिया और शासन की सत्ता पूर्णरूप से अपने हाथ में ले ली। उधर रजिया ने अल्तूनिया को अपने रूप-सौन्दर्य से मुग्ध करके उससे शादी कर ली थी। अल्तूनिया ने रजिया की खोई हुई प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त करने के लिए दिल्ली पर आक्रमण कर दिया लेकिन वह पराजित हुआ और अपनी पत्नी रजिया के साथ भाग खड़ा हुआ। रास्ते में कैथल के पास 13 अक्टूबर, 1240 ई. को कुछ हिन्दु डाकुओं ने उन दोनों का वध कर दिया।

रजिया की असफलता के कारण –

यद्यपि रजिया इल्तुतमिश के उत्तराधिकारियों में सबसे अधिक योग्य थी। परन्तु वह शासन चलाने में असफल रही। इसके निम्न कारण थे

  1. रजिया का नारी होना – मध्यकालीन इतिहासकारों ने रजिया की असफलता का सबसे बड़ा कारण उसका स्त्री होना माना है। यदि वह पुरूष होती तो निश्चय ही अधिक सफल होती क्योंकि तब अमीर लोग उसका विरोध करने का साहस न कर पाते। याकूब के प्रेम की न तो अफवाह फैली होती और न तूर्की अमीरों को इसके आधार पर षड्यन्त्र करने का अवसर प्राप्त होता। Razia Sultan History in Hindi
  2. तुर्क सरदारों का स्वार्थ – असफलता का दूसरा कारण तुर्क सरदारों का स्वार्थ और उनका सशक्त होना था। अमीरो प्रभाव इतना अधिक था कि उनका विरोध करके शासन करना कठिन कार्य था। उसने तुर्को की शक्ति को एक सिमा तक घटा दिया और उनके खिलाफ एक प्रतिद्वन्द्वी दल को संगठित कर रही थी,परन्तु दुर्भाग्यवश उसे समय नहीं मिला। Razia Sultan History in Hindi
  3. रजिया की स्वेच्छाचारिता – रजिया ने निरंकुश तथा स्वेच्छाचारी शासन स्थापित करने का प्रयास भी किय। तुर्की अमीरो की जिन्होंने ऐबक के शासन काल में ही राज्य की सारी शक्ति अपने हाथ में कर ली थी तथा अपने सैनिक भाईचारे की भावना में बाँध लिया था, एक नारी का स्वेच्छाचारी तथा निरंकश शासन असहज थ। Razia Sultan History in Hindi
  4. जनता के सहयोग का अभाव – रजिया को भारतीय जनता का सहयोग प्राप्त करने की सुविधा न मिल सकी। उस समय के सुल्तानों के लिए भारतीय जनता का सहयोग तथा समर्थन प्राप्त करना कठिन था, क्योंकि वे सब विदेशी थे।
  5. इल्तुतमिश के वयस्क पुत्रों का जीवित रहना – इल्तुतमिश के पुत्रों का जीवित रहना रजिया के लिए खतरनाक सिद्ध हुआ। इससे षड्यन्त्रकारियों को प्रोत्साहन प्राप्त हुआ। वे उनकी आड़ में रजिया पर प्रहार करने लगे।
  6. केन्द्रीय सरकार की दर्बलता – स्थानीय हिन्दुओं के निरन्तर विद्रोह को दबाने के लिए सुल्तानों को अपने प्रान्तीय शासकों को पर्याप्त मात्रा में सैनिक तथा प्रशासनिक अधिकार देने पड़ते थे। अतएव यह हाकिम कभी भी गठबन्धन कर केन्द्रीय सरकार के खिलाफ विद्रोह कर देते थे।
    इतिहासकार मिनहाजुद्दीन सिराज लिखता है कि वह महान् शासक, बुद्धिमान, ईमानदार, उदार, शिक्षा की पोषक न्याय करने वाली प्रजापालक तथा बुद्धि प्रिय थी। “उसमें वे सभी प्रशंसनीय गुण थे जो एक राजा में होने चाहिए। परन्तु अन्त बड़े सन्ताप के साथ वह उसके चरित्र के विषय में लिखता है, “ये सब श्रेष्ठ गुण उसके किस काम के थे।”

लेकिन इन सभी गुणों के बावजूद उसका पतन हुआ। कुछ विद्वानों का मत है कि उसके पतन का प्रमुख कारण उसका स्त्री होना था क्योंकि तुर्क अमीर स्त्री के शासन में रहना पसन्द नहीं करते थे। लेकिन रजिया के पतन का प्रमुख कारण तुर्की अमीर महत्वाकांक्षा थी। तुर्की अमीर राजसत्ता पर अपना आधिकार जमाना चाहते थे और सुल्तान को अपने इशारों पर चल बाध्य करना चाहते थे। अतः वे रजिया के विरुद्ध सदैव षड्यन्त्र रचते रहे और अन्त में उसे बन्दी बना लिया। Razia Sultan History in Hindi

यह तो थी रजिया (1236-1240 ई.) की जानकारी के नोट्स अगली पोस्ट में हम आपको गयासुद्दीन बलबन (1265-1287 ई.) के बारे में जानकारी देंगे तो बने रहिए Upsc Ias Guru .Com के साथ 🙂

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