छठी शताब्दी ईसा पूर्व के दौरान आर्थिक सामाजिक व धार्मिक स्थिति

हेलो दोस्तों स्वागत है आपका Upsc Ias Guru .Com की वेबसाइट पर फिर से पिछले कुछ पोस्टों से हम आपको प्राचीन भारत के नोट्स को टू द प्वाइंट प्रदान कर रहे हैं। इससे आपकी पढ़ाई करने का और नोट्स बनाने के तरीके में बहुत ही बढ़िया इजाफा होगा इस पोस्ट में हम आपको छठी शताब्दी में हुए आर्थिक सामाजिक व धार्मिक क्षेत्र में हुए कुछ महत्वपूर्ण घटना चक्र के बारे में बता रहे हैं पिछले अंक में हमने आपको मगध साम्राज्य के उदय के कारणों के बारे में चर्चा की थी

छठी सदी ई.पू. में आर्थिक क्षेत्र में कुछ महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए, जिन्हें निम्नलिखित बिंदुओं अंतर्गत देखा जा सकता है-

• कृषि उत्पादन में वृद्धि

छठी सदी ई.पू. में कृषि उत्पादन में हुई वृद्धि के पीछे कई महत्वपूर्ण कारण थे, जैसे-

1) कृषि क्षेत्र में लोह उपकरणों का प्रयोग।

2) धान की रोपाई पद्धति का विकास।

3) दासों को कृषि क्षेत्र में लगाया जाना ।

4) बौद्ध एवं जैन धर्म में पशु हत्या पर पाबंदी ,आदि।   

छठी सदी ई.पू. में ही सर्वप्रथम लोह उपकरणों का कृषि में प्रयोग किया गया, धान की रोपाई पद्धति को अपनाया गया एवं दासों को कृषि क्षेत्र में लगाया गया। समस्त कारणों से कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई। साथ ही इस काल में जैन एवं बौद्ध धर्म का उद्भव हुआ। धर्मो ने वैदिक यज्ञ में दी जाने वाली पशु बलि की निंदा की। इससे कृषि क्षेत्र में आवश्यक पशुधन सुनिश्चित हो सका। इस प्रकार ऊपर उल्लेखित समस्त कारकों ने छठी सदी ई.पू. मैं कृषि के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। Sixth century bc society and economy notes in hindi     

• शिल्प -उद्योग का विकास     

छठी सदी ई.पू. में कृषि उत्पादन में हुई वृद्धि ने शिल्प – उद्योगों के विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस काल में व्यापारियों ने अपने – अपने संगठन बना लिए थे, जिसे श्रेणी कहा जाता था। श्रेणियों में शिल्प – उद्योगों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ये श्रेणियां ना केवल मापतोल के पैमाने, वस्तुओं का मूल्य आदि निश्चित करती थी, बल्कि बैंकों का कार्य भी करती थी। छठी सदी ई.पू. में हुए शिल्प -उद्योग के विकास का प्रमाण यह भी है कि इस काल में समकालीन स्रोतों में राजगिरी में 18 प्रकार के शिल्पों का उल्लेख मिलता है, जिनमें प्रमुख थे लोहार, बढई ,चर्मकार, रंगकार आदि। Sixth century bc society and economy notes in hindi      

•वाणिज्य- व्यापार का विकास

छठी सदी ई.पू.में कृषि उत्पादन में हुई वृद्धि एवं नवीन शिल्प- उद्योग के विकास ने इस काल के वाणिज्य -व्यापार के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आंतरिक व्यापार के विकास में नवीन मार्गों का महत्वपूर्ण योगदान था। काल में एक मार्ग प्रतिष्ठान (महाराष्ट्र), महिष्मति, उज्जैन, विदिशा, कौशामबी होते हुए साकेत (इलाहाबाद) तक जाता था, जबकि दूसरा मार्ग ताम्रलिप्ति, पाटलिपुत्र, श्रावस्ती, उज्जैन होते हुए भड़ौच (गुजरात प्रान्त का एक शहर) तक जाता था। उसी प्रकार बाहय व्यापार के विकास में ताम्रलिप्ति, भडौ़च, सुपारा आदि बंदरगाहों का  प्रमुख योगदान था।    

• नियमित मुद्रा एवं नगरीकरण       

छठी सदी ई. पू. में ही हमें सर्वप्रथम नियमित सिक्कों को (आहत मुद्रा) का प्रचलन दिखाई देता है। साथ ही इस काल में 16 महाजनपदों का भी नगरों के रूप में उद्भव हुआ। यह दोनों तथ्य इस काल के विकसित- वाणिज्य व्यापार के प्रमाण हैं। Sixth century bc society and economy notes in hindi    

इस प्रकार छठी सदी ई. पू. में आर्थिक क्षेत्र में कुछ सकारात्मक परिवर्तन हुए, जिनने भविष्य की आर्थिक समृद्धि की आधारशिला निर्मित कर दी।

सामाजिक क्षेत्र

छठी सदी ई. पू. में सामाजिक क्षेत्र में भी कुछ महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए, जैसे-   

• वर्णाश्रम व्यवस्था में तनाव       

इस काल में वैदिक धर्म के अतिरिक्त जैन एवं बौद्ध धर्म का उद्भव हुआ। इन धर्म ने परंपरागत वर्ण – व्यवस्था पर चोंट की तथा एक नए रूप में  वर्णों  का विभाजित किया । बौद्ध ग्रंथों में वर्ण -व्यवस्था में प्रथम स्थान क्षत्रियों को, द्वितीय स्थान ब्राह्मणों को, तृतीय स्थान वैश्यों को, एवं चतुर्थ स्थान छुद्रों को, दिया गया है। किंतु कुल मिलाकर समाज में परंपरागत वर्ण व्यवस्था का ही प्रचलन था जिसमें सर्वोच्च स्थान ब्राह्मण वर्ण को ही प्राप्त था।

जाति व्यवस्था का उद्भव

परंपरागत वर्णाश्रम व्यवस्था के विरुद्ध उठने वाले स्वरों को प्रक्रिया में ब्राह्मणों ने परंपरागत वर्ण -व्यवस्था के बंधनों को और भी अधिक कठोर बना दिया। वर्ण का निर्धारण कर्म के आधार पर नहीं, बल्कि जन्म के आधार पर किया जाने लगा इससे समाज में जाति व्यवस्था का उद्भव हुआ।   

• अस्पृश्यता का प्रचलन

इस काल में सामाजिक क्षेत्र में एक नवीन परिवर्तन अस्पृश्यता एवं छुआछूत का प्रचलन था।अस्पृश्यता की उत्पत्ति प्रतिलोम विवाह के फलस्वरूप हुई, जिनमें चांडाल (शूद्र पिता ब्राह्मण माता  से उत्पन्न संतान) को स्थिति सबसे दयनीय थी। इस काल में शूद्र के साथ अस्पृश्यता का बर्ताव किया जाने लगा। उन्हें यज्ञ करने एवं मंत्र उच्चारण करने के अधिकार से वंचित कर दिया गया। इस काल में अन्तवर्ण विवाह एवं खानपान पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया। 

स्त्रियों की स्थिति में गिरावट

छठी सदी ईस्वी पूर्व में स्त्रियों की दशा में भी गिरावट आई। वस्तुत यह एक साम्राज्यवादी युग था, जिसमें युद्ध में भाग लेने वाले पुरुष सैनिकों का विशेष महत्व था। यही कारण है कि इस काल में स्त्रियों की दशा वैदिक काल की तुलना में खराब हो गई। स्त्रियों की खराब स्थिति का अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि इसी काल में सती प्रथा के साहित्यिक साक्ष्य प्राप्त होते हैं। एक ग्रीक लेखक ने उत्तर पश्चिम भारत में सती प्रथा की चर्चा की है। साथ ही महाभारत में भी पांडव की पत्नी माद्री द्वारा सती होने का उल्लेख प्राप्त होता है। 

• दासो की स्थिति में गिरावट

इस काल में दासो की स्थिति में भी गिरावट आई। अब उन्हें घरेलू कार्यों के साथ-साथ कृषि क्षेत्र में भी लगा दिया गया, जहां उन्हें बेगारी भी करनी पड़ती थी। इस प्रकार समाज में शोषक- शोषित संबंधों का विकास हुआ।     

इस प्रकार छठी सदी ई.पू. के सामाजिक जीवन में कुछ ऐसे परिवर्तन हुए जिनमें वर्तमान के भारतीय समाज की अनेक बुराइयां एवं कुरीतियों की आधारशिला निर्मित कर दी। Sixth century bc society and economy notes in hindi    

धार्मिक क्षेत्र

छठी सदी ई.पू. के दौरान भारत के धार्मिक क्षेत्र में भी कुछ महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए , जिन्होंने भारत के इतिहास को एक नवीन दिशा प्रदान की। धार्मिक क्षेत्र में हुए इन परिवर्तनों को बिंदुवार कर्म में देखा जा सकता है-   

• आश्रम व्यवस्था  उत्तर वैदिक कालीन ग्रंथ छांदोग्य उपनिषद में तीन आश्रम (ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, व वानप्रस्थ) का, जबकि चौथे आश्रम (सन्यास) का सर्वप्रथम उल्लेख छठी सदी ई.पू. के ग्रंथ जावाली उपनिषद में प्राप्त होता है। 

•पुरूषार्थ  छठी सदी ई.पू. मे ही हमें सर्वप्रथम चर्तुवर्ग (धर्म, अर्थ, काम ,मोक्ष ) का साक्ष्य प्राप्त होता।   

•पोडश  संस्कार सोलह संस्कारों का प्रथम उल्लेख अशवलायन के गद्य सूत्र में मिलता है। संस्कार का अर्थ है- परिष्कार /शुद्धीकरण।  इसके माध्यम से व्यक्ति को समाज के योग्य नागरिक के रूप में तैयार किया जाता था 16 संस्कार गर्भाधान से लेकर अंत्येष्टि तक चलते थे जो इस प्रकार हैं – गर्भाधान संस्कार, पुंसवन संस्कार, सीमंतोन्नयन संस्कार, जातकर्म, नामकरण संस्कार, अन्नप्राशन संस्कार, मुंडन संस्कार, विद्यारंभ संस्कार, कर्णवेध संस्कार, उपनयन/यज्ञोपवीत संस्कार, वेदांरभ संस्कार, केशांत संस्कार, समावर्तन संस्कार, विवाह संस्कार, अंत्येष्टि संस्कार।

  •विवाह आश्वलायन के गृह्यसूत्र में आठ प्रकार के विवाह का उल्लेख है, जिनमें से ब्रह्म विवाह, दैव विवाह, आर्य विवाह, प्रजापति विवाह को धार्मिक मान्यता प्राप्त थी, जबकि असुर विवाह, गंधर्व विवाह, राक्षस विवाह,व पैशाच विवाह को नहीं। इनमें से सबसे अधिक प्रचलित ब्राह्मण विवाह था। Sixth century bc society and economy notes in hindi    

मुझे उम्मीद है की छठी सदी ई. पू. हुए आर्थिक सामाजिक व व्यापारिक महत्वपूर्ण घटना चक्र के नोट्स आपको जरूर पसंद आए होंगे अगली पोस्ट में हम आपको यूनानी आक्रमण के बारे में बताएंगे तो बने रहिए Upsc Ias Guru .Com के साथ 🙂 

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