Hello दोस्तों, स्वागत है आपका फिर से हमारी इतिहास नोट्स की सीरीज में इससे पहले हमने आपको मुगल साम्राज्य के पतन के कारण के बारे में विस्तार से बताया था, इस पोस्ट से हम आपको मुगलों की प्रशासनिक व्यवस्थाः केन्द्रीय शासन के बारे में बतायेगे जिससे आपको मध्यकालीन भारत के इतिहास की जानकारी मिल सके और आपकी तैयारी को और भी बल मिल सके तो चलिए शुरू करते है आज की पोस्ट 🙂
मुगलकालीन प्रशासनिक अधिकारियों की सूची
प्रशासनिक इकाई | अधिकारी |
प्रांत (सुबा) | 1. सिपेहसालार: प्रमुख कार्यकारी (अकबर के अधीन और बाद में सुबेदार को निजाम के रूप में जाना जाता था) 2. दीवान: राजस्व विभाग का प्रभारी 3. बक्शी: सैन्य विभाग का प्रभारी |
जिला (सरकार) | 1. फौजदार: प्रशासनिक प्रधान 2. अमाल /अमलगुज़र : राजस्व संग्रह 3. कोतवाल: कानून और व्यवस्था का रख-रखाव, आपराधिक मामलों का निशान और मूल्य नियमन |
परगना | 1. शिकादर: प्रशासनिक प्रमुख ने खुद को फौजदार और कोतवाल के कर्तव्यों में मिला 2. अमीन क़ानूनगो: राजस्व अधिकारी |
गाँव | 1. मुक़द्दम: मुखिया 2. पटवारी: मुनीम 3. चौकीदार |
मुगलकालीन प्रशासनिक ढाँचा : मुगलों ने सल्तनत और शेरशाह की प्रशासनिक प्रणाली की कई विशेषताएँ बनाए रखी। शेरशाह के शासन (गांवो का समूह), सरकार (परगनों का समूह) और सरकारों के समुह (कुछ-कुछ सुबे अथवा प्रांतो जैसे) का प्रशासनिक इकाइयों को विशिष्ट अधिकारियों के नियंत्रण में रखा गया था। मुगलों ने एक नई क्षेत्रीय इकाई बनाई, जिसे सूबा कहा जाता था। जागीर और मनसब प्रणाली के संस्थानों को भी मुगलों द्वारा ही प्रारंभ किया गया था। इस प्रकार परिवर्तन और निरंतरता दोनों मुगल प्रशासनिक ढांचे को निह्नित करते थे, जिससे इस प्रणाली में उच्च दर्जे का केंद्रीयकरण किया गया था। Mugalon kee prashaasanik vyavastha kendreey shaasan
मुगलकालीन केंद्रीय प्रशासन
सम्राट – सम्राट प्रशासन का सर्वोच्च प्रधान था और उसके नियंत्रण में सभी सैन्य और न्यायिक शक्तियां थी। मुगल प्रशासन में सभी अधिकारी अपनी शक्ति और स्थिति के लिए सम्राट के प्रति उत्तरदायी थे। सम्राट को यह अधिकार था कि वह अपनी इच्छाशाक्तत आधकारियों की नियुक्ति करता था. उनकी पदोन्नति करता था और उन्हें हटा सकता था। सम्राट पर संस्थागत या अन्यथा कोई दबाव नहीं था। सम्राट अपने कार्य सुगमता से कर सकें, इसके लिए कुछ विभाग बनाए गए थे।
वकील और वजीर – ‘वजारत अथवा वकालत’ (दोनों शब्दों का प्रयोग एक ही अर्थ में किया जाता था) का स्थान दिल्ली सल्तनत के दौरान भी कुछ रूपों में मौजूद था। वजीर का पद दिल्ली सल्तनत में अफगान शासकों के काल में अपनी उत्कृष्ट स्थिति खो चका था। वजीर के पद को मुगलों ने फिर चालू किया। बाबर और हुमायूं के वजीर अत्यधिक शक्तिशाली थे। अकबर के मंत्री बैरम खाँ (1556-60) के काल में वकील-वजीर को असीमित शक्तियां प्राप्त थीं। अकबर ने वजीर की शक्तियों को कम करने के लिए उससे वित्तीय शक्तियां छीन ली थी। वजीर की शक्तियों का बड़ा झटका लगा था। Mugalon kee prashaasanik vyavastha kendreey shaasan
दीवान-ए-कुल – दीवान-ए-कुल मुख्य दीवान था। यह राजस्व वित्त के लिए उत्तरदायी था। अकबर ने दीवान को राजस्व शक्तियां सौंप का दीवान के कार्यालय को मजबूती प्रदान की। दीवान सभी विभागों के सभी लेन-देन तथा भुगतानों की जांच व निरीक्षण करता था और प्रांतीय दीवानों की देख-रेख करता था।
मीर बक्षी – मीर बक्षी’ सेना के प्रशासन से संबंधी सभी मामले देखता था। मनसबदारों की नियुक्ति के आदेश तथा उनके वेतन के कागजातो को समर्थन प्रदान करता और उन्हें स्वीकृत करता था। वह इस बात पर सख्ती से निगरानी रखता था शस्त्रो का और युद्ध सामग्री का उचित रख-रखाव किया जा रहा है सेवा मांगने वाले नए सदस्यों को सम्राट के समक्ष मीर बक्षी द्वारा प्रस्तुत किया जाता था। Mugalon kee prashaasanik vyavastha kendreey shaasan
सद्र-उस-सद्र – सद्र-उस-सद्र पुरोहित संबंधी विभाग का मुखिया था। उसका मुख्य कार्य शरीयत के कानूनों की रक्षा करना था। सद्र का कार्यालय योग्य व्यक्तियों और धार्मिक संस्थाओं को वजीफा प्रदान करता था। अकबर के शासन काल के पहले पच्चीस वर्षों के दौरान इस कार्यालय को अत्यधिक आकर्षण बना दिया था। 1580 में महजर की घोषणा ने इसके अधिकार सीमित कर दिए थे। महजर के अनुसार धार्मिक विद्वानों के विचारों में मतभेद होने पर अकबर का विचार मान्य होता था। यह अधिकारी धार्मिक और धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए दी जाने वाली राजस्व मुक्त अनुदानों के मामलों का भी निर्धारण करता था। बाद मे राजस्व मुक्त अनुदान प्रदान करने के लिए भी सदर के अधिकारों पर अनेक प्रतिबंध लगा दिए गए थे।
‘मुहतसिब’ (लोक आचरण नियंत्रण) की नियुक्ति आचार संहिता नियमावली के सामान्य अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए की जाती थी। यह वजन और माप की जांच करता था और उचित कीमतें आदि लागू करता था।
मीर सामाँ – मीर सामाँ शाही कारखानों का प्रभारी अधिकारी था। उसकी शाही परिवार के लिए सभी प्रकार की खरीदारी करना और उनके भंडारण की जिम्मेदारी थी। वह शाही परिवार के उपयोग हेतु विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन पर भी निगरानी रखता था। Mugalon kee prashaasanik vyavastha kendreey shaasan
यह तो थी मुगलों की प्रशासनिक व्यवस्थाः केन्द्रीय शासन की जानकारी के नोट्स अगली पोस्ट में हम आपको विजयनगर साम्राज्य की उत्पत्ति के बारे में जानकारी देंगे तो बने रहिए Upsc Ias Guru .Com के साथ 🙂