द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध – कारण, महत्त्व और परिणाम Notes

Hello दोस्तों, एक बार फिर से स्वागत है आपका Upsc Ias Guru .Com वेबसाइट पर आज की पोस्ट में हम आपको 18 वीं शताब्दी में भारत की राजनीतिक स्थिति और उपनिवेशवाद आक्रमण- 6 (द्वितीय आंग्ल मराठा युद्ध (1802-04)) के बारे में बताएंगे, तो चलिए शुरू करते हैं आज की पोस्ट

द्वितीय आंग्ल मराठा युद्ध (1802-04) second anglo maratha war

यह युद्ध दो चरणों में हुआ पहला 1802-04 व द्वितीय युद्ध 1804-05 तक। 1798 ई. में साम्राज्यवादी लॉर्ड वैलेजली गवर्नर जनरल बनकर आया। 1800 ई. में मराठा दरबार में सिन्धिया और होल्कर में नाना फडनवीस की मृत्यु के बाद अपना वर्चस्व स्थापित करने को लेकर मतभेद प्रारम्भ हो गया। इस समय बाजीराव द्वितीय पेशवा पर सिन्धिया नियन्त्रण स्थापित करने में सफल रहा। 1801 में पेशवा ने जसवन्त राव होल्कर के भाई बिट्ट जी होल्कर की हत्या करवा दी। होल्कर ने पेशवा पर आक्रमण कर दिया। अक्टूबर 1802 को होल्कर ने पेशवा और सिन्धिया की संयुक्त सेना को पराजित कर दिया और विनायक राव को पेशवा बना दिया गया। बाजीराव पेशवा पद की पुनः प्राप्ति के लिए अंग्रेजों की शरण में चला गया जिससे अंग्रेजों को पुनः मराठा राजनीति में हस्तक्षेप का अवसर मिल गया। second anglo maratha war

द्वितीय आंग्ल मराठा युद्ध के कारण

• पेशवा बाजीराव द्वितीय की अयोग्यता – पेशवा अपने ही मराठा सरदारों की समस्याओं का ठीक प्रकार से समाधान नहीं कर पाया। वह नाना फड़नवीस से मुक्ति पाने के लिए दौलत राव सिन्धिया से सम्बन्ध सुदृढ करने का प्रयास कर रहा था, इसी मध्य होल्कर व सिन्धिया के बीच संघर्ष छिड़ गया तो बाजीराव द्वितीय अंग्रेजों की शरण में चला गया।

• मराठा सरदारों में आपसी द्वेष – मराठा राजनीति में अपना-अपना वर्चस्व स्थापित करने को लेकर होल्कर व सिन्धिया में प्रतिस्पर्धा थी, इस फूट का लाभ अंग्रेजों को मिला।

• नाना फड़नवीस की मृत्यु – 1800 ई. में नाना फड़नवीस की मृत्यु के पश्चात् मराठों को एक करने वाला कोई नहीं रहा। परिणाम स्वरूप मराठा सरदारों में आपसी कलह बढ़ता चला गया और जिसकी परिणति युद्ध के रूप में हई।

• साम्राज्यवादी महत्वकांक्षा – 1798 में लॉर्ड वेलेजली गवर्नर जनरल बनकर भारत आया जिसका प्रमुख उद्देश्य अपने अंग्रेज साम्राज्य का प्रसार करना था। मराठों पर आक्रमण करने के उद्देश्य से अंग्रेजों ने अपदस्थ पेशवा के साथ बेसिन की संधि कर ली। second anglo maratha war

बेसिन की संधि- (31 दिसम्बर 1802) की शर्ते


स्थायी रूप से एक अंग्रेज सेना पूना दरबार में रहेगी जिसका वार्षिक खर्चा 26 लाख रूपये पेशवा अंग्रेजों को देगा।

कम्पनी की सहमति के बिना पेशवा न तो किसी से युद्ध अथवा सन्धि करेगा, और न ही किसी यूरोपियन को अपनी सेना में रखेगा।


सूरत शहर अंग्रेजों को सौंप दिया जाएगा। निजाम, गायकवाड़ के साथ सभी विवाद अंग्रेजों को पंच बनाकर निपटाएगा।

पेशवा ने निजाम के राज्य से चौथ वसूली का दावा त्याग दिया।

1803 में बाजीराव पुनः अंग्रेज सेना के संरक्षण में पेशवा बन गया। जी. एस. सरदेसाई ने लिखा है- “बेसिन की संधि ने | शिवाजी द्वारा स्थापित मराठा स्वतंत्रता का अंत कर दिया। लॉर्ड केलसर ने लिखा है- “इस संधि ने अंग्रेजों को अन्तहीन और विवादास्पद झगड़ों में फंसा दिया है और साथ ही तीन महान शक्तियों से शत्रुता में उलझा दिया है। second anglo maratha war
युद्ध – यह युद्ध मराठा सरदारों से उत्तर भारत व दक्षिण भारत में एक साथ लड़ा गया। दक्षिण भारत में अंग्रेजी सेना का नेतृत्व आर्थर वेलेजली (ड्यूक ऑफ वेंलिग्टन) के पास था। भौंसले ने अंग्रेजों से संघर्ष किया।अरगांव के युद्ध (1803) में पराजित होने पर भौंसले ने अंग्रेजों से देवगांव की संधि कर ली। अत्तर में जनरल लेक ने सिन्धिया की राजधानी ग्वालियर पर अधिकार कर लिया। लासवाड़ी के युद्ध में पराजित होने पर सिन्धिया ने दिसम्बर 1803 में सुर्जी अर्जुनगांव की सन्धि कर ली। सन्धि से गंगा जमुना के दोआब का प्रदेश अंग्रेजों के पास आ गया। उसने अंग्रेज सहायक सेना रखना स्वीकार कर लिया।

द्वितीय चरण (1804-05) –

अंग्रेजों का अभी मराठा नेता होल्कर से संघर्ष शेष था। अंग्रेज जब सिन्धिया और भौंसले से युद्ध में व्यस्त थे तब व्यस्तता का लाभ उठाकर होल्कर ने जयपुर पर आक्रमण कर दिया। जयपुर के अंग्रेजों के साथ अच्छे संबंध होने के कारण इस आक्रमण से वे होल्कर से नाराज हो गये। होल्कर ने अपने क्षेत्र में नियुक्त तीन अंग्रेज अधिकारी (विकर्स, डाँन. धान) को मौत के घाट उतार दिया। वेलेजली ने कर्नल मोद्यन्सन के नेतृत्व में होल्कर के विरूद्ध सेना भेज दी। जिसे होल्कर ने मकन्दरा के दर्रे (राजस्थान) में न केवल बुरी तरह पराजित किया, वरन उसकी 5 बटालियन तथा 6 कम्पनियां परी तरह नष्ट कर दी। इसके बाद होल्कर दिल्ली की ओर बढ़ा, लेकिन कर्नल लेक ने डीग के युद्ध में व पुनः फर्रूखावाद में होल्कर को पराजित कर दिया। होल्कर ने अपने मित्र भरतपुर के राजा के यहाँ शरण ली लेक ने भरतपुर दुर्ग घेर लिया, किन्तु अधिकार न कर सका।

जाटों व मराठों की वीरता से सहस्त्रों अंग्रेज सैनिक मारे जाने से अंग्रेजों का मनोबल टूट गया व कम्पनी प्रशासन भी हिल गया। 1805 कॉर्नवालिस को पुनः भेजा गया, लेकिन शीध्र ही उसकी मृत्यु हो गई। इसी वर्ष उसका उत्तराधिकारी जार्ज बालों ने मराठों के साथ शान्ति एवं मैत्री की नीति अपनाने का निश्चय किया। नवम्बर 1805 में सिन्धिया से नई सन्धि की गई। होल्कर से संघर्ष अनिर्णित रहा लेकिन इसकी शक्ति कम हो गई। अंग्रेजों व होल्कर के मध्य जनवरी 1806 में राजपुर घाट की सन्धि हो गई। इससे होल्कर को उत्तरी क्षेत्र के प्रदेशों से अपना अधिकार छोड़ना पड़ा। अंग्रेजों ने होल्कर को टोक व रामपुर के क्षेत्र लौटा दिये, होल्कर ने राजपुतने के आन्तिरक मामले में हस्तक्षेप नहीं करने का वचन दिया।

यह तो थी 18 वीं शताब्दी में भारत की राजनीतिक स्थिति और उपनिवेशवाद आक्रमण- 6 (तृतीय आंग्ल-मराठा युद्ध) की जानकारी के नोट्स अगली पोस्ट में हम आपको तृतीय आंग्ल -मराठा युद्ध – कारण, महत्त्व और परिणाम के बारे में जानकारी देंगे तो बने रहिए Upsc Ias Guru .Com के साथ 🙂

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