आंग्ल-मैसूर युद्ध – कारण, महत्त्व और परिणाम Notes

Hello दोस्तों, एक बार फिर से स्वागत है आपका Upsc Ias Guru .Com वेबसाइट पर आज की पोस्ट में हम आपको 18 वीं शताब्दी में भारत की राजनीतिक स्थिति और उपनिवेशवाद आक्रमण- 8 (आंग्ल – मैसूर युद्ध) के बारे में बताएंगे, तो चलिए शुरू करते हैं आज की पोस्ट

अंग्रेजों का मैसूर पर आक्रमण हैदर अली – angle mysore yudh

1722 में हैदर अली का जन्म मैसूर के एक फौजदार व बून्दीकोट के जागीरदार फतहमुहम्मद के यहाँ हुआ था। पिता की मृत्यु के पश्चात बड़ा होने पर वह अपनी योग्यता से डिंडीगल का फौजदार बना। मैसूर का राजा कृष्ण राज नाम मात्र का शासक था। सम्पूर्ण शक्ति वहां के मंत्री देवराज व नंदराज के हाथों में थी। 1661 में हैदर अली मैसूर के नंदराज से सत्ता छीन स्वयं सर्वे सर्वा बन गया। अंग्रेजों को उसकी बढ़ती हुई शक्ति खटकने लगी।

प्रथम आंग्ल – मैसूर युद्ध के कारण (1767-69)


हैदर अली और फ्रांसीसियों के मित्रतापूर्ण सम्बंधों ये अंग्रेज नाराज थे।

कर्नाटक के नवाब और हैदर अली की शत्रुता थी जबकि अंग्रेज कर्नाटक के मित्र थे इससे भी हैदर अली और अंग्रेजों के सम्बंध।

मालाबार जो अंग्रेजों का मित्र था, हैदर अली द्वारा उसके भूभाग पर अधिकारी करने से अंग्रेज नाराज हो गये।

अंग्रेजों ने मराठों व निजाम के साथ मिलकर हैदर अली के विरूद्ध एक त्रिगुट संगठन बना लिया। हैदर अली अपनी शक्ति को जानता था, उसने कूटनीति से काम लिया। मराठों को 35 लाख रूपये देकर युद्ध में तटस्थ रहने की बात स्वीकार करवा ली, निजाम को प्रादेशिक लोभ देकर अपनी ओर मिला लिया। 1767 में हैदर अली व निजाम की संयुक्त सेना ने कर्नाटक पर आक्रमण कर दिया। लेकिन वे अंग्रेजों से संधि कर ली। मैंगलोर को हैदर अली ने अंग्रेजों को पराजित कर अपने अधिकार में ले लिया। 1769 ई से हैदर अली ने मद्रास पर आक्रमण कर उसे घेर लिया। लाचार अंग्रेजों ने उसके साथ 4 अप्रैल 1769 को मद्रास की संधि कर ली। इस संधि के अनुसार दोनों ने एक दूसरे के जीते प्रदेश लौटा दिये तथा बाह्य आक्रमण के समय एक दूसरे को सहयोग देने का वचन दिया।

द्वितीय आंग्ल- मैसूर युद्ध के कारण (1780-84)


अंग्रेज प्रथम युद्ध की हार व अपमान का बदला लेने के लिए आतुर थे।

मद्रास की संधि की राजाओं की दृष्टि से अंग्रेज निष्ठावान नहीं थे और जब मराठों ने मैसूर पर आक्रमण किया तो अली को सैनिक सहयोग नहीं किया, इससे हैदर अली नाराज था।

गुंटूर पर अंग्रेजी अधिकार से हैदर अली नाराज हो गया।

इस बार हैदर अली ने अंग्रेजों के विरूद्ध त्रिगुट बना लिया जिसमें वह स्वयं, निजाम और मराठा शामिल थे। हैदर अली ने जलाई 1780 में कर्नाटक पर आक्रमण कर अकार्ट घेर लिया, नवाब पराजित हो अंग्रेजों की शरण में मद्रास चला गया। हैदर अली को सफलता मिल रही थी कि दुर्भाग्य से 1782 में उसकी मृत्यु हो गई। मराठा युद्ध से अलग हो गये। हैदर अली के पुत्र टीपू सुल्तान ने युद्ध जारी रखा। युद्ध से परेशान दोनों ने 11 मार्च 1784 को मंगलोर की संधि कर ली, जिसके अनुसार दोनों ने एक दसरे के विजित क्षेत्र व बन्दियों को रिहा कर दिया तथा अंग्रेजों ने मैसूर में हस्तक्षेप न करने का वचन दिया।

तृतीय आंग्ल- मैसूर युद्ध (1790-92)


मंगलोर की संधि दोनों पक्षों की मजबूरी थी। मैसूर के प्रभाव को समाप्त करने के लिए अंग्रेज, मराठा और निजाम से मिल गये। टीपू ने फ्रांसिसी सहायता प्राप्ति के लिए असफल प्रयास किये। वह मालाबार की सुरक्षा के लिए कोचीन में स्थित डच दुर्ग खरीदना चाहता था, लेकिन अंग्रेज समर्थित ट्रावनकोर के राजा ने इन्हें खरीद टीपू को नाराज कर दिया, यही तृतीय आंग्ल मैसूर युद्ध का तात्कालिक कारण था। कॉर्नवालिस ने विशाल सेना लेकर मैसूर पर आक्रमण कर दिया। टीपू अधिक समय तक संघर्ष नहीं कर सका और 1792 में श्रीरंगपट्टम की संधि कर ली। इसके अनुसार टीपू का आधा राज्य उससे छीन अंग्रेजों और उसके समर्थकों को मिल गया। टीपू ने अंग्रेजों को 3 करोड़ रूपये क्षतिपूर्ति की राशि और बन्धक के रूप में अपने दो पुत्रों को भी रखना स्वीकार किया।

चतुर्थ- आंग्ल मैसूर युद्ध के कारण (1799)

श्रीरंगपट्टम की संधि टीपू के लिए अपमानजनक थी और राज्य के अंग भंग से वह अंग्रेजों से बदला लेना चाहता था।

टीपू द्वारा फ्रांसीसियों से सहयोग व भारत आने के लिए नेपोलियन से किया गया पत्र व्यवहार ने भी मतभेद बढ़ा दिए।

टीपू सुल्तान ने वैलेजली की सहायता सन्धि करने के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया।

टीपू ने फ्रांसीसियों को सेना में ऊँचे पद दिये व सम्मानित किया जिससे अंग्रेज नाराज हो गए।

वैलेजली मैसूर को ब्रिटिश सत्ता के अधीन करना चाहता था।


फरवरी 1799 में वैलेजली ने युद्ध की घोषणा कर दी। विशाल अंग्रेज सेना का मुकाबला टीपू ने बड़ी वीरता के साथ किया और मारा गया. उसी के साथ उसका राज्य समाप्त हो गया। जुलाई 1799 में नवस्थापित मैसूर के नये शासक के साथ सहायक संधि करके उसे ब्रिटिश साम्राज के अधीन कर लिया गया।

यह तो थी 18 वीं शताब्दी में भारत की राजनीतिक स्थिति और उपनिवेशवाद आक्रमण- 8 (आंग्ल – मैसूर युद्ध) की जानकारी के नोट्स अगली पोस्ट में हम आपको टीपू सुल्तान का मूल्यांकन के बारे में जानकारी देंगे तो बने रहिए Upsc Ias Guru .Com के साथ 🙂

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