जलालुद्दीन फिरोज खिलजी (1290-1296 ई.) Notes

Hello दोस्तों, स्वागत है आपका फिर से हमारी इतिहास नोट्स की सीरीज में इस से पहले हमने आपको बलवन के बारे में विस्तार से बताया था, इस पोस्ट से हम आप को खिलजी वंश के इतिहास के बारे में बतायेगे जिससे आपको  मध्यकालीन भारत के इतिहास की जानकारी मिल सके और आपकी तैयारी को और भी बल मिल सके तो चलिए शुरू करते है आज की पोस्ट 🙂

खिलजी वंश (1290-1320 ई.) khilji vansh in hindi

खिलजी वंश (1290-1320 ई.) खिलजी वंश का स्थापना जलालुद्दीन फिरोजशाह खिलजी ने की थी। इस वंश के कुल चार शासकों (जलालुद्दीन फिरोज खिजली, अलाउद्दीन खिजली, कुतुबुद्दीन मुबारक शाह व नासिरुद्दीन खुसरोशाह) ने 1290 ई. से 1320 ई. तक अर्थात् 30 वर्षो तक शासन किया। दिल्ली सल्तनत के वंशो में खिजली वंश के शासकों ने सबसे कम समय तक शासन किया। खिलजी वंश की स्थापना से दिल्ली सल्तनत में अनेक सामाजिक व आर्थिक बदलाव के साथ-साथ भारत के तत्कालीन राज्य एवं राजनीति के स्वरूप में भी परिवर्तन हुए।

खिजली क्रांति

खिलजी वंश के शासकों को सर्वमान्य रूप से स्वीकृत नहीं मिली थी क्योंकि तुर्की अमीर उन्हें निम्न मानने थे और उनसे घृणा करते थे। वे खिलजियों को अफगान समझते थे। किन्तु खिलजी तुर्क थे। फखरुद्दीन,रावर्टी तथा बर्थोल्ड आदि विद्वानों ने उन्हें तुर्की माना है। खिलजी अफगानिस्तान के खल्ज क्षेत्र में रहते थे जो हेलमन्द नदी के दोनो ओर स्थित या गर्मसीर कहलाता था। बहुत समय तक अफगानिस्तान में रहने के कारण उन्होंने अफगानी परम्पराएं अपना ली थी। इस कारण अफगान समझे जाते थे। खिलजी क्रांति भारत में मुस्लिम राज्य के विकास में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इसका महत्व केवल एक वंश परिवर्तन तक ही सीमित नहीं था। बलवन के काल में विरोधी तत्वों के दमन के लिए हिंसात्मक तरीके अपनाए गए थे। किन्तु खिलजी क्रांति ने शाही ने शाही की तुलना में सर्वसाधारण के जनमत का आधिपत्य स्थापित कर यह सिद्ध कर दिया कि गद्दी पर कोई भी ऐसा व्यक्ति एकाधिकार कर सकता था जिसमें उसे अपने हाथ में रखने की शक्ति व योग्यता हो। इसके अतिरिक्त खिलोजया ने भारतीयों को उच्च पदों पर नियुक्त करने की परम्परा आरम्भ की। इसमें भी कुलीनता के सिद्धांत के स्थान पर प्रतिभा को अधिक महत्व दिया गया। खिलजी वंश के शासकों ने विशेषकर अलाउद्दीन खिलजी ने राजनीति को धर्म से पृथक करने का प्रयास किया। सल्तनत के इतिहास में यह एक नया अध्याय का आरम्भ था। इन सभी कारणों से खिलजियों द्वारा सत्ता पर अधिकार केवल एक वंश के स्थान पर दूसरे वंश की स्थापना के रूप में नहीं देखा जा सकता है। बल्कि यह एक व्यवस्था की समाप्ति तथा एक भिन्न व्यवस्था के आरम्भ का सूचक था।

जलालुद्दीन फिरोज खिलजी (1290-1296 ई.)

जीवन परिचय –


जलालुद्दीन फिरोज खिलजी तुर्क था। इसके परिवार के लोग बाहर से आकर भारत में बस गये थे और दिल्ली के तुर्क सुल्तानों के यहाँ नौकरी कर ली। फिरोज को शाही अंगरक्षक के पद पर नियुक्त कर दिया गया था और आगे चलकर वह समाना का सूबेदार नियुक्त कर दिया गया। वह एक योग्य सैनिक था। सूबेदार के पद पर काम करते हए उसने मंगोल आक्रमणकारियों के विरूद्ध अनके यद्ध किये और उन्हें मार भगाया। उसे शाइस्ताखाँ की उपाधि प्रदान की गयी। आगे चलकर वह सेना मन्त्री के पद पर नियुक्त किया गया। मन्त्री होने के अतिरिक्त समस्त भारत में बिखरे हुए विशाल खिलजी कबीले का भी प्रमुख था। तुर्क सरदार उससे घृणा करते थे और उसका वध करने का भी प्रयत्न किया किन्तु जलालुद्दीन स्थिति को भाँप गया और सुल्तान की हत्या करके 1200 ई में सिंहासन पर बैठ गया। अनुभवी तथा योग्य होने पर भी तुर्क लोग उसके शासन को बर्दाश्त करने के लिए तैयार नहीं थे, क्योंकि वे फिरोज को गैर-तुर्क समझते थे। गद्दी पर बैठते समय वह बूढ़ा हो चुका था, इसलिए उसमें कुछ दुर्बलताएँ भी थीं। अत: खिलजी युवक भी उसे सन्देह की दृष्टि से देखते थे। इसी कारण नया सुल्तान अप्रिय था। जलालुद्दीन ने गद्दी पर बैठने के बाद पदाधिकारियों के पदों में कोई परिवर्तन नहीं किया। बलवन के भतीजे मलिक लज्ज मानिकपूर का सुबेदार तथा मलिक फखरुद्दीन को दिल्ली का कोतवाल रहने दिया। उसने अपने परिवार जनों तथा पुत्रों को उच्च पदों पर प्रतिष्ठित किया। उसने आन्तरिक क्षेत्र में उदारता तथा शान्ति से काम किया।

मलिक छज्ज का विद्रोह –

1292 ई. के लगभग कड़ा मानिकपुर के सुबेदार मलिक छज्जु ने विद्रोह का अपने को स्वतंत्र शासक घोषित कर दिया। अवध का सूबेदार भी उससे मिल गया। दोनों की सेनाओं ने दिल्ली में प्रस्थान किया लेकिन रास्ते में फिरोज के पुत्र अर्कलीखाँ ने उसे पराजित किया और मलिक छज्जु को बन्दी बना लिया गया और उसे सुल्तान के सामने पेश किया। सुल्तान ने जब मलिक छज्जू को बेड़ियाँ पहने हए देखा तो वह मलिक छज्जु तथा उसके साथियों को रिहा कर दिया। खिलजी पदाधिकारियों ने इसका विरोध किया लेकिन उत्तर दिया कि मैं क्षण-भंगुर राज्य के लिए एक भी मुसलमान का वध नहीं कर सकता। khilji vansh in hindi

डाकुओं तथा ठगों के साथ उदार बर्ताव –

सुल्तान ने ठगों तथा डाकुओं के साथ भी उदार नीति से काम लिया। एक बार दिल्ली में अनेक ठग तथा डाकू पकड़ कर लाये गये लेकिन सुल्तान ने उन्हें दण्ड नहीं दिया। उन्हें ठगी तथा डकैती करने की सलाह दी और उन्हें नावों में बैठाकार बंगाल भेज दिया। डाकुओं और ठगों का बंगाल भेजने का सुल्तान का क्या उद्देश्य था; इस सम्बन्ध में कोई प्रमाण नहीं मिलता, लेकिन सम्भवतः इसमें सुल्तान का उद्देश्य डकैती तथा ठगी को करना ही रहा होगा, परन्तु सुल्तान के इस कार्य का क्या प्रभाव पड़ा इसका कोई प्रमाण नहीं है।

सिद्दी मौला का दमन –

सिद्दी मौला को दिल्ली की गद्दी पर बैठाने का षड्यन्त्र कुछ लोगों ने रचा जिसमें फिरोज के कुछ दरबारी भी सम्मिलित थे। फिरोज ने सिद्दी मौला तथा उसके अनुयायियों को बन्दी बनवाकर अपने सम्मुख बुलाया। सिद्दी मौला के साथ बातचीत करते-करते सुल्तान अत्यन्त ही क्रोधित हुआ और उसने अपने सामने ही सिद्दी मौला का वध करवा दिया। उसी दिन भयंकर आँधी तथा तुफान आया. साथ ही बाद में भंयकर दुर्भिक्ष पडा। इससे लोगों ने समझा कि सिद्दी मौला फकीर की हत्या के कारण ऐसा हुआ है। khilji vansh in hindi

उदार नीति का विरोध –

जलालुद्दीन की उदार नीति को उसकी दुर्बलता समझा जाने लगा और शीघ्र ही उसके खिलाफ दरबार के अमीरों द्वारा षड्यन्त्र रचे जाने लगे। कुछ अमीर लोग तो सुल्तान की हत्या कर किसी अन्य व्यक्ति को सुल्तान बनाने की बात करने लगे। सुल्तान को जब इस बात का पता चला तो बजाये उनको दण्ड देने के चेतावनी देकर छोड़ दिया। जलालुद्दीन की विदेश नीति अत्यन्त ही दुर्बल थी। वह युद्ध तथा रक्तपात का पक्षपाती नहीं था। उसने दो आक्रमण किये किन्तु उनमें उसे कोई विशेष सफलता प्राप्त नहीं हुई। khilji vansh in hindi

रणथम्भौर पर आक्रमण –

सन् 1290 ई. को सुल्तान ने रणथम्भौर पर आक्रमण किया। इसका संचालन स्वयं सुल्तान ने किया। सर्वप्रथम उसने झैन के किले पर अधिकार कर लिया, वहाँ पर उसने अनेक मन्दिरों को तोडा खण्डित किया और धन-सम्पत्ति को लूट लिया गया। इसके पश्चात उसने रणथम्भौर का घेरा डाल दिया। यहाँ के चौहान शासक ने सुल्तान का कड़ा प्रतिरोध किया। अन्त में सुल्तान ने हारकर वहाँ से घेरा उठा लिया और दिल्ली लौट आया। उसने यह कहकर अपने को सांत्वना दी कि मुसलमानों के सिरों को रणथम्भौर के किले से अधिक मुल्यवान समझता हूँ।

मन्दावर पर आक्रमण –

सन् 1292 ई. में सुल्तान ने मन्दावर पर आक्रमण किया। मन्दावर पहले दिल्ली सल्तनत के अधीन रह चुका था लेकिन राजपूतों ने उसे छीन लिया था। राजपूतों ने सुल्तान का डटकर सामना किया। किन्तु अन्त में मन्दावर पर सुल्तान का पुनः अधिकार हो गया।

मालवा तथा देवगिरि पर आक्रमण –

फिरोज के भतीजे अलाउद्दीन ने 1292 ई. में मालवा पर आक्रमण किया और भिलसा का किला जीत लिया। वहाँ पर उसने अपार धन-सम्पत्ति को लुटा। इसके पश्चात उसने देवगिरि पर आक्रमण किया (1294 ई.)। वहाँ के राजा रामचन्द्रदेव को पराजित करके वहाँ से अपार धन-सम्पत्ति प्राप्त की। khilji vansh in hindi

मंगोलों के आक्रमणों का प्रतिरोध –

जलालुद्दीन के शासनकाल में मंगोलों ने भारत पर आक्रमण किय। सन्न 1992 में डेढ लाख मंगोल सेना ने हुलागू (हलाकू) के पौत्र के नेतृत्व में पंजाब पर आक्रमण कर दिया। जलालुद्दीन ने शीघ्र ही आक्रमणकारी के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी और मंगोलों को भयंकर पराजय दी लेकिन अन्त में मंगोलों ने फिरोज से सन्धि कर ली जिसके परिणामस्वरूप सुल्तान ने उसकी सेनाओं को शान्तिपूर्वक लौट जाने की आज्ञा दे दी। यह सुल्तान की महान् भूल थी, वह चाहता तो उसी समय वह मंगोलों की शक्ति को पूर्णतः नष्ट कर सकता था।

जलालुद्दीन का वध –

जलालुद्दीन को जब यह सूचना दी गयी कि अलाउद्दीन ने देवगिरि पर आक्रमण करके अपार धनराशि प्राप्त कर ली है और उसे वह सुत्लान को समर्पित करना चाहता है तो सुल्तान को अपार प्रसन्नता हुई। अलाउद्दीन के छोटे भाई उलुगखाँ ने सुल्तान को यह विश्वास दिलाया कि अलाउद्दीन सुल्तान से भेंट करने का इच्छुक है लेकिन आपके सम्मुख उपस्थित होने का उसमें साहस नहीं है क्योंकि बिना सुल्तान की आज्ञा के उसने देवगिरि पर आक्रमण किया है। जलालुद्दीन तुरन्त अपने भतीजे से मिलने के लिचल पड़ा। अलाउद्दीन ने उसको मारने के लिए अच्छी तरह से जाल बिछा रखा था। सुल्तान ने अपनी रक्षा के लिए किसी प्रकार की सावधानी नहीं बरती। परिणाम यह हुआ कि भेंट के समय निर्दयता से उसका कत्ल कर दिया गया और अलाउद्दाीन न अपने को सुल्तान घोषित कर दिया। जलालुद्दीन के सिर को भाले में छेदकर पास के प्रान्तों में घुमाया गया। khilji vansh in hindi

यह तो थी खिलजी वंश (1290-1320 ई.) और जलालुद्दीन फिरोज खिलजी (1290-1296 ई.) की जानकारी के नोट्स अगली पोस्ट में हम आपको अलाउद्दीन खिलजी और उसकी उत्तरी भारत विजयों के बारे में जानकारी देंगे तो बने रहिए Upsc Ias Guru .Com के साथ 🙂 

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