अलाउद्दीन की दक्षिणी भारत की विजयें

Hello दोस्तों, स्वागत है आपका फिर से हमारी इतिहास नोट्स की सीरीज में इस से पहले हमने आपको अलाउद्दीन की उत्तर भारत की विजयें के बारे में विस्तार से बताया था, इस पोस्ट से हम आप को अलाउद्दीन की दक्षिणी भारत की विजयें के बारे में बतायेगे जिससे आपको  मध्यकालीन भारत के इतिहास की जानकारी मिल सके और आपकी तैयारी को और भी बल मिल सके तो चलिए शुरू करते है आज की पोस्ट 🙂

अलाउद्दीन की दक्षिणी भारत की विजयें –

Alauddin Khilji ka Dakshin Bharat Abhiyan

दक्षिण भारत पर आक्रमण के कारण- दक्षिण भारत पर आक्रमण के निम्नलिखित कारण थे

अलाउद्दीन की महत्वाकांक्षा – अलाउद्दीन बहुत ही महत्वाकांक्षी था। वह सम्पूर्ण भारत पर अपना एकछत्र राज्य स्थापित करना चाहता था। इसके लिए परिस्थितियाँ भी अनुकूल थीं।

दक्षिणी राज्यों की दर्बलता – दक्षिण के राज्य आपसी कलह के कारण कमजोर हो रहे थे। उनमें तुर्कों के हमलों को रोकने की क्षमता नहीं थी और न ही उन्होंने सीमा की कोई सुरक्षा की व्यवस्था की थी। Alauddin Khilji ka Dakshin Bharat Abhiyan

दक्षिण का धन – सुल्तान ने सुन रखा था कि दक्षिण के राज्य बहुत धनी हैं। वह अपनी योजनाओं को पूर्ण करने के लिए धन चाहता था। इसकी पूर्ति दक्षिणी राज्यों के धन से हो सकती थी।

विशाल सेना को कार्य में लगाना – अलाउद्दीन के पास एक विशाल सेना थी। उसको निरन्तर युद्ध में लगाये रखना आवश्यक था अन्यथा वह आन्तरिक विद्रोह में संलग्न हो जाते। इस सेना को युद्ध में लगाना आवश्यक था। Alauddin Khilji ka Dakshin Bharat Abhiyan

(i)देवगिरी पर आक्रमण – 1294 ई. में अलाउद्दीन ने देवगिरि के राजा को पराजित किया था और उसे अपने अधीन बनाकर अपार धन प्राप्त किया था। लेकिन कुछ समय पश्चात् उसने कर देना बन्द कर दिया साथ ही उसने गुजरात के राजा कर्णदेव को शरण दी थी इसलिए अलाउद्दीन ने 1306-07 ई. में मलिक काफूर को देवगिरि पर आक्रमण करने के लिए भेजा और उसे कर्णदेव की पुत्री देवल देवी को भी दिल्ली लाने का आदेश दिया।

कर्णदेव ने अपनी पुत्री का विवाह रामचन्द्रदेव के पुत्र शंकरदेव से करने का निश्चय कर लिया था। जिस समय देवल देवी कुछ लोगों के साथ देवगिरि की ओर जा रही थी तो गुजरात के गर्वनर अल्पखाँ ने उसे पकड़ लिया और दिल्ली भेज दिया। वहाँ पर उसका विवाह अलाउद्दीन के बड़े लड़के खिज्रखाँ के साथ कर दिया गया। मलिक काफूर तथा अल्पखाँ की संयुक्त सेनाओं ने कर्णदेव तथा रामचन्द्रदेव को पराजित किया और रामचन्द्रदेव को पकड़ कर दिल्ली भेज दिया। अलाउद्दीन ने राजा के साथ अच्छा बर्ताव किया और उसे ‘रायरायन’ की उपाधि दी और उसका राज्य वापस दे दिया गया। इस व्यवहार से रामचन्द्रदेव इतना प्रवाहित हुआ कि उसने फिर कभी सुल्तान के विरुद्ध विद्रोह नहीं किया और सदैव उसके प्रति वफादार बना रहा।

(ii) तेलंगाना की विजय – 1303 ई. में अलाउद्दीन ने तेलंगाना पर आक्रमण किया लेकिन वहाँ पर पराजय का मुँह देखना पड़ा। इस पराजय के कंलक को धोने के लिए अलाउद्दीन ने 1308 ई. में मलिक काफूर की अध्यक्षता में एक सेना भेजी। वहाँ के राजा प्रताप रुद्रदेव की राजधानी वारंगल चारों ओर से सुदृढ़ दीवारो से घिरी हई थी। मलिक काफूर ने यकायक आक्रमण कर दिया और वारंगल को चारों ओर से घेर लिया। सम्राट ने बड़ी वीरता का परिचय दिया लेकिनअन्त में उसे आत्म-समर्पण करना पड़ा। उसने सन्धि कर ली और काफूर को 600 हाथी, 700 घोडे तशा जवाहरात भेंट किये तथा वार्षिक कर देने का भी वचन दिया।

(iii) होयसल की विजय – तेलंगाना विजय के बाद अलाउद्दीन ने 1310 ई. में मलिक काफूर को होयसल राज्य आक्रमण करने के लिए भेजा। काफूर देवगिरि होता हुआ द्वार समुद्र पहुँचा, वहाँ का शासक वीर बल्लाल असावधान था, वह काफूर के अचानक आक्रमण का सामना न कर सका और वह पराजित हुआ। द्वार समुद्र पर मुसलमानों क अधिकार हो गया। काफूर ने नगर के मन्दिरों को लूटा और राजा ने बहुत-सा धन मलिक काफूर को भेंट में दिया।

(iv) पांड्या राज्य की विजय – पांड्या राज्य दक्षिणी प्रायद्वीप के अन्तिम छोर पर स्थित था। वहाँ उस समय सुन्दर पांड्या और वीर पाण्ड्या नामक दो भाईयों में राज सिंहासन के लिए गृहयुद्ध चल रहा था। सुन्दर पांड्या ने दिल्ली सुल्तान से अपने भाई के विरुद्ध सहायता माँगी। यह सुल्तान के लिए अच्छा अवसर था इसलिए उसके आदेशानुसार काफूर ने 1311 ई. में पांड्या राज्य पर आक्रमण कर दिया और मदुराई पर अधिकार कर लिया। वीर पांड्या वहाँ से भाग राज खड़ा हुआ। काफूर ने नगर को जी-भरकर लूटा और अनेक मन्दिरों को नष्ट कर दिया। उसने आगे बढ़कर रामेश्वरम् के विशाल मन्दिर को भी नष्ट कर दिया और वहाँ एक मस्जिद का निर्माण कराया। इसके पश्चात वह दिल्ली लौट आया। वह विश्व अपने साथ अपार धन-सम्पत्ति भी ले गया जिसमें 321 हाथी, 20,000 घोड़े, 2,750 पौण्ड सोना सम्मिलित था। इससे पहले दिल्ली में लूट का इससे अधिक माल कभी नहीं आया था। Alauddin Khilji ka Dakshin Bharat Abhiyan

(v) देवगिरि पर पुन: आक्रमण – रामचन्द्रदेव की मृत्यु के बाद उसका पुत्र शंकरदेव गद्दी पर बैठा। उसने दिल्ली शासन हस्तक्ष से अपने को मुक्त कर लिया और वार्षिक कर देना बन्द कर दिया। इसलिए 1313 ई. में सुल्तान ने मलिक काफूर को देवगिरि पर आक्रमण करने के लिए भेजा। शंकरदेव युद्ध में हारा और मारा गया। इसके पश्चात काफूर ने उसके राज्य के विभिन्न नगरों को लूट और दिल्ली लौट आया। 1314 ई. में हरपालदेव को वहाँ का शासन सौंपकर, लूट की पर्याप्त धन-सम्पत्ति लेकर, काफूर दिल्ली लौट आया।

सफलता के कारण –

दक्षिण के राज्यों में आपस में वैमनस्य था। वे एक-दूसरे के खिलाफ युद्ध कर रहे थे। उन्होंने संगठित होकर शत्र से लड़ने के बजाये अपने पड़ोसियों के खिलाफ शत्रु की मदद की।

अलाउद्दीन की सेना बहुत ही कुशल और योग्य थी। सेना संगठित और सुसज्जित थी। सुल्तान की सेना में धार्मिक भावना तथा लूट की कामना का आवेश था। वह उत्साह से युद्ध करती थी। दक्षिण की सेना सुसज्जित नहीं थी। उसमें अलाउद्दीन की सेना का सामना करने की क्षमता नहीं थी।

अलाउद्दीन की नीति का उद्देश्य धन को लूटना और दक्षिण के राज्य को अधीनता मानने के लिए बाध्य करना था। वह दक्षिण के राज्यों को अपने राज्य में नहीं मिलाना चाहता था क्योंकि आवागमन के साधनों के अभाव के कारण उन पर नियन्त्रण रखना कठिन था। इन राज्यों को जीतकर उसने यह राज्य पुनः उनको वापस लौटा दिये। इस कार्य में वह पूर्ण सफल रहा।

दक्षिण विजय के परिणाम –

इससे निम्नलिखित लाभ हुए

  1. अलाउद्दीन को दक्षिण से जो धन प्राप्त हुआ उससे साम्राज्य को संगठित और व्यवस्थित करने में योग मिला। अपने विपक्षियों पर उसने विजय दक्षिणी धन से ही प्राप्त की थी। इस धन से उसे मंगोलों के आक्रमण को रोकने, विद्रोह का दमन करने तथा राज्य को संगठित करने में योग मिला। Alauddin Khilji ka Dakshin Bharat Abhiyan
  2. दक्षिण विजय से अलाउद्दीन की मर्यादा और प्रतिष्ठा बढ़ गयी।
  3. इससे दक्षिण के राज्यों को बहुत नुकसान हुआ। उनका राजकोष रिक्त हो गया। कर देन के लिए जनता पर कर लगाने पड़े जिससे जनता को कष्ट हुआ।
  4. दक्षिण के मन्दिरों का विध्वंस हुआ। असंख्य हिन्दु मुसलमान बना लिए गये। धीरे-धीरे मुस्लिम सभयता और संस्कृति का दक्षिण में प्रचार हुआ।

राजत्व का सिद्धान्त –

अलाउद्दीन ने बलवन के राजत्व सिद्धान्त को अपनाया और निरंकुशवाद को उसने पराकाष्ठा पर पहुंचा दिया। उसका विश्वास था कि राजा ईश्वर का प्रतिनिधि होता है और अन्य मनुष्यों से उसकी बुद्धि श्रेष्ठ होता है। वह कहा करता था कि राजा का कोई सम्बन्धी नहीं होता और राज्य के सभी निवासी उसके सेवक अथवा प्रजा होते हैं। दिल्ली के सुल्तानों की शक्ति पर दो मुख्य अंकुश थे, एक अमीरों का और दूसरा उलेमाओ का। Alauddin Khilji ka Dakshin Bharat Abhiyan

अलाउद्दीन ने अपने को दोनों से मुक्त कर लिया। उलेमा लोग राजनीति में हस्तक्षेप किया करते थे और इस बात की कोशिश किया करते थे कि सुल्तान इस्लाम के नियमों के अनुसार राज-काज चलायें। अलाउद्दीन ने उनकी परवाह नहीं की। उसने यह घोषणा की कि मैं नहीं जानता कि मेरा काम इस्लाम के नियमों के अनुकूल है अथवा नहीं। मैं तो हर अवसर पर जो ठीक समझता हूँ वहीं करता हैं।

अलाउद्दीन राज्य की निरंकुशता में विश्वास करता था। उसका राज्य भी पूर्णतः निरंकुश था। उसने हिन्दुओं के प्रति दर्व्यवहार किया और मनमाना कर वसूल किया। वे किसी भी स्थिति में सुल्तान का विरोध नहीं कर सकते थे। हिन्दुओं के कल्याण की ओर उसने तनिक भी ध्यान नहीं दिया। दूसरी ओर मुसलमानों की धार्मिक भावनाओं का ध्यान रखा और युद्धों में उसने मसलमानों की धर्मान्धता का लाभ उठाया। यद्यपि उलेमाओं को उसने राजनीति से पृथक कर दिया था लेकिन उसने इस्लाम धर्म का त्याग नहीं किया। Alauddin Khilji ka Dakshin Bharat Abhiyan

यह तो थी अलाउद्दीन की दक्षिणी भारत की विजयें की जानकारी के नोट्स अगली पोस्ट में हम आपको अलाउद्दीन के सुधार के बारे में जानकारी देंगे तो बने रहिए Upsc Ias Guru .Com के साथ 🙂

Leave a Reply

error: Content is protected !!
Don`t copy text!