तृतीय कर्नाटक युद्ध – कारण, महत्त्व और परिणाम Notes

Hello दोस्तों, एक बार फिर से स्वागत है आपका Upsc Ias Guru .Com वेबसाइट पर आज की पोस्ट में हम आपको 18 वीं शताब्दी में भारत की राजनीतिक स्थिति और उपनिवेशवाद आक्रमण- 13 (तृतीय कर्नाटक युद्ध) के बारे में बताएंगे, तो चलिए शुरू करते हैं आज की पोस्ट

तृतीय कर्नाटक युद्ध (1756-63 ई.) Third Battle of Karnataka


युद्ध के कारण तथा मुख्य घटनाएं third carnatic war notes

✯ सप्तवर्षीय युद्ध – डूप्ले के जाने के बाद गोडा ने अंग्रजों से जो सन्धि की वह अधिक समय तक न चल सकी। 1756 ई. में यूरोप में सप्तवर्षीय युद्ध छिड़ गया जिसमें इंग्लैण्ड और फ्रांस पुनः एक-दूसरे से भिड़ गये। यह युद्ध विश्वव्यापी था। संसार में जहाँ भी अंग्रेज और फ्रांसीसी थे, वहाँ वे लड़ पड़े। यूरोप तो युद्ध का मुख्य क्षेत्र था ही, अमेरिका में भी उन दोनों के बीच युद्ध हुआ और भारत में भी उनके बीच संघर्ष छिड़ गया।

क्लाइव का चन्द्रनगर पर अधिकार – सप्तवर्षीय युद्ध के प्रारम्भ होने का समाचार भारत में नवम्बर, 1756 ई. में पहुँचा। उससे पहले जून में बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला और ईस्ट इण्डिया कम्पनी के बीच युद्ध छिड़ गया था और क्लाइव तथा वॉटसन सेनाएँ लेकर मद्रास से बंगाल पहुँच गये थे। सप्तवर्षीय युद्ध का समाचार मिलते ही क्लाइव ने फ्रांसीसियों की बस्ती चन्द्रनगर पर अधिकार कर लिया। सिराजुद्दौला ने फ्रांसीसियों की कोई मदद नहीं की।
मद्रास में अंग्रेजों तथा फ्रांसीसियों के पास इतने सैनिक साधन नहीं थे कि वे तुरन्त युद्ध आरम्भ कर देते। अंग्रेजों ने अपने सैनिक और नाविक बलों का बड़ा भाग क्लाइव और वॉटसन के नेतृत्व में बंगाल भेज दिया था। इस प्रकार फ्रांसीसियों के साधन क्षीण हो चुके थे, क्योंकि पॉण्डिचेरी के गर्वनर को हैदराबाद में स्थित बुसी को सहायता भेजनी पड़ी थी। इसलिए 1758 ई. तक दक्षिण में कोई संघर्ष नहीं हुआ।

✯ फ्रांसीसियों की फोर्ट सेण्ट डेविस पर विजय – अप्रैल 1758 ई. में पॉण्डिचेरी के गर्वनर को अपनी सरकार से कुमुक प्राप्त हो गयी। काउण्ट लैली नामक जनरल फ्रांस से एक बड़ी सेना लेकर भारत के पूर्वी तट पर आ पहुँचा। आते ही पूर्ण उत्साह के साथ उसने अपना कार्य आरम्भ कर दिया। मई के शुरू में ही उसने अंग्रेजों के फोर्ट सेण्ट डेविस पर आक्रमण
कर दिया और 2 जून को उसे हस्तगत कर लिया।

मद्रास का घेरा तथा तंजौर पर आक्रमण – लैली ने कर्नाटक में अंग्रेजों की सत्ता को उखाड़ फेंकने के उद्देश्य स मद्रास पर आक्रमण करने का संकल्प लिया। किन्तु अप्रैल के अन्त में अंग्रेजी बेड़ा एक नाविक युद्ध में फ्रांसीसियों को परास्त कर चुका था इसलिए लैली को मद्रास पर आक्रमण के लिए समुचित नाविक सहायता न मिल सकी। दूसरे, उसके पास धन की कमी थी। इसलिए उसने आर्थिक कठिनाइयों को दूर करने के उद्देश्य से तंजौर के राजा पर चढ़ाई कर दी। राजा से फ्रांसीसियों को 70 लाख रुपयें चाहिए थे। उसी रकम को वसूल करने के लिए लैली ने तंजौर का घेरा डाल दिया, किन्तु गोला-बारूद की कमी के कारण वह नगर को जीत न सका। अगस्त में अंग्रेजों ने एक नाविक युद्ध में फ्रांसीसियों को पुनः परास्त किया। जैसे ही लैली को इस पराजय का समाचार मिला, उसने तंजौर का घेरा उठा लिया। इससे उसकी स्वयं की तथा फ्रांसीसी सेना की प्रतिष्ठा को भारी आघात पहुँचा। third carnatic war notes


फ्रांसीसी बेडा भारतीय समद्रों को छोडकर मॉरीशस चला गया तब लैली ने मद्रास पर पुनः आक्रमण करने की योजना बनायी। अपनी सहायता के लिए उसने हैदराबाद से बसी को वापस बुला लिया। यह निर्णय गलत सिद्ध हुआ, क्योकि इससे हैदराबाद में फ्रांसीसियों का जो कुछ प्रभाव था वह भी समाप्त हो गया। दिसम्बर, 1758 ई. में लैली ने मद्रास का घेरा डाल दिया जो फरवरी, 1759 ई. तक चलता रहा। तब तक अंग्रेजों का एक बेड़ा आ गया और लैली को घेरा उठाना पड़ा। इस विफलता ने भारत में फ्रांसीसी सत्ता का प्रायः अन्त कर दिया।


उधर जब बुसी हैदराबाद से चला गया तो अंग्रेजों ने उसकी अनुपस्थिति से लाभ उठाया। क्लाइव ने कर्नल फोर्ड को उत्तरी सरकार के प्रदेश पर अधिकार करने के लिए भेज दिया। फोर्ड ने फ्रांसीसियों को राजमहैन्द्री और मछलीपट्टम के युद्धों में परास्त किया तथा उत्तरी सरकार से मार भगाया। अब सलाबतजंग ने भी फ्रांसीसियों का साथ छोड़ दिया और अंग्रजों से सन्धि कर ली तथा मछलीपट्टम और उसके आस-पास का बड़ा प्रदेश उनके हवाले कर दिया।

✯ वाण्डीवॉश का युद्ध – अक्टूबर, 1759 ई. में जनरल आयरकूट एक सेना लेकर मद्रास आ पहुँचा और अंग्रजों ने पुनः आक्रामक कार्यवाहियाँ आरम्भ कर दीं। जनवरी 1760 ई. में आयरकूट ने लैली को वाण्डीवॉश के युद्ध में भारी पराजय दी। फ्रांसीसी सेना पूरी तरह खदेड़ दी गयी। इस युद्ध का इतिहास में बड़ा महत्व है। इस युद्ध के संबध में मैलीसन का कथन सत्य है, “इस युद्ध ने उस भवन को जिसे मार्टिन ड्यूमा तथा डूप्ले ने बनाया था, धूल-धूसरित कर दिया, लैली की आशाओं पर पानी फेर दिया तथा पॉण्डिचेरी के भाग्य का निर्णय कर दिया।”

पॉण्डिचेरी का पतन – वाण्डीवॉश की सफलता के उपरान्त आयरकूट ने कर्नाटक में फ्रांसीसियों की छोटी-मोटी बस्तियों पर अधिकार कर लिया। तीन महीने के अन्दर जिजी और पॉण्डिचेरी को छोड़कर कर्नाटक की सभी फ्रांसीसी बस्तियाँ अंग्रेजों ने हस्तगत कर ली। इसके बाद उन्होंने मई, 1760 ई. में पॉण्डिचेरी का घेरा आरम्भ कर दिया। लैली के पास साधनों का अभाव था। इसके अतिरिक्त वह अपनी सेना में एकता तथा अनुशासन कायम करने में असफल रहा। अन्त में 16 जनवरी, 1761 ई. को पॉण्डिचेरी ने समर्पण कर दिया। विजेताओं ने किलेबन्दी को ही नहीं, बल्कि पूरे नगर को क्रूरतापूर्वक नष्ट कर दिया। जैसा कि ओर्म ने लिखा है, उस नगर में एक भी छत खड़ी नही रह गयी। third carnatic war notes


पॉण्डिचेरी के पतन के बाद अंग्रेजों ने फ्रासीसियों की मालाबार के तट पर स्थित जिजी और माही की बस्तियों पर भी अधिकार कर लिया। इस प्रकार फ्रांसीसियों की भारत में जो भी बस्तियाँ थी वे सब उनके हाथों से निकल गयीं।


पेरिस की सन्धि – यूरोप में फ्रांसीसियों तथा अंग्रेजों के बीच 1763 ई. में सन्धि हो गयी, जो पेरिस की सन्धि के नाम से जानी जाती हैं इस सन्धि के परिणामस्वरूप फ्रांसीसियों तथा अंग्रेजों के बीच युद्ध समाप्त हो गया। इस सन्धि के द्वारा पॉण्डिचेरी तथा चंद्रनगर फ्रांसीसियों को लौटा दिये गये। किन्तु उन पर यह शर्त लगा दी गयी कि वे भारत में सेना नही रख सकेंगे। इसके बाद फ्रांसीसियों ने अंग्रेजों का विरोध करना बन्द कर दिया, फ्रांसीसी केवल व्यापार तक ही सीमित रह गये।

यह तो थी 18 वीं शताब्दी में भारत की राजनीतिक स्थिति और उपनिवेशवाद आक्रमण- 13 ( तृतीय र्नाटक युद्ध) की जानकारी के नोट्स अगली पोस्ट में हम आपको फ्रांसीसियों की असफलता के कारण के बारे में जानकारी देंगे तो बने रहिए Upsc Ias Guru .Com के साथ 🙂

error: Content is protected !!
Don`t copy text!