अरस्तु :आदर्श राज्य का स्वरूप व उद्देश्य

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General studies paper – 4 notes 

Part – 16

Topic – राज्य का स्वरूप और विशेषताएं, अरस्तु पुस्तके,अरस्तु का मध्यम मार्ग  Golden Mean, राज्य का उद्देश्य और कार्य


 -अरस्तु

अरस्तु विलक्षण प्रतिभा का धनी था उनकी पुस्तकों की संख्या लगभग 400 बताई गई हैं उसके द्वारा विषयों पर लिखे जाने वाले मुख्य पुस्तके निम्न है

  1. राजनीति the politics , The constitution of Athens 
  2. साहित्य the poetic , The Rhetoric 
  3. भौतिक शास्त्र Physics, Meteorology
  4. मनोविज्ञान De Anima
  5. नीति शास्त्र The ethics 
  6. तर्कशास्त्र और दर्शनशास्त्र Categories, Interpretation, Topic, Prior, Analytics, Prior Metaphysics

– राज्य का स्वरूप और विशेषताएं

राज्य का विकास क्रम स्पष्ट करने के साथ-साथ अरस्तु स्वरूप पर भी प्रकाश डाला गया है जिसकी मौलिक विशेषताएं निम्न है 

-राज्य प्राकृतिक संस्था है

प्लेटो तथा अरस्तु से पहले सोफिस्ट यह मानते थे कि राज्य मनुष्य द्वारा बनाई गई एक कृत्रिम संस्था है इसलिए सिद्धांत के अनुसार राज्य के कानूनों का पालन करने के लिए मनुष्य के पास कोई स्वामित्व आधार नहीं रहता है क्योंकि मनुष्य इनका पालन केवल दंड के भय से या पुरस्कार के आशा से करता है अरस्तु का मानना है कि विवेकशील मनुष्य बुद्धि द्वारा अपनी हित की वृद्धि करना अपना नैतिक दायित्व समझता है यह हित राज्य में ही पूरा हो सकता है अतः वह राज्य के नियमों का पालन करता है इस प्रकार राज्य के नियमों का पालन करने का एक नैतिक आधार बन जाता है अर्थात मनुष्य अपने हित की दृष्टि से इसका पालन करने लगता है राज्य को प्राकृतिक मानने का महत्वपूर्ण कारण है कि इसका विकास धीरे-धीरे स्वाभाविक रूप से हुआ है कोई भी व्यक्ति कुटुंब को कृत्रिम नहीं मानता राज्य में मनुष्य को पशु से अलग करने वाले भौतिक गुणों का विकास का अवसर मिलता है इस तरह राज्य प्राकृतिक है । arastoo ka rajy ke utpatti

-नगर राज्य समाज का श्रेष्ठ राजनीतिक संगठन होता है

अरस्तु की दृष्टि में नगर राज्य मानव समाज का सर्वोत्तम समुदाय है इसे सर्वोत्तम मनाने का कारण  है कि यह सामाजिक विकास का चरम रूप है इसमें मनुष्य की जितनी आवश्यकताएं पूरी होती है उतनी किसी समुदाय में नहीं होती अर्थात परिवार तथा ग्राम केवल कुछ मौलिक आवश्यकताएं पूरी करते हैं किंतु मनुष्य की सभी आध्यात्मिक और बौद्धिक आवश्यकता है नगर राज्य में ही पूर्ण होती हैं । arastoo ka rajy ke utpatti

-राज्य का आत्मनिर्भर होना

आत्मनिर्भरता का अर्थ है अपनी सब आवश्यकताएं पूरा करना क्योंकि परिवार और ग्राम द्वारा मनुष्य की मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति अधूरी रूप में होती है जबकि राज्य द्वारा न केवल इसकी पूर्ति पूर्ण रूप में होती है बल्कि इनके साथ मनुष्य की उच्चतर प्रकृति की तथा  बोद्धिक और नैतिक आवश्यकताएं पूरी होती है इसलिए हम कह सकते हैं कि राज्य में मनुष्य की सभी आवश्यकताएं पूरी हो जाती है।

– राज्य का एकत्व और बहुत्व

प्लेटो ने राज्य के ऊपर बहुत बल दिया था वह समूचे राज्य को एक विशाल परिवार बनाना चाहता था किंतु अरस्तु इससे सहमत नहीं है उनका मानना है कि राज्य में यदि एकता होगी तो राज्य ही नहीं रहेगा राज्य का स्वरूप बहुत्व में है राज्य के विभिन्न तत्व विभिन्न प्रकार के कार्य करते हुए उसे अधिक उन्नत उत्कृष्ट प्राधिकृत बनाते हैं राज्य में एकता होनी चाहिए किंतु यह कठोर अनुशासन के द्वारा विभिन्न भेदों का अंत करके स्थापित नहीं होना चाहिए अपितु विभिन्न संगठन द्वारा स्थापित होना चाहिए । arastoo ka rajy ke utpatti

-राज्य व्यक्ति से पूर्ववर्ती है 

राज्य का निर्माण व्यक्तियों से मिलकर होता है इससे पता चलता है कि पहले व्यक्ति होते हैं और बाद में वे मिलकर राज्य का निर्माण करते हैं यह ऐतिहासिक दृष्टि से भले ही सही हो लेकिन मनोवैज्ञानिक दृष्टि से अरस्तू का राज्य को व्यक्ति का पूर्ववर्ती मानता है अर्थात प्राकृतिक दृष्टि से भी राज्य व्यक्ति से पहले आना चाहिए प्रकृति की अवस्था में नगर राज्य परिवार और व्यक्ति से पूर्ववर्ती है क्योंकि स्मृष्टि आवश्यक रूप से अपने अनुभव से पूर्ववर्ती है यह समूचा शरीर नष्ट हो जाए तो उसका अंग जीवित नहीं किया जा सकता अर्थात आंगिक दृष्टिकोण से समष्टि व्यष्टि से पहले है।

–  राज्य का उद्देश्य और कार्य

अरस्तु का विचार है कि राज्य का उद्देश्य मनुष्य के अधिकतम भलाई करना है इसका कर्तव्य है कि व्यक्ति को भला और सदगुणी बनाने का तथा उसके नैतिक और बौद्धिक गुणों का विकास करें इसलिए उसने लिखा है कि राज्य की सत्ता उत्तम जीवन के लिए है ना कि केवल जीवन व्यतीत करने के लिए। arastoo ka rajy ke utpatti

-अरस्तु का मध्यम मार्ग  Golden Mean

प्लेटो का राजनीतिक चिंतन आदर्शवाद की पृष्ठभूमि पर था अरस्तू ने यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाकर इसमें संशोधन किया इस संशोधन के बाद जो विचार आता है उसे गोल्डन मीन कहते हैं

अरस्तु के अनुसार मध्यम मार्ग का अनुसरण करने वाला जीवन ही अनिवार्य रूप से श्रेष्ठ जीवन है यह मध्यम मार्ग ही ऐसा है जिसे प्राप्त कर लेना प्रत्येक व्यक्ति के लिए संभव है इसके लिए अरस्तु ने विभिन्न क्षेत्रों में अपने विचारों को स्पष्ट किया जैसे

दास प्रथा के संबंध में अरस्तु ने मध्यम मार्ग का अनुसरण किया उस समय यूनान में एक स्कूल ऐसे विचारको का था जो राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की दृष्टि से दासों को जरूरी समझता था वह युद्ध में पकड़कर बंदी बनाना चाहता था जबकि दूसरे स्कूल का मत था कि स्वतंत्रता प्रत्येक प्राणी का जन्मसिद्ध अधिकार है अर्थात दासो की व्यवस्था समाज में नहीं होनी चाहिए अरस्तु ने दोनों को मिलाकर अपने विचार को आगे बढ़ाया। arastoo ka rajy ke utpatti

शासन प्रणाली में भी अरस्तु मध्यमवर्ग की प्रधानता को महत्वपूर्ण मानता है।

अरस्तू जनसंख्या भौगोलिक स्थिति क्षेत्र विभाग के माध्यम से भी मध्यम मार्ग अपनाता है।

अरस्तु की शिक्षा पद्धति भी मध्यम मार्ग का अनुसरण करती है वह शरीर और मन सभी शक्तियों का संतुलित विकास करना चाहता है ना कि सोपानो की भांति केवल शारीरिक शिक्षा पर बल देता है।

उपयुक्त बिंदुओं से स्पष्ट है कि अरस्तु ने मध्यम मार्ग और व्यवहारिकता का अनुसरण करते हुए प्लेटो के आदर्श राज्य के विभिन्न दोषों से बचने का प्रयत्न किया है ।


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