तृतीय आंग्ल-मराठा युद्ध – कारण, महत्त्व और परिणाम Notes

Hello दोस्तों, एक बार फिर से स्वागत है आपका Upsc Ias Guru .Com वेबसाइट पर आज की पोस्ट में हम आपको 18 वीं शताब्दी में भारत की राजनीतिक स्थिति और उपनिवेशवाद आक्रमण- 7 (तृतीय-आंग्ल मराठा युद्ध (1817-18)) के बारे में बताएंगे, तो चलिए शुरू करते हैं आज की पोस्ट

तृतीय आंग्ल मराठा युद्ध (1817-18) third anglo maratha war

1813 में लॉर्ड हैंस्टिंग्स गर्वनर जनरल बना। वह भी वेलेजली की तरह अंग्रेजी साम्राज्य के प्रसार का समर्थक था और भारत में अंग्रजों की सर्वोच्चता स्थापित करना चाहता था। पेशवा ने अपने मंत्री त्रम्बकराव की सलाह से मराठा संघ के अध्यक्ष के रूप में कार्य करने का प्रयास किया। 13 जून 1817 को की गई संधि के अनुसार पेशवा ने मराठा संघ के अध्यक्ष पद को त्याग दिया। 5 नवम्बर 1817 को दौलतराव सिन्धिया के साथ भी नई संधि की गई। जिसके अनुसार पिण्डारियों को सहयोग नहीं करने का वचन दिया। राजपूतों से सीधे सन्धियाँ करने का अधिकार अंग्रेजों को सिन्धिया से प्राप्त हुआ। पेशवा ने इस दिन पूना स्थित ब्रिटिश रेजिडेन्सी पर आक्रमण कर दिया। रेजिडेन्ट एलफिन्सटन को भाग कर एक सैनिक छावनी में शरण लेनी पड़ी। इसके साथ ही तृतीय पराठा युद्ध आरम्भ हो गया। पेशवा के साथ पृथक रहे। फरवरी 1818 में “अष्टी’ के युद्ध में पेशवा की अन्तिम पराजय हुई। third anglo maratha war

मराठा संघ का विघटन –


18 जून 1818 को मेल्काम ने पेशवा से सन्धि कर ली। इसके अनुसार पेशवा पद समाप्त कर उसे 8 लाख रूपये की पेंशन दे बिठूर (कानपुर) भेज दिया। 1852 ई. मे उसकी मृत्यु हो गई। भौंसले सीताबलदी के युद्ध में और होल्कर महीदपुर के युद्ध में अंग्रेजों से पराजित हुए। अंग्रेज व होल्कर के मध्य मन्दसौर सन्धि के साथ ही अंग्रेजों का भारत में प्रभुत्व स्थापित हो गया।

यह तो थी 18 वीं शताब्दी में भारत की राजनीतिक स्थिति और उपनिवेशवाद आक्रमण- 7 (तृतीय आंग्ल-मराठा युद्ध) की जानकारी के नोट्स अगली पोस्ट में हम आपको आंग्ल-मैसूर युद्ध – कारण, महत्त्व और परिणाम के बारे में जानकारी देंगे तो बने रहिए Upsc Ias Guru .Com के साथ 🙂

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