छठी सदी ई.पू. – गणतंत्र व 16 महाजनपदों नगरीकरण का उदय

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गणतंत्रो की स्थापना 

छठी सदी ई.पू. के राजनीतिक इतिहास की एक महत्वपूर्ण विशेषता गणतंत्रो की स्थापना थी। इस काल में राजनीतिक क्षेत्र में हमें राजतंत्रो के साथ -साथ कुछ गणतंत्रो का भी उल्लेख प्राप्त होता है। इन गणतंत्रो की सूचना पाली ग्रंथों एवं यूनानी लेखकों से प्राप्त होती है। पाली ग्रंथों में 10 गणतंत्रो का उल्लेख किया गया है ,जिनमें प्रमुख थे –

  • वैशाली के लिच्छवी
  • मिथिला के विदेह
  • कुशीनगर के मल
  • पावापुरी के मल
  • पिपलीवन के मोरिय
  • कपिलवस्तु के साक्ष्य आदि। 

उसी प्रकार सिकंदर कालीन यूनानी लेखकों ने भी उत्तर पश्चिमी भारत के कुछ गणतंत्रो का उल्लेख किया है, जिनमें प्रमुख थे- कठ, अस्सक, यौधेय, मालव, क्षुद्रक, अग्रश्रेणी क्षत्रिय, सौभूति, मुचुकर्ण  आदि। Era of the Sixth Century B.C. janapadas and mahajanapadas         

विभिन्न ऐतिहासिक साक्ष्यों से यह ज्ञात होता है कि इन गणतंत्रो में शासक वर्ग का निर्वाचन निर्वाचन जनता के द्वारा किया जाता था। प्रत्याशियों की न्यूनतम योग्यताए निश्चित थी। निर्वाचन में गुप्त महादान पद्धति (शलाका पद्धति) की भी व्यवस्था थी। यहां तक कि  प्रजा को निरंकुश एवं अक्षम राजा को उसके पद से हटाने का अधिकार प्राप्त था।       

किंतु यदि इन गणतंत्रो के स्वरूप एवं सफलता पर दृष्टिपात किया जाए, तो इनकी सीमाएं स्पष्ट हो जाती है। प्रथम इन्हें वास्तविक अर्थ में गणतंत्र नहीं बल्कि कुलीन तंत्र ही कहना उचित प्रतीत होता है। यद्यपि शासक वर्ग के चयन में जनता की प्रत्यक्ष भूमिका होती थी, लेकिन शासक वर्ग का चयन सदैव यही कुलीन एवं श्रेष्ठ वंश से ही किया जाता था। द्वितीय कुछ गणतंत्र,जैसे- यौधेय, मालव,क्षुद्रक, अम्बष्ठ आदि हिमालय की तलहटटियों में विकसित हुए थे इससे इनका आर्थिक आधार अत्यंत कमजोर था तथा यह राजतंत्र के प्रसार का सामना नहीं कर सके। तृतीय, तत्कालीन सम्राजवादी युग में गणतंत्रात्मक पद्धति उचित नहीं थी, क्योंकि इस पद्धति के अंतर्गत निर्णय लेने के समय की अनुचित बर्बादी होती थी। यही कारण है कि इनमें से कोई भी गणतंत्र न तो अपने साम्राज्य का विस्तार कर सका और न ही अपने अस्तित्व को बचाए रख सका। हम देखते हैं कि शीघ्र ही कौशल एवं मगध के साम्राज्यवादी प्रसाद ने इन गणतंत्रों के पतन की प्रक्रिया प्रारंभ कर दी और आगे गुप्त काल में समुद्रगुप्त के अभियान के पश्चात इन गणतंत्रो का अंत हो गया ।           

उपयुक्त सीमाओं के बावजूद छठी सदी ई.पू. में स्थापित गणतंत्रो का प्राचीन भारतीय इतिहास में विशेष महत्व है। वस्तुतः गणतंत्रो ने वर्तमान भारत के लोकतंत्र की न केवल आधारशिला निर्मित कर दी, बल्कि इसकी कुछ अनिवार्य विशेषताएं भी निश्चित कर दी।     

16 महाजनपदों/ द्वितीय नगरीकरण का उदय     

छठी सदी ई.पू. के राजनीतिक इतिहास की दूसरी महत्वपूर्ण विशेषताएं- 16 महाजनपदों /द्वितीय नगरीकरण का उदय था। बौद्ध ग्रंथ अंगूर निकाय एवं जैन ग्रंथ भगवती सूत्र में 16 महाजनपदों का उल्लेख किया गया है Era of the Sixth Century B.C. janapadas and mahajanapadas

सोलह महाजनपद (16 Mahajanapadas) और उनकी राजधानी – छठी शताब्दी ईo पूo भारत में सोलह महाजनपदों का अस्तित्व था। इसकी जानकारी बौद्ध ग्रन्थ अंगुत्तर निकाय और जैन ग्रन्थ भगवतीसूत्र से प्राप्त होती है। तमिल ग्रन्थ शिल्पादिकाराम में तीन महाजनपद – वत्स, मगध, अवन्ति का उल्लेख मिलता है। इन 16 महाजनपदों में से 14 राजतंत्र और दो (वज्जि, मल्ल) गणतंत्र थे। बुद्ध काल में सर्वाधिक शक्तिशाली महाजनपद – वत्स, अवन्ति, मगध, कोसल

महाजनपदराजधानी
काशीवाराणसी
कोशलश्रावस्ती
अंगचम्पा
चेदिशक्तिमती
वत्सकौशाम्बी
कुरुइंद्रप्रस्थ
पांचालअहिच्छत्र, काम्पिल्य
मत्स्यविराटनगर
सूरसेनमथुरा
अश्मकपैठान/प्रतिष्ठान/पोतन/पोटिल
अवन्तिउज्जैन, महिष्मति
गांधारतक्षशिला
कम्बोजहाटक/राजपुर
वज्जिवैशाली
मल्लकुशीनगर, पावा
मगधगिरिव्रज – राजगृह

16 महाजनपदों के उदय में लोहे की भूमिका को लेकर इतिहासकारों के मध्य विवाद है। डी डी कोसांबी एवं आर एस शर्मा जैसे इतिहासकारों ने द्वितीय नगरीकरण में लोहे की भूमिका को निर्णायक रूप में स्वीकार किया है। वहीं दूसरे पक्ष के इतिहासकारों जैसे डी के चक्रवर्ती , निहार रंजन रे, अल्चिन आदि ने लोहे के प्रभाव को कम करके आंका है। Era of the Sixth Century B.C. janapadas and mahajanapadas

डी डी कोसांबी एवं आर एस शर्मा के अनुसार द्वितीय नगरीकरण में लोहे की प्रमुख भूमिका थी। उनका मानना है की लौह उपकरणों की सहायता से मध्य गंगा घाटी के जंगलों को साफ़ कर कृषि योग्य भूमि का विस्तार किया गया। साथ ही कृषि उपकरणों जैसे लोहे का फाल, कुदाल, हसिया आदि के प्रयोग से बेहतर तरीके से खेती की जा सकी, परिणामस्वरूप कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई। कृषि उत्पादन से आर्थिक समद्धि आई, परिणामस्वरूप द्वितीय नगरीकरण का उदय हुआ।

दूसरी तरफ कुछ अन्य विद्वानों ने द्वितीय नगरीकरण में लोहे की भूमिका को कम करके आंका है। इन विद्वानों ने अपने मत के पक्ष में निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किए। प्रथम पुरातात्विक उत्खनन में मध्य गंगा घाटी से लौह निर्मित कृषि उपकरण बहुत कम संख्या में मिले। द्वितीय, पुरातात्विक उत्खनन में उत्तर भारत में लोहे का प्रारंभिक साक्ष्य 1000 ईस्वी पूर्व के आसपास अतरंजीखेड़ा (उत्तरप्रदेश) से प्राप्त होता है, यहां यह प्रश्न उपस्थिति होता है कि लोहे के प्रारंभिक साक्ष एवं द्वितीय नगरीकरण के आरंभ में 500 वर्षों से अधिक का समय क्यों लगा तृतीय, दक्षिण भारत में महा पाषाण काल 1000 ईस्वी पूर्व के लोगों ने लौह उपकरणों का प्रयोग आरंभ कर दिया था, किंतु वहां नगरीकरण बहुत बाद में प्रारंभ हुआ। इतिहासकारों का यह मानना है कि लोहे का प्रारंभिक प्रयोग युद्धस्त्रो के रूप में ही किया गया था, जबकि कृषि उपकरणों के रूप में लोहे का प्रयोग सीमित मात्रा में ही हुआ। Era of the Sixth Century B.C. janapadas and mahajanapadas

उपयुक्त बातों के अतिरिक्त इतिहासकारों का दूसरा वर्ग यह स्वीकार करता है कि द्वितीय नगरीकरण के उदय में राजनीतिक प्रशासनिक, आर्थिक एवं धार्मिक कारणों की महत्वपूर्ण भूमिका थी। कुछ केंद्रों जैसे राजगृह, पाटलिपुत्र ,चंपा आदि का नगरों के रूप में उदय इसलिए संभव हो सका क्योंकि वे राजधानी क्षेत्र थे। इन राजधानी क्षेत्रों में शासक वर्ग के लोग रहते थे, जिन्हें दूरस्थ क्षेत्रों से राजस्व प्राप्त होता था। इससे इन राजधानी क्षेत्रों में आर्थिक समृद्धि आई, परिणाम स्वरूप इनका विकास नगरों के रूप में हो सका। वहीं कुछ नगरों के विकास में आर्थिक कार्यक्रमों की भी भूमिका रही थी। तक्षशिला ,बनारस, अवंती आदि का विकास नगरों के रूप में इसलिए हो सका , क्योंकि वे व्यापारिक दृष्टि से महत्वपूर्ण केंद्र थे। इनमें से  तक्षशिला एवं बनारस व्यापारिक मार्ग में अवस्थित थे, जिससे इन्हें आर्थिक लाभ प्राप्त हुआ, जबकि बनारस एवं अवंती सूती वस्त्र के उत्पादन में अग्रणी क्षेत्र थे। साथ ही कुछ अन्य नगरों जैसे श्रावस्ती, वैशाली, मथुरा आदि के विकास में धार्मिक कारणों की भी महत्वपूर्ण भूमिका थी। यह क्षेत्र धार्मिक गतिविधियों के केंद्र थे, जिससे यहां चढ़ावे के रूप में धन का संकेद्रण होता गया परिणामस्वरूप  इनका विकास नगरों के रूप में संभव हो सका । Era of the Sixth Century B.C. janapadas and mahajanapadas

उपयुक्त तथ्यों के विश्लेषण के पश्चात यह कहा जा सकता है कि द्वितीय नगरीकरण के उदय में यद्पि लोहे की भूमिका को निर्णायक रूप से स्वीकार नहीं किया जा सकता है, किंतु द्वितीय नगरीकरण में लोहे की कुछ ना कुछ भूमिका अवश्य रही होगी। लोहे की भूमिका ना केवल कृषि उत्पादन में हुई वृद्धि में, बल्कि उसके संरक्षण में भी महत्वपूर्ण थी, किंतु लोहे की भूमिका को अन्य संबंध कारकों से जोड़कर देखे जाने की आवश्यकता है। हम यह भी जानते हैं कि कृषि उत्पादन में बढ़ोतरी हेतु केवल लोहा ही उत्तरदाई नहीं था, बल्कि छठी शताब्दी ईस्वी पूर्व में ही सर्वप्रथम धान की  रोपाई पद्धति को अपनाया गया, दासों को कृषि क्षेत्र में भी लगाया गया तथा पशु हत्या पर पाबंदी लगाई। इन सब के परिणाम स्वरूप ही कृषि उत्पादन में बढ़ोतरी हुई होगी, जिससे नगरीकरण को प्रोत्साहन मिला होगा। साथ ही ऊपर उल्लेखित कुछ महत्व पूर्ण नगरों के विकास में राजनीतिक, आर्थिक एवं धार्मिक कारकों की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही होगी। 

निष्कर्ष यह कहा जा सकता है कि द्वितीय नगरीकरण के उदय में लोहे की भूमिका को अन्य संबंध कारकों के साथ जोड़कर देखे जाने की आवश्यकता है।

यह तो थी छठी सदी ई.पू. की महत्वपूर्ण घटनाएं /परिवर्तन [ गणतंत्रो की स्थापना ||16 महाजनपदों/ द्वितीय नगरीकरण का उदय ] की सम्पूर्ण जानकारी अगली पोस्ट में हम आपको मगध साम्राज्य का उत्कर्ष/ उदय की जानकारी देंगे तो बने रहिए Upsc Ias Guru .Com के साथ 🙂

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