स्वामी विवेकानंद के दार्शनिक विचार

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General studies paper – 4 notes 

Part – 17

Topic – स्वामी विवेकानंद के चिंतन, मानव का व्यवहार या भौतिक स्वरूप व आध्यात्मिक स्वरूप, सार्वभौम धर्म


– स्वामी  विवेकानंद 

विवेकानंद अपने विचारों में वेदांतीक रहे लेकिन उन्होंने गीता के निष्काम कर्म तथा ईसाई के प्रेम और सेवा के आदर्श को भी अनुकरणीय माना बौद्ध धर्म के सर्व मुक्ति बोधिसत्व के आदर्श ने तो उनको बहुत गहराई से प्रभावित किया विवेकानंद के चिंतन में अध्यात्मिकता व्यवहारिकता और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का अद्भुत संगम है उन्होंने आध्यात्मिक उत्थान के पहले जीवन की भौतिक आवश्यकताओं को पूरा कर लेने को आवश्यक माना तथा गरीबों और उत्पीड़ितो के उधार कर्म को ईश्वर आराधना का नाम दिया स्वामी विवेकानंद अपने मन प्राण से एक क्रांतिकारी समाजवादी थे जिन्होंने संपूर्ण मनुष्य जाति को उसके देवी स्वरूप का उपदेश दिया तथा जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उसे प्रकट करने का उपाय बताएं यही उनके जीवन का आदर्श था विवेकानंद के उपदेश वेदांत की क्षमता तथा आत्मा की विश्व व्यापकता के शक्तियों पर प्रतिष्ठित है विवेकानंद मुक्त मन के उदार चित व्यक्ति थे उनके चिंतन का विकास विलक्षण है श्री रामकृष्ण ने विवेकानंद को आलोक पथ दिखाया और अपना भाव विश्वस्त बनाया विवेकानंद ने शंकराचार्य की बुद्धिमता तथा महात्मा बुध की विराट हृदय वाणी को आत्मसात करते हुए संपूर्ण विश्व के कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया । UPSC GS 4 paper Indian thinker swami vivekanand

-मानव का व्यवहार या भौतिक स्वरूप

मनुष्य का भौतिक स्वरूप उसके आध्यात्मिक या वास्तविक स्वरूप की सीमाबद्ध भाव मात्र है या मनुष्य के शरीर धारी अस्तित्व से संबंधित है तथा देश काल की सीमा में बंधा है यदि मनुष्य का जो भौतिक स्वरूप आध्यात्मिक स्वरूप की अपेक्षा निरंतर भले ही हो लेकिन उपेक्षित नहीं है क्योंकि मस्तिष्क शक्ति से संयुक्त होने के कारण मनुष्य अपनी भौतिक स्वरूप में भी विशिष्ट प्राणी है मानव अपने व्यावहारिक स्वरूप के स्तर पर सीमाबद्ध है लेकिन इसी स्थान पर वह अपने अनंत और असीम स्वरूप को प्राप्त कर आगे बढ़ने की निर्मित संघर्ष कर रहा है विवेकानंद का मानना है कि आत्मा का एक ही प्रयोजन है और वह है मुक्ति इसी लक्ष्य की प्राप्ति की लिए मनुष्य के भौतिक स्वरूप का प्रयोजन सिद्ध होता है विवेकानंद के अनुसार मनुष्य का भौतिक स्वरूप आत्मा से भिन्न और मन के साथ संयुक्त है लेकिन  देह आत्मा है और ना मन आत्मा है देह और  मन तो सतत परिवर्तनशील है इसके अनंतर आत्मा अपने स्वरूप और सार तत्वों से शुद्ध व पूर्ण है असीम और सर्वव्यापी है किसी भी व्यक्ति की देह एक समान नहीं रहती तथा मन की सुख दुख सबल दुर्बल आदि भावों के अंतर में झूलता रहता है इसके अतिरिक्त देह और मन में ह्रास और वृद्धि भी दिखाई देती है परिणामस्वरूप देह मन से जुड़े मानव के भौतिक स्वरूप में भी परिवर्तन दिखाई देते हैं लेकिन इसके बाद भी विवेकानंद का कहना है कि मनुष्य अपने व्यवहारिक भौतिक स्वरूप में अन्य प्राणियों की अपेक्षा देह और मन दोनों ही स्तरों पर अधिक व्यवस्थित और संगठित है अतः मानव का भौतिक स्वरूप एक अद्वितीय अवसर और अपूर्ण स्थिति है। UPSC GS 4 paper Indian thinker swami vivekanand

– मनुष्य का वास्तविक आध्यात्मिक स्वरूप

यह मनुष्य का प्राकृतिक स्वरूप है जो वास्तविक है मनुष्य अपने भौतिक स्वरूप की विभिन्न सोपान में से इसी अनंत और प्राकृत स्वरूप को प्रदान करने के लिए संघर्ष करता है मनुष्य अपने आध्यात्मिक स्वरूप में सदा एक अविभक्त समष्टि स्वरूप अनंत आत्मा ही है और यही मनुष्य का यथार्थ व्यक्तित्व है और यही प्राकृत मनुष्य है विवेकानंद के अनुसार प्रत्येक जीवात्मा एक नक्षत्र है और सभी नक्षत्र ईश्वर रूपी अनंत निर्मल नील आकाश में विन्यासीत है यही ईश्वर प्रत्येक जीवात्मा का मूल और यथार्थ स्वरूप है यही ईश्वर प्रत्येक का प्राकृतिक व्यक्तित्व है विवेकानंद मानते हैं कि अपने प्राकृत स्वरूप में मनुष्य अनंत और सर्वव्यापी है और दिखने वाला जीव मनुष्य के वास्तविक स्वरूप का सीमाबद्ध मात्र अतः स्पष्ट है कि विवेकानंद मनुष्य के वास्तविक आत्मिक और आध्यात्मिक स्वरूप को व्यवहारिक भौतिक स्वरूप की अपेक्षा उच्चतर मानते हैं मनुष्य का यह यथार्थ प्रकृत स्वरूप देश काल तथा कार्य कारण से अधिक होने के कारण मुक्त स्वभाव है मनुष्य की आत्मा की भीतर जो यथार्थ सत्य है वह आत्मा को सर्वव्यापी अनंत तथा चैतन्य बनाता है आत्मा अनंत है और उसके संबंध में जन्म और मृत्यु का प्रश्न नहीं उठाया जा सकता। UPSC GS 4 paper Indian thinker swami vivekanand

विवेकानंद मनुष्य के वास्तविक स्वरूप को आत्मन कहते हैं उनके अनुसार मनुष्य अपनी इस यथार्थ आत्म रूप से ब्रह्म रूप ही है आत्मानं और ब्रह्म में अभेद और तादात्म्य मानते हुए विवेकानंद कहते हैं कि मनुष्य के नाम से जिसको हम जानते हैं वह व्यक्तित्व को व्यक्त जगत में अभिव्यक्त करने की संघर्ष का फल मात्र है यह क्रम आत्मा में नहीं है मनुष्य में दिखाई देने वाले परिवर्तन बुरा व्यक्ति भला हो रहा है पशु हो रहा है सब आत्मा में घटित नहीं होता आत्मा सभी जातियों और परिवर्तनों के परे है और यही आत्मा मनुष्य का वास्तविक अध्यात्मिक स्वरूप है यद्यपि आत्मा विभिन्न रूपों में व्यक्त होता है लेकिन इन विभिन्नताओ से इसका मूल स्वरूप विच्छेद नहीं होता है विवेकानंद के अनुसार मैं और तुम के सारे भेद मिथ्या है विवेक के उदय होने पर ही मनुष्य अपने अद्वेत रूप से परिचित होता है जो उसका वास्तविक यथार्थ स्वरूप है उनका विचार है कि मनुष्य प्राय संकट अवस्था या प्रतिकूल परिस्थितियों में ही अपने वास्तविक स्वरूप को जानने का प्रयास करता है जब हम कहते हैं कि मनुष्य को अपने आत्म रूप को जागृत करना चाहिए तो इसका आशय यही है कि हम मैं परे जाने की शक्ति कि मनुष्य के वास्तविक आध्यात्मिक ईश्वरीय स्वरूप का प्रतीक है । UPSC GS 4 paper Indian thinker swami vivekanand

-सार्वभौम धर्म

विवेकानंद कहते हैं प्रत्येक जीव अव्यक्त ब्रह्म है बाहरी और आंतरिक प्रकृति को वशीभूत करके स्वयं में अंतर्निहित ब्रह्मा स्वरूप को व्यक्त करना ही जीवन का परम लक्ष्य है कर्म भक्ति संयम या ज्ञान इनमें से किसी का सहारा लेकर अपने ब्रह्म भाव को व्यक्त कर मुक्त हो जाना धर्म सर्वस्व है धर्म वह वस्तु है जिससे पशु मनुष्य तक तथा मनुष्य परमात्मा तक उठ सकता है विवेकानंद की मान्यता है कि धर्म मनुष्य के चिंतन और जीवन का सबसे ऊंचा स्तर है मानव जाति के भाग्य निर्माण में जितनी शक्तियों में योगदान दिया है उनमें धर्म की शक्ति सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं धर्म ठोस सत्य और तथ्यों को पाने के अतिरिक्त उससे मिलने वाली सांत्वना के अतिरिक्त एक विशुद्ध विज्ञान और एक अध्ययन के रूप में वह मानव मन के लिए सर्वोच्च और स्वस्थ व्यायाम है धर्म मतवार या भौतिक तर्क नहीं है बल्कि आत्मा के ब्रह्म को  जान लेना तद्रुप हो जाना तथा उसका साक्षात्कार करना यही धर्म है धर्म कल्पना की नहीं प्रत्यक्ष दर्शन  की चीज है विवेकानंद मानते हैं कि ब्रह्म प्रकृति पर विजय प्राप्त करना बहुत अच्छी और बड़ी बात है लेकिन अंत प्रकृति को जीत लेना इससे भी बड़ी बात है अपने भीतर के मनुष्य को वश में कर लेना मानव मन के सूक्ष्म कार्यों के रहस्य को समझ लेना तथा उसके आश्चर्यजनक गुप्त भेद को अच्छी तरह से जान लेना यह बातें धर्म के साथ अविछिन्न रूप से संबंध है। UPSC GS 4 paper Indian thinker swami vivekanand

– व्यवहारिक वेदांत

विवेकानंद के अनुसार कोई भी सिद्धांत यदि कार्य रूप में परिणत नहीं किया जा सकता तो बौद्धिक व्यायाम के अतिरिक्त उसका कोई मूल्य नहीं रह जाता है वेदांत धर्म के स्थान पर आरूढ़ होना चाहता है तो उसे संपूर्ण रूप से व्यावहारिक होना चाहिए हमें अपने जीवन की सभी अवस्थाओं में से उसे कार्य रूप में परिणत करने में समर्थ होना चाहिए केवल यही नहीं वेदांत के माध्यम से आध्यात्मिक और व्यावहारिक जीवन के बीच विद्यमान काल्पनिक भेद को भी मिट जाना चाहिए क्योंकि वेदांत एक अखंडता के संबंध में उपदेश देता है वेदांत कहता है कि एक ही प्राण सर्वत्र विद्यमान है वेदांत के माध्यम से धर्म के आदेश को संपूर्ण जीवन का आविष्ट करना हमारे प्रत्येक विचार की भीतर प्रवेश करना और कर्म को अधिक से अधिक प्रभावित करना चाहिए तभी इसकी सार्थकता है विवेकानंद के अनुसार संसार के समस्त धर्म ग्रंथों में एकमात्र वेदांत ही एक ऐसा धर्म ग्रंथ है इसकी शिक्षाओं के साथ बाहरी प्रकृति के वैज्ञानिक अनुसंधान से प्राप्त परिणामों को संपूर्ण सामजंस्य है वेदांत  को अरणय गिरीगृहाओ तक ही सीमित नहीं रखकर उसे हमारे दैनिक जीवन में नागरिक जीवन में ग्रामीण जीवन में राष्ट्रीय जीवन में प्रत्येक राष्ट्र घरेलू जीवन में परिणत किया जा सकता है वेदांत मानव को आत्म परायापन से मुक्त कर आत्मविश्वास से सरोबार करता है विवेकानंद की वेदांतिक दृष्टि के अनुसार मनुष्य ईश्वर की संतान है अनंत आनंद की भागीदार है पवित्र तथा पूर्ण आत्मा है मनुष्य इस मात्र पर देवता है किसी मनुष्य को पापी कहना मानव स्वभाव पर घोर लांछन है इसलिए जरा मरण रहित नित्यानंदमय आत्मा के रूप में वेदांत शुष्क एकता की अपेक्षा अनेकता में एकता का उद्घोष करता है वह व्यक्तित्व को मिटाता नहीं बल्कि वास्तविक व्यक्तित्व का स्वरूप सामने रखता है वेदांत का कहना है कि असीमिताआई ही हमारा सच्चा स्वरूप है वह कभी मुक्त नहीं हो सकती सदा रहेगी वेदांत का अद्वैत रूप यही कहता है कि व्यक्ति जीवन रूप में हम मानव अलग अलग होकर रहते हैं किंतु वास्तव में हम सब एक ही सत्य के स्वरूप हैं और हम अपने को उससे जितना कम पृथक समझेंगे उतना ही हमारा कल्याण होगा वेदांत का संदेश है कि मनुष्य देह में स्थित मानव आत्मा ही एकमात्र उपास्य ईश्वर है पशु भी भगवान की मंदिर है किंतु मनुष्य ही सर्वश्रेष्ठ मंदिर है मानव सेवा ही सर्वश्रेष्ठ उपासना है वेदांत एकतत्ववाद की शिक्षा देता है सब के प्रति विश्वास करना सिखाता है स्वयं के प्रति प्रेम और विश्वास का आशय सब प्राणियों से प्रेम सभी पशु पक्षियों से प्रेम तथा सभी वस्तुओं से प्रेम तथा समस्त प्रकृति से प्रेम है यही महान विश्वास जगत को अधिक अच्छा बना सकता है यह वेदांतक दृष्टि मानव मात्र की समानता का पक्षधर है जो कर्मकांड को निरस्त करती है तथा वर्ण और जाति व्यवस्था को निर्मूल सिद्ध कर मानव गरिमा को प्रतिष्ठित करती है आज भारत समेत विश्व के समस्त देशों को वेदांत की इसी व्यवहारिक दृष्टि की सर्वाधिक आवश्यकता है ।


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