अलाउद्दीन खिलजी और उसकी उत्तरी भारत विजय Notes

Hello दोस्तों, स्वागत है आपका फिर से हमारी इतिहास नोट्स की सीरीज में इस से पहले हमने आपको खिलजी वंश के इतिहास के बारे में विस्तार से बताया था, इस पोस्ट से हम आप को अलाउद्दीन खिलजी और उसकी उत्तरी भारत विजयों के बारे में बतायेगे जिससे आपको  मध्यकालीन भारत के इतिहास की जानकारी मिल सके और आपकी तैयारी को और भी बल मिल सके तो चलिए शुरू करते है आज की पोस्ट 🙂

अलाउद्दीन खिलजी (1296-1316 ई.) प्रारम्भिक जीवन –

अलाउद्दीन, जलालुद्दीन का भतीजा तथा दामाद था। इसके पिता का नाम शिहाबुद्दीन मसूद खिलजी था जो कि बलवन की सेना में कार्य कर चुका था। अलाउद्दीन अपने पिता का सबसे बड़ा पुत्र था, इसका जन्म लगभग 1266-67 ई. में हुआ थ। यद्यपि बचपन में उसकी नियमित रूप से शिक्षा-दीक्षा नहीं हो पायी थी लेकिन उसने घुड़सवारी, खेलकूद तथा रणविद्या की अच्छी शिक्षा प्राप्त कर ली। वह बहुत साहसी तथा महत्वकांक्षी था। जलालुद्दीन का भी उस पर विशेष कृपा थी। उसके (जलालुद्दीन) सिंहासनारोहण के समय अलाउद्दीन को ‘अमीर-ए-तुजक’ का पद मिला था और मलिक छज्जू के विद्रोह के बाद उसे कड़ामानिकपुर का सूबेदार बना दिया गया था। कुछ महत्वाकांक्षी खिलजी जवान अलाउद्दीन को अवसर के अनुकूल नेता मानते थे और उसे जलालुद्दीन के विरुद्ध विद्रोह करने के लिए भड़काया करते थे लेकिन अलाउद्दीन अवसर की प्रतीक्षा में था। 1292 ई. में उसने मालवा पर आक्रमण किया और भिलसा जीत लिया। इससे प्रसन्न होकर जलालुद्दीन ने अवध का सूबा भी उसके सुपुर्द कर दिया। 1294 ई. में उसने देवगिरी के राजा रामचन्द्रदेव पर आक्रमण कर दिया। 8 हजार सेना लेकर चुपचाप बहाना बनाकर देवगिरि पहुँच गया। वहाँ के शासक को अलाउद्दीन के आने की कोई सूचना नहीं थी। उसकी सेना का अधिकांश भाग उसका पुत्र शंकर देव अपने साथ तीर्थ यात्रा के लिए ले गया था। इसलिए वह घबरा गया और आक्रमणकारी से सन्धि करने को तैयार हो गया। तब तक उसका पुत्र शंकर देव तीर्थ-यात्रा से लौटकर आ गया। उसने अपने पिता की राय के विरुद्ध अलाउद्दीन की सेना पर आक्रमण कर दिया। किन्तु उसकी पराजय हुई। रामचन्द्रदेव को बड़ी कठोर शर्ते स्वीकार करती पड़ी। उसने अपने राज्य का एलिचपुर नाम का प्रदेश तथएं 172.50 पौण्ड सोना, 200 पौण्ड मोती, 58 पौण्ड अन्य रत्न तथा 28,250 पौण्ड चाँदी और 1,000 रेशमी वस्त्र अलाउद्दीन को भेट किये।

इस विजय से अलाउद्दीन की महत्वाकांक्षा में वृद्धि हो गयी और वह दिल्ली की गद्दी प्राप्त करने की आकांक्षा करने लगा. | उसके अनुयायी इस सम्बन्ध में उसे प्रेरित कर ही रहे थे। अतः जैसा हम पहले वर्णन कर चुके हैं कि धोखे से उसने 19 जुलाई, | 1296 ई. को जलालुद्दीन का वध करवा दिया और स्वयं राजगद्दी प्राप्त कर ली।

अलाउद्दीन खिलजी की उत्तरी भारत विजयें Alauddin Khilji ke Uttar Bharat Abhiyan

  1. गुजरात विजय – उस समय गुजरात पर बघेलराय कर्ण शासन कर रहा था। उसने अनेक बार तुर्कों के आक्रमणों सामना किया और उन्हें पराजित किया उसकी राजधानी अन्हिलवाड़ा (आधुनिक पाटन) थी। 1299 ई. में अलाउन उलुगखाँ और नुसरतखाँ को गुजरात पर आक्रमण करने के लिए भेजा। इन दोनों सेनापतियों ने अन्हिलवाड़ा को घेर और उस पर अधिकार कर लिया। वहाँ का सम्राट कर्ण अपनी पुत्री देवल देवी के साथ भाग खड़ा हुआ और उसने देवा के राजा रामचन्द्र के यहाँ शरण ली। उसकी रानी कमला देवी मसलमानों के हाथ पड़ी। दिल्ली की सेना ने अन्हिलवान को खूब लूटा और अपार धन-सम्पत्ति दिल्ली ले गये। काफूर नामक एक हिन्द भी नुसरतखाँ के हाथ लगा जो आओ चलकर अलाउद्दीन का वजीर तथा राज्य का सबसे प्रभावशाली व्यक्ति बना। कमला देवी से सुल्तान ने विवाह कर लिया। Alauddin Khilji ke Uttar Bharat Abhiyan
  2. रणथम्भौर की विजय – गुजरात पर अधिकार कर लेने के पश्चात अलाउद्दीन ने राजपूताना के राज्यों को जीतने को संकल्प किया। अतः उसने दूसरा आक्रमण रणथम्भौर पर किया जो कि राजपूताना का सबसे अधिक शक्तिशाली राज्य माना जाता था। यह पहले दिल्ली राज्य का अंग रह चुका था, इसलिए उस पर पुनः अधिकार करना सुल्तान अपना कर्तव्य समझता था। इसके अतिरिक्त वहाँ के शासक हम्मीरदेव ने कुछ नये मुसलमानों को अपने यहाँ शरण दी थी। यही आक्रमण के कारण थे। अलाउद्दीन ने उलुगखाँ और नसरतखाँ को रणथम्भौर पर आक्रमण करने के लिए भेजा; उन्होंने किले का घेरे डाल लिया और वह एक वर्ष तक बराबर चलता रहा। धीरे-धीर किले के भीतर की सामग्री समाप्त होने लगी और बाहर से सहायता मिलना कठिन हो गया। अन्त में 1301 ई. में हम्मीरदेव का प्रधानमंत्री रनमल अपने स्वामी को धोखा देकर सुल्तान से जा मिला। इससे राजपूतों का मनोबल गिर गया, उन्होंने जौहर किया और राणा हम्मीर तथा उसके वंश के सभी लोग वीरगति को प्राप्त हुए। अलाउद्दीन का प्रमुख सेनापति नसरतखाँ युद्ध में मारा गया। इस प्रकार 1301 ई. में रणथाभी पर अलाउद्दीन का अधिकार हो गया। Alauddin Khilji ke Uttar Bharat Abhiyan
  3. चित्तौड़ की विजय – रणथम्भौर की विजय के बाद अलाउद्दीन ने 1303 ई. में चित्तौड़ पर आक्रमण किया। प्राची राजपूत अनुश्रुतियों तथा परिवर्ती मुसलमान इतिहासकारों के आधार पर यह कहा जाता है कि अलाउद्दीन ने चित्तौड़ के राणा रतनसिंह की अत्यन्त सुन्दर पत्नी पद्यिनी को प्राप्त करने के लिए यह आक्रमण किया था। किन्तु कुछ आधनिक इतिहासकार (श्री गौरी शंकर, हीराचन्द्र ओझा तथा डॉ. के. एस. लाल) पद्मिनी की कहानी में विश्वास नहीं करते। उनक तर्क है कि यह कहानी जायसी के पद्मावत नामक ग्रन्थ के आधार पर गढ़ी गई है जो गलत है। पद्मावत में वर्णित प्रेम कहानी के व्यौरे की अनेक घटनाएँ कल्पित हैं। दूसरे, अमीर खुसरो ने, जो अलाउद्दीन के साथ चित्तौड़ गया था और घेरे के समय वहीं था। अलाउद्दीन एक महत्वाकांक्षी व्यक्ति था और अपने साम्राज्य विस्तार के उद्देश्य से ही उसने चित्तौड़ पर आक्रमण किय किन्तु ,अलाउद्दीन पद्मिनी को प्राप्त करना चाहता था। Alauddin Khilji ke Uttar Bharat Abhiyan
  4. मालवा की विजय – चित्तौड़ की विजय के बाद राजपूतों की रियासतों पर यह प्रभाव पड़ा कि उन्होंने स्वयं अलाउद्दीन की अधीनता स्वीकार करना प्रारम्भ कर दिया। लेकिन मालवा का राजा हरनन्द बडा ही स्वाभिमानी वीर राजपूत राजा था उसने अधीनता स्वीकार नहीं की। अलाउद्दीन ने आईन-उल-मुल्क मुल्तानी को जालौर तथा उज्जैन पर आक्रमण के लिए भेजा। 9 दिसम्बर, 1305 ई. को राजा हरनन्द ने आक्रमणकारी का कठिन प्रतिरोध किया लेकिन अन्त में वह पराजित हुआ। इस विजय के परिणामस्वरूप चन्देरी, माण्डू, धार तथा उज्जैन पर अलाउद्दीन खिलजी की सेना का अधिकार हो गया और राजा कनेरदेव ने भी सुल्तान की अधीनता को स्वीकार कर लिया।

5 .मारवाड़ की विजय – 1308 ई. में सुल्तान ने मारवाड़ को जीतने का संकल्प किया। दिल्ली सेना ने वहाँ के शक्तिशाली दुर्ग सिवाना का घेरा डाल दिया। घेरा दीर्घकाल तक पड़ा रहा लेकिन आक्रमणकारियों को कोई सफलता प्राप्त नहीं हुई। तब अलाउद्दीन स्वयं सेना लेकर सिवाना पहुंचा और उसने वहाँ के राजा शीतलदेव को सन्धि करने के लिए बाध्य कर दिया। सुल्तान ने सिवाना के दुर्ग पर तो अधिकार नहीं किया लेकिन उसका राज्य दिल्ली के अमीरों में बाँट दिया।

  1. जालौर पर विजय – जालौर के राजा कनेरदेव ने 1305 ई. में अलाउद्दीन की अधीनता स्वीकार कर ली थी लेकिन कुछ समय बाद उसने विद्रोह कर दिया। जैसे ही सुल्तान को इसकी सूचना प्राप्त हुई; एक विशाल सेना जालौर पर आक्रमण करने के लिए भेजी। सेना ने जालौर को चारों ओर से घेर लिया और कनेरदेव पर इतना दबाव डाला कि वह आत्म-समर्पण करने के लिए तैयार हो गया। उसकी समय दिल्ली सेना के सेनापति गुलेबहिश्त की मृत्यु हो गयी। दुश्मन को संकट में देखकर राजपूतों ने भयंकर युद्ध करना प्रारम्भ किया। उन्होंने गुलेबहिश्त के लड़के को पराजित किया और मार डाला। जब अलाउद्दीन को इसकी सूचना मिली तो उसने तुरन्त ही कमालुद्दीन के नेतृत्व में कुछ सेना जालौर पहुँचा दी, उसने राजा को परास्त किया और हजारों राजपूतों का वध कर दिया। इस प्रकार सुल्तान का जालौर पर अधिकार हो गया। Alauddin Khilji ke Uttar Bharat Abhiyan

यह तो थी अलाउद्दीन खिलजी और उसकी उत्तरी भारत विजयों की जानकारी के नोट्स अगली पोस्ट में हम आपको अलाउद्दीन खिलजी और उसकी दक्षिण भारत विजयों के बारे में जानकारी देंगे तो बने रहिए Upsc Ias Guru .Com के साथ 🙂

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