संकट में भारतीय कृषि और कृषक

संकट में भारतीय कृषि और कृषक 

-भारतीय अर्थव्यवस्था के तीन मुख्य आधार स्तंभ कृषि सेवा और उद्योग है वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था में सेवा क्षेत्र का 53% योगदान है दूसरे स्थान पर औद्योगिक क्षेत्र का योगदान है जो की जीडीपी में लगभग 31% है तीसरे स्थान पर भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ मानी जाने वाली कृषि है जो कि भारतीय जीडीपी का करीब 17% हिस्सा प्रदान करती है कृषि क्षेत्र को भारतीय अर्थव्यवस्था के प्राथमिक क्षेत्र के रूप में भी जाना जाता है पिछले कुछ दशकों के दौरान अर्थव्यवस्था के विकास में उद्योग और सेवा क्षेत्र का योगदान तेजी से बढ़ा है जबकि कृषि क्षेत्र के योगदान में गिरावट हुई है भारत में आज कुल श्रमशक्ति का 53% कृषि और सहायक क्रिया में शामिल है 1950 के दशक में जीडीपी में कृषि क्षेत्र का योगदान जहां 50% था 1991 में जब नई आर्थिक नीतियां लागू की गई तो उस समय जीडीपी में कृषि क्षेत्र का योगदान 34.9% था अब 2018 में करीब 16.4% रह गया यह आंकड़े कृषि में लगे मानव श्रम और उसके द्वारा उपयोग किए जाने वाले तथा आय की असमानता के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था के सर्वाधिक असंतुलन के सूचक हैं । Problems in indian agriculture notes

पिछले तीन दशकों से भारत में कृषि व्यवस्था सबसे अधिक संकटग्रस्त स्थिति से गुजर रही है लगातार बारिश के कारण भारत को इस तरह का संकट झेलना पड़ा और 2014 में भारत को खराब मानसून का सामना करना पड़ा जिसने कृषि के संकट को और भी बढ़ा दिया था भारत में लगभग 65% कृषि बारिश पर निर्भर करती है और आधे से अधिक क्षेत्र में अत्यधिक बारिश हमेशा परेशानी का कारण बनती है हाल के महीनों में आंध्र प्रदेश मध्य प्रदेश और पंजाब जैसे विभिन्न राज्यों की किसानों के नेतृत्व में कई विरोध प्रदर्शन हुए हैं आज भारत के किसान अपने अस्तित्व को बनाए और बचा रखने के लिए अपने दोनों अंतिम हथियार का इस्तेमाल कर रहे हैं जिस के दांव पर उनकी जिंदगी लगी हुई है एक हथियार गोलियां खाकर आंदोलन करने का है तो दूसरा आत्महत्या यानी खुद को खत्म कर लेने का बीते 4 सालों में किसान आत्महत्या में तेजी आई है 2015 में 4595 मजदूरों ने आत्महत्या की जबकि 2016 में आत्महत्या करने वाले खेतिहर मजदूरों की संख्या 5019 हो गई राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक नाबार्ड की ओर से जारी आंकड़े बताते हैं कि देश में कृषि से जुड़े 52% परिवार आज भी कर्ज के बोझ तले जी रहे हैं सर्वेक्षण के मुताबिक ग्रामीण परिवारों को कृषि के बजाय दैनिक मजदूरी करने से ज्यादा आमदनी मिल रही है अखिल भारतीय वित्तीय समावेश सर्वेक्षण के मुताबिक ग्रामीण इलाकों में लोगों की मासिक आय का 19% हिस्सा खेती से आ रहा है जबकि आमदनी में दिहाडी का हिस्सा 40% से अधिक है अर्थात किसानों के लिए कृषि  घाटे का सौदा बनती जा रही है दरअसल यह केवल किसानों का नहीं बल्कि पूरे कृषि क्षेत्र का संकट है। Problems in indian agriculture notes

 कंसर्न्ड वर्ल्ड वाइड तथा वेल्थगरहाएफ द्वारा संयुक्त रूप से विकसित वैश्विक हंगर इंडेक्स के 13 वे संस्करण में विश्व के 119 देशों के लिए जो रैंकिंग जारी की गई उसमें विश्व की सबसे छठी बड़ी अर्थव्यवस्था होने का दावा करने वाली भारतीय अर्थव्यवस्था की रैंक 103 वी है इससे यह स्पष्ट होता है कि खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भर होने वाला भारत आज इस विरोधाभास की स्थिति में है कि जहां एक तरफ खाद्यान्नों का उत्पादन बढ़ रहा है वहीं दूसरी तरफ भूख में भी लगातार वृद्धि हो रही है अर्थात अन्नदाता कहलाने वाला किसान आज भूख के साए में जी रहा है देश में उच्च उत्पादन के बावजूद 2014 के अनुमान बताते हैं कि 15% लोग अब भी कुपोषण के शिकार हैं वर्ष 2015 में कृषि बजट लगभग 15 हजार करोड़ था 2018 19 में इसे बढ़ाकर 58080  करोड़ कर दिया गया है वहीं दूसरी तरफ आर्थिक सर्वेक्षण की रिपोर्ट में कहा गया है कि देश के 17 राज्यों की किसानों की वार्षिक आय लगभग 20000 है इस तरह से करोड़ों किसानों की मासिक औसत लगभग 1662 है । Problems in indian agriculture notes

-सरकार का खाद्य सब्सिडी का बिल बढ़ता जा रहा है यह वर्ष 2013 में 92000 करोड से बढ़कर वर्ष 2018,19 में लगभग 1.69 लाख करोड़ हो गया है भारत में पिछले कुछ दशक में कुल आयात में कृषि आयात की हिस्सेदारी 1990 91 में 2.8% से बढ़कर 2014 15 में 4.2% हो गई जबकि कृषि निर्यात की हिस्सेदारी 18.5% से घटकर 12.7% हो गई खाद्य सब्सिडी बढ़ने से कृषि गत पदार्थों के निर्यात पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है क्योंकि देश में मुद्रास्फीति के बढ़ने से भारत की विदेश में प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता कमजोर हो जाएगी । Problems in indian agriculture notes

देश में किसानों की जो समस्या है उसे हल करने के लिए सरकार को कोई ठोस पहल करनी ही होगी अन्यथा कृषि का अस्तित्व खतरे में पड़ता हुआ दिखाई पड़ रहा है वर्ष 2011 की जनगणना को ही ले तो प्रतिदिन 2000 किसानों की खेती छोड़ने की बात सामने आ रही है केवल 2% किसानों के बच्चे ही किसी को अपना पेशा बनाना चाहते हैं अगर ऐसा है तो हमें कोई हैरानी भी नहीं होनी चाहिए क्योंकि इसके अनेक कारण है कई राज्यों में किसानों के विरोध प्रदर्शन मंदसौर मध्य प्रदेश की पुलिस कार्यवाही में कई किसानों की मौत के बाद भी किसानों की उपेक्षा अभी तक जारी है एनसीआरबी द्वारा लगातार किसानों की आत्महत्या की रिपोर्ट भी सरकार को प्रभावित करने में नाकाम रही है यह स्पष्ट किया जाना समीचीन होगा कि उसकी आमदनी का प्रश्न बहुत जटिल है इसमें कृषि से जुड़े अनेक प्रश्न है जैसे भू धारण पद्धति भू जोतो का आकार उत्पादन की प्रणाली सरकार द्वारा निर्धारित मूल्य पर सार्वजनिक खरीद की व्यवस्था स्टोरेज की व्यवस्था सार्वजनिक वितरण व्यवस्था उत्पादकता बढ़ाने के उपाय कृषि पदार्थ के आयात निर्यात की व्यवस्था प्राकृतिक प्रकोप अकाल बाढ़ तूफान आदि से होने वाली क्षति पूर्ति के लिए देश में फसल बीमा की व्यवस्था कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिए बीज उर्वरक नाशक दवाइयों की आवश्यकता आदि। Problems in indian agriculture notes

 वर्ष 2006 में स्वामीनाथन की अध्यक्षता में नियुक्त राष्ट्रीय आयोग ने व्यापक अवधारणा पर आधारित 50% अधिक न्यूनतम समर्थन मूल्य पर किसानों की उपज के सर्वजनिक खरीद का समर्थन किया था जिसमें किसानों के समस्त व्ययों को शामिल किया गया था परंतु सरकार द्वारा अभी तक सिफारिश लागू नहीं की जा सकी है भारत में कृषिगत  क्षेत्र कृषि पशुपालन वानिकी और मछली पालन में सकल मूल्यवर्धन की वार्षिक वृद्धि दर में भारी उतारा चढ़ाव देखते रहे हैं और यह कम ही बनी रहती है 2010 11 में कृषि की वार्षिक वृद्धि दर 8.6% जो वर्ष 2017 में 2.1% रह गयी कृषि की इतनी कमजोर वृद्धि दर वाले देश में 2015 16 से 2022 23 की अवधि में कृषकों की आमदनी को दुगुना करने का वादा पूरा किया जाना बहुत मुश्किल है क्योंकि कृषि में वास्तविक वृद्धि दर 4% लक्ष्य को बढ़ाकर इसे 10% करने पर ही उपयुक्त लक्ष्य की प्राप्ति संभव हो पाएगी जो एक असंभव परिकल्पना नजर आती है। Problems in indian agriculture notes

– प्रधानमंत्री ने भारत की स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे होने पर अर्थात 2015 16 की तुलना में 2022 23 तक किसानों की आय दोगुनी करने का आह्वान किया है उसे पूरा करने के लिए कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने 7 बिंदु की रणनीति अपनाई है जिसमें प्रति बूंद अधिक फसल प्रत्येक खेत की मिट्टी गुणवत्ता और गुणवान बीज गोदाम और कोल्ड चैन खाद्य प्रसंस्करण कृषि बाजार फसल बीमा योजना की विभिन्न गतिविधियों जैसे बागवानी पशुपालन मछली पालन मधुमक्खी पालन मुर्गी पालन तथा एकीकृत खेती के प्रोत्साहन पर विशेष जोर दिया गया है भारत में एक विमर्श व्यापक स्तर पर है कि कृषि को कैसे पुनर्जीवित किया जाए हर दिन कर्ज में डूबे किसानों की मौत की खबरें भारतीय कृषि में काला अध्याय जोड़ रही है वजह यह है कि कृषि घाटे का सौदा बन गया है देश में धान और कपास के अलावा भारी मात्रा में सार्वजनिक खरीद की ठोस व्यवस्था विद्यमान नहीं है देश में फसलों की उचित भंडारण की व्यवस्था भी नहीं है जल्दी खराब होने वाली सब्जियां और फलों के प्रोसेसिंग की भी समुचित व्यवस्था नहीं है नई तकनीकों के प्रति किसानों को जानकारी का अभाव है जिसके कारण प्रति इकाई उत्पादन अपेक्षाकृत कम होता है सरकारी सहायता और सरकारी ऋण और सब्सिडी की समुचित व्यवस्था नहीं है जटिल नियम कानूनों ने भ्रष्टाचार को बढ़ावा देकर राजकीय सहायता से किसानों को दूर कर रखा है। Problems in indian agriculture notes

– विश्व खाद्य रिपोर्ट

भारत 2017 में अनुबंध या संविदा कृषि को प्रोत्साहित करना कृषि के लिए संजीवनी साबित हो सकती है इसमें किसानों और निजी खरीदार कंपनियों के बीज उत्पादन की प्राप्ति खरीद और विपणन की शर्तों को पहले से तय किया जाता है लिहाजा संबंधित कंपनियां कृषकों को कृषि आगत तकनीकी सलाह परिवहन की सुविधा भी उपलब्ध कराती है इससे आधारभूत सरचना का विकास हो पाता है और किसान पूर्व निर्धारित गुणवत्ता वाले उत्पाद एक निश्चित समय अवधि में उत्पादित कर पाता है भारत का दूध के उत्पादन में विश्व में प्रथम स्थान है विश्व के कुल दुग्ध उत्पादन में भारत का 19% योगदान है पिछले 4 वर्षों के दौरान डेयरी क्षेत्रों में 30.45% की वृद्धि हुई है राष्ट्रीय गोकुल मिशन के तहत 50% भ्रूण अन्तरण प्रौद्योगिकी लेबो की स्थापना की जा रही है परंतु पशुपालकों को दूध की डोर स्टेप स्तर पर वास्तविक कीमत नहीं मिल पाएगी पशुधन विकास का सपना अधूरा रहेगा फल और सब्जी में दूसरा स्थान है अंडो में तीसरा स्थान तथा मछली के उत्पादन में दूसरा स्थान है इस क्षेत्र में प्रोसेसिंग के लिए व्यापक असर विद्यमान हैं तथा इनके प्रोसेसिंग हेतु व्यापक कदम उठाए जाने अपेक्षित है ऑपरेशन फ्लड से अब ऑपरेशन ग्रीन की तरह बढ़ना चाहिए ताकि किसानों को समुचित लाभ प्राप्त हो सके फसल बीमा व्यवस्था मृदा स्वास्थ्य कार्ड के मार्फ़त मृदा की गुणवत्ता का बीज खाद कीटनाशक दवाइयां उपलब्ध करवाई जाए।

-वर्ष 2017 18 में भारत में कुल खाद्यान्न उत्पादन 285 मिलियन टन रहा जिस में चावल का उत्पादन 113 मिलीयन टन और गेहूं का उत्पादन 100 मिलीयन टन रहा खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भर होने के बावजूद भी आज किसान अपनी उपज के सम्मानजनक मूल्य के लिए तरस गया है अधिक उत्पादन होने की दशा में प्रतिस्पर्धा के कारण कम मूल्य प्राप्त होते हैं वहीं कम उत्पादन होने की दशा में वास्तविक लागत भी प्राप्त नहीं होती इसके अलावा अतिवृष्टि अनावृष्टि जैसी प्राकृतिक आपदाओं के कारण किसान हमेशा आशंका के घेरे में ही जीवन यापन करता है किसान के लिए आय की सुरक्षा जैसा कोई प्रावधान उपलब्ध नहीं है इसी कारण खेतीकिसानी लगातार घाटे का सौदा बनी रहती है किसानों की कर्ज माफी करना इस समस्या का समाधान नहीं है बल्कि उसके स्थान पर किसानों की उपज के बदले सरकार द्वारा निश्चित आय का प्रावधान किया जाना अपेक्षित है ताकि किसान को उसकी उपज का वास्तविक मूल्य प्राप्त हो सके और यह दायित्व सरकार को निभाना अति आवश्यक है कम ब्याज पर किसानों को कर्ज की उपलब्धता हो न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सरकार पूर्ण निगरानी रखे तथा प्रतिवर्ष उत्पाद और कृषि लागत के अनुरूप समर्थन मूल्य का निर्धारण किया जाए कृषि में आधुनिक तकनीकी अनुसंधान और विस्तार की प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए आज भारत को एक नई कृषि क्रांति की आवश्यकता है इसके लिए एक राष्ट्रीय आयोग गठित कर कृषि के विस्तार की ओर ध्यान दिया जाना चाहिए दरअसल सरकार की नीतियां दोषपूर्ण है एक तरफ सरकार सरकारी कर्मचारियों को 108 प्रकार के भत्ते उपलब्ध कराती है और दूसरी ओर देश के अन्नदाता ओं को केवल न्यूनतम समर्थन मूल्य जैसा लॉलीपॉप थमा देती है Problems in indian agriculture notes

जबकि इसका फायदा सभी किसान उठा भी नहीं पाते एक अध्ययन के अनुसार गेहूं और चावल की पैदावार करने वाले 30% किसान ही न्यूनतम समर्थन मूल्य का फायदा उठाते हैं इसका कारण है कि सरकार सभी किसानों के अनाज को नहीं खरीद पाता 70% किसानों को बाजारों में ही ओने पौने दामों में अपनी फसल को खपाना पड़ता है ऐसे में यह सवाल लाजमी है कि किसानों को भी सरकारी कर्मचारियों की तरह भत्ते उपलब्ध क्यों नहीं करवानी चाहिए कम से कम बुनियादी जरूरतों वाले चार भत्ते तो होने ही चाहिए मसलन गृह भत्ता चिकित्सा भत्ता शिक्षा भत्ता तथा यात्रा भत्ता अगर किसानों को कर्ज के भोज से बचाना है तो उन्हें यह भत्ते उपलब्ध कराने होंगे इसके अलावा कृषकों के लिए आय नीति का भी प्रावधान होना चाहिए न्यूनतम समर्थन मूल्य से समान रूप से सभी किसान फायदा उठा नहीं पाते दरअसल इसी के लिए हमारे नीति नेताओं की लापरवाही जिम्मेदार हैं वे कभी देश की गंभीर समस्याओं के प्रति कभी चिंतित होते ही नहीं वे कभी इस बात की समीक्षा करना जरूरी नहीं समझते हैं कि उनकी योजनाओं का लाभ सही लोगों तक पहुंच रहा है या नहीं इसी प्रकार की गैर जिम्मेदारी रवैया के कारण युवाओं में भी निराशा है नतीजा वे किसानी को कभी भी अपना पेशा नहीं बनाना चाहते यही कारण है कि एक बड़ी आबादी गांव से शहरों की ओर लगातार पलायन कर रही है अगर इस प्रक्रिया पर रोक नहीं लगी तो खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर होने की स्थिति पर हमारे इतराने का अवसर भी हम गवा बैठेंगे और खाद्यान्न की कमी हमारी प्राथमिक समस्या बन जाएगी दरअसल सरकारी अमला मूल समस्याओं को नजरअंदाज कर ऊपर ऊपर दिखाओ काम करने में व्यस्त है प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना डीडी किसान चैनल मृदा स्वास्थ्य कार्ड राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन राष्ट्रीय कृषि विकास योजना एकीकृत तिलहन दलहन पाम तेल और मक्का योजनाएं ई मार्केटप्लेस आदि योजनाओं के बावजूद किसान समुदाय लगातार घाटे में चल रहे हैं सच तो यह है जब फसलें तबाह होती है तो किसानों मुसीबत में होते हैं जब पैदावार अच्छी होती है तब भी वे कई बार खुद को ठगा हुआ महसूस करते हैं |

सवाल है कि अगर किसानों को उनकी पैदावार का न्याय संगत मूल्य नहीं मिलेगा तो उनके नाम पर चला जाने वाले कार्यक्रम की क्या सार्थकता है हमारे नीति नियंताओं को चाहिए कि वे किसानों के हक में ईमानदारी से कदम उठाये साथ ही कृषि को व्यवहारिक बनाने के लिए अनुबंध कृषि को एक विकल्प के रूप में अपनाने पर जोर दें ताकि किसानों की सफलता की संभावना को अधिकतम किया जा सके मई 2018 में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की समिति ने कृषि क्षेत्र में हरित क्रांति कृषि उन्नति योजना को मंजूरी दी पंचवर्षीय योजना से इतर 2018 और 2019 की अवधि के लिए इस योजना में केंद्र की हिस्सेदारी 33270 करोड़ है अंब्रेला योजना में 11 योजनाएं और मिशन का उद्देश्य समग्र और वैज्ञानिक तरीके से कृषि क्षेत्र में विकास करना है जिससे उत्पादन उत्पादकता और बेहतर रिटर्न को बढ़ाकर किसानों की आय में वृद्धि की जाए आम बजट 2018 19 रबी और खरीफ फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य उत्पादन लागत के कम से कम डेढ़ गुना रखने की घोषणा कर सरकार ने साहसिक और बहू प्रतीक्षित कदम उठाया लेकिन इस घोषणा के अनुरूप ऐसी प्रक्रिया खोजना जरूरी है जिससे खुले बाजार में कृषि उत्पाद की कीमत एम एस पी से नीचे जाने पर भी एमएसपी पर ही खरीद सुनिश्चित हो सके इसे ध्यान में रखते हुए नीति आयोग को केंद्र तथा राज्य सरकारों से मशवरा कर लेना चाहिए तथा ऐसा तरीका विकसित करने का जिम्मा दिया गया है जिससे प्रतिकूल बाजार परिस्थितियों में भी किसानों के हितों की रक्षा हो सके सरकार ने बहुत अधिक उपज होने पर भी अधिक उत्पाद को खरीदने का वादा भी किया है मध्य प्रदेश सरकार द्वारा आरंभ की गई भावांतर भुगतान योजना बाजार में उतार-चढ़ाव की सूरत में 8 कृषि जींस के मूल्य संबंधी जोखिम से सुरक्षित है जमीनी स्तर पर उत्साहजनक नतीजे मिलने के कारण इस योजना को अन्य राज्यों में भी लागू किया जा सकता है सरकार कीमत तथा मांग का अनुमान लगाने वायदा और विकल्प बाजार के इस्तेमाल गोदाम में भंडारण की प्रणाली के विस्तार और निर्यात और आयात से जुड़ी खास मसलो के बारे में समय से निर्णय लेने हेतु उचित नीतियां और तरीके तैयार करने में भी जुटी है । Problems in indian agriculture notes

-जिस तरह से उद्योग और व्यवसाय को सरकारी रियायते तथा सुविधाएं दी जाती है उसी तरह कृषि को भी सरकारी सहायता मिलने पर ही किसानों को ऋण के चक्कर से उभारा जा सकता है तथा कृषि के प्रति लोगों का सकारात्मक रुझान प्रोत्साहित किया जा सकता है यह सत्य है कि कृषि को व्यवसाय का दर्जा दिए बिना किसानों की आय को दोगुना किया जाना स्वपन मात्र है जहां दवा निर्माता कंपनियों को दवा का मूल्य स्वयं निर्धारित करने की स्वतंत्रता होती है तथा यह मूल्य लगभग 100 गुना से अधिक तक भी हो जाता है इसी तरह किसानी को भी व्यवसाय मानते हुए किसानों को अपनी उपज का मूल्य निर्धारण करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए तथा किसी तरह की हानि होने पर उसकी भरपाई सरकार द्वारा की जाने की जिम्मेदारी उठाई जाने अपेक्षित है फसलों के मामलों में चीन ब्राजील और अमेरिका जैसे बड़े कृषि उत्पादक देशों की तुलना में भारत की प्रति हेक्टेयर में उत्पादित होने वाली उपज कम है ऐसे कई कारण है जो कि कृषि उत्पादकता को प्रभावित करते हैं जैसे खेती की जमीन का आकार घट रहा है और किसान अब भी काफी हद तक मानसून पर निर्भर है सिंचाई की पर्याप्त सुविधा नहीं है साथ ही उर्वरकों का असंतुलित प्रयोग किया जा रहा है जिससे मिट्टी की उपजाऊ पन कम होता है देश के विभिन्न भागों में सभी को आधुनिक तकनीक उपलब्ध नहीं है ना ही कृषि के लिए औपचारिक स्तर पर ऋण उपलब्ध हो पाता है सरकारी एजेंसियों द्वारा खाद्यान्न की पूरी  खरीद नही की जाति और किसानों को लाभकारी मूल्य नहीं मिल पाते हैं आज भारत की किसान खेती में अपना कोई भविष्य नहीं देखते हैं उनके लिए खेती किसानी बोझ बन गया है हालत यह है कि देश का हर दूसरा किसान कर्जदार है राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के आंकड़े बताते हैं कि यदि कुल कर्ज का औसत निकाला जाए तो देश के प्रति कृषक परिवार पर औसतन 47000 का कर्ज है नोटबंदी ने किसानों की कमर तोड़ कर रख दी है | Problems in indian agriculture notes


आंकड़े बताते हैं कि नोटबंदी के चलते किसानों को कृषि उपज का दाम 40% तक कम मिला जानकार बताते हैं कि खेती किसानी पर जीएसटी का विपरीत प्रभाव पड़ेगा इससे पहले से ही घाटे में चल रहे किसानों की लागत बढ़ जाएगी नीति आयोग ने जो 3 वर्षीय एक्शन प्लान जारी किया है उसमें 2017,2018 से 2019,20 तक के लिए कृषि में सुधार की रूपरेखा प्रस्तुत की गई है इस एक्शन प्लान में कृषि क्षेत्र में सुधार के लिए जिन नीतिओ की वकालत की गई है उनमें न्यूनतम समर्थन मूल्य एमएसपी को सीमित करना अनुबंध वाली खेती कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के साथ जी ए एम बीजों को बढ़ावा देना और इस क्षेत्र में निजी कंपनियों के सामने मौजूद बाधाओं को खत्म करने जैसे उपाय शामिल है कुल मिलाकर पूरा जोर कृषि क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भूमिका बढ़ाने पर है यह दस्तावेज एक तरह से भारत में कृषि के निजीकरण का रोडमैप है दरअसल खेती का सारा मुनाफा खेती संबंधी कारोबार से जुड़े कंपनियां लूट रही है अगर इतनी बड़ी संख्या में आबादी लगभग शून्य प्रॉफिट पर इस सेक्टर में इतने सस्ते में उत्पाद दे रही है तो फौरी तौर पर इसकी जरूरत ही क्या है इसी के साथ ही किसानों और खेती से जुड़ी कारोबार तेजी से फल फूल रहे हैं उर्वरक खाद बीज कीटनाशक और दूसरे कृषि कारोबार से जुड़े कंपनियां सरकारी रियायतों का फायदा भी लेती है हमारे राजनीतिक दलों के लिए किसान एक ऐसी चुनावी मुद्दे की तरह है जिसे चाह कर भी इसलिए भी नजरअंदाज नहीं कर सकते क्योंकि यह देश की करीब आधी आबादी की पीड़ा है जो अब नासूर बन चुका है विपक्ष में रहते हुए तो सभी पार्टियां किसानों के पक्ष में बोलती हैं और उनकी आवाज को आगे बढ़ाती है लेकिन सत्ता में आते ही वे उसी विकास के रास्ते पर चलने को मजबूर होती है जहां खेती और किसानों की कोई हैसियत नहीं है। Problems in indian agriculture notes

– किसानों की आमदनी बढ़ाने हेतु उपाय किसानों के लिए कीमत नीति की जगह आय नीति बनाई जानी चाहिए भारतीय कृषि मानसून पर आधारित है इसलिए मॉनसून को ध्यान में रखते हुए विभिन्न सिंचाई पद्धति को उन्नत कर किसानों को सस्ते दरों पर उपलब्ध करवाएं भारत में जल्दी खराब होने वाली फसलों की प्रोसेसिंग के अभाव में काफी सारी फल और सब्जियां खराब हो जाते हैं इसलिए इनके उचित प्रोसेसिंग के लिए छोटी छोटी यूनिट लगाकर किसानों को प्रोत्साहित किया जाए भारत में खाद्यान्नों की अधिक उत्पादन होने की दशा में उनके उचित भंडारण नहीं होने से खुले में पड़ा अनाज प्राकृतिक आपदा आंधी और बारिश की वजह से खराब हो जाता है सरकार को चाहिए कि भारत में खाद्यान्न उत्पादन क्षमता को देखते हुए खाद्यान्न भंडारण की ग्राम पंचायत स्तर पर ही व्यवस्था की जाए और बीमा सुरक्षा कवच कृषि भंडारण सुविधा न्यूनतम समर्थन मूल्य का उपज के अनुसार निर्धारण फल और सब्जियों की प्रोसेसिंग खाद्य सब्सिडी आदि की व्यवस्थित प्रक्रिया और प्रतिबद्धता जता कर ही किसानों को कृषि के संकट से बाहर निकाला जा सकता है। Problems in indian agriculture notes


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