डॉ राम मनोहर लोहिया और समाजवाद

– डॉ राम मनोहर लोहिया और समाजवाद

डॉ राम मनोहर लोहिया 

जन्म : 23 मार्च, 1910.
निधन : 12 अक्तूबर, 1967.
जन्म स्थान : अकबरपुर, (अब अंबेडकरनगर), उत्तर प्रदेश
शिक्षा : स्नातक (कलकत्ता विश्वविद्यालय), डॉक्ट्रेट (बर्लिन विश्वविद्यालय).
राजनीतिक विचारधारा : समाजवाद.
प्रकाशित कृतियां : गिल्टी मेन ऑफ इंडियाज पार्टिशन, हिंदू बनाम हिंदू, इंडिया, चाइना एंड नॉर्दर्न फ्रंटियर्स, मार्क्स, गांधी एंड सोशलिज्म.

– डॉ राम मनोहर लोहिया की दृष्टि में भारत को सुधारने और उसे प्रगति की राह पर लाने का एकमात्र रास्ता समाजवाद था उनके समाजवाद संबंधी विचारों का उल्लेख उनकी पुस्तकों भारत में समाजवाद समाजवाद की राजनीति समाजवाद की अर्थनीति समाजवाद के आर्थिक आधार समाजवादी सम्मेलन हुआ जिसकी अध्यक्षता डॉ राम मनोहर लोहिया ने की 1955 में उनकी अध्यक्षता में समाजवादी पार्टी का गठन हुआ अपनी सक्रिय राजनीति के संपूर्ण काल में हुए समाजवाद की विचारधारा को सुदृढ़ आधार प्रदान करने हेतु प्रयत्नशील रहे लोहिया के समाजवाद की विशेषताएं डॉक्टर लोहिया अपने समाजवादी चिंतन में मार्क्स और गांधी दोनों से प्रभावित दिखाई देते हैं उनके समाजवादी चिंतन की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं डॉ लोहिया का समाजवादी दर्शन उस व्यक्ति पर आधारित है जो सामाजिक पद सोपन क्रम में सबसे नीचे आता है जाति धर्म शास्त्र व्यवस्था ने जिसे चारों ओर से जकड़ रखा है डॉ लोहिया के समाजवाद का उद्देश्य वर्ग विहीन समाज की स्थापना करना है जिसमें शासन व्यवस्था विकेंद्रीकृत हो राम मनोहर लोहिया समाजवाद के माध्यम से ना केवल वर्गों की समाप्ति चाहते थे बल्कि उनकी समाजवादी धारणा में जाति उन्मूलन भी एक आवश्यक तत्व था क्योंकि उनके अनुसार जहां जाति प्रथा के कारण शुद्र को ठोकर मारने की स्थिति हो वहां समाजवाद की कल्पना नहीं की जा सकती हैं अपनी विचारधारा में डॉक्टर लोहिया ने वर्ग की अवधारणा को स्थान देते हुए वर्ग उत्पत्ति का कारण मात्र आर्थिक  नहीं माना बल्कि सामाजिक माना है लोहिया के संदर्भ में मार्क्स से प्रभावित होते हुए उनसे भिन्न है क्योंकि मार्क्स वर्ग उत्पत्ति का आधार मात्रा अधिक तत्व को ही मानते हैं वर्ग की धारणा का भारत के संदर्भ में विश्लेषण करते हुए डॉक्टर लोहिया मानते हैं कि भारत में वर्ग मुख्य रूप से तीन विशेष अधिकारों के कारण उत्पन्न हुए हैं जाति संपत्ति तथा भाषा डॉ लोहिया ने समाजवादी समाज की स्थापना के लिए हिंसात्मक क्रांति का विरोध किया उनके अनुसार हिंसात्मक क्रांति अनुचित होने के साथ-साथ असंभव है लोहिया ने मार्क्स के क्रांति संबंधी विचारों का सविनय अवज्ञा के साथ समन्वय किया है उन्होंने हिंसात्मक क्रांति के स्थान पर सविनय अवज्ञा का पक्ष लिया उनके अनुसार सविनय अवज्ञा के रूप में अहिंसात्मक क्रांति जनता में शक्ति का संचार करेंगी तथा इसके द्वारा जनता का नैतिक उत्थान भी होगा । socialist democracy warrior dr ram manohar lohia

-लोहिया के आर्थिक विचार

लोहिया का आर्थिक दृष्टिकोण उनकी पुस्तक सोशलिस्ट इकोनामी में दिया गया है लोहिया के अनुसार समाजवादी अर्थव्यवस्था का अर्थ है कि उत्पादन के साधन राष्ट्र की संपत्ति होंगे उनको कुछ लोगों तक सीमित रखने की विरोधी थे उनका सामाजिकरण चाहते थे जिससे अधिक से अधिक लोगों का कल्याण हो सके लोहिया का मत था कि जहां तक संभव हो लघु इकाइयों और छोटे यंत्रों का उपयोग करना चाहिए लघु स्तर पर उत्पादन का अर्थ था आर्थिक सत्ता का विकेंद्रीकरण जिससे अधिक से अधिक लोगों को अधिक से अधिक रोजगार के अवसर प्राप्त हो लोहिया ने बड़े उद्योगों में बिजली लोहा और इस्पात आदि को शामिल किया उद्योगों में बड़ी मशीनों के इस्तेमाल के पक्ष में थे इनका निजी क्षेत्र में विश्वास नहीं था क्योंकि उनके अनुसार निजी क्षेत्र द्वारा शोषण को बढ़ावा मिलता है लोहिया ने आय विषमता कम करने पर बल दिया क्योंकि आय में अधिक अंतर समाजवाद की संभावना को क्षीण बना देता है लोहिया ग्रामीण अर्थ व्यवस्था के सुदृढ़ीकरण के पक्ष में थे वे देश की उन्नत के लिए कृषि के उत्थान को आवश्यक मानते थे कृषि पर आधारित अर्थव्यवस्था ग्रामीण जीवन के लिए आवश्यक है भारत के 80% लोग कृषि पर निर्भर है अतः कृषि का विकास भारत की महत्वपूर्ण आवश्यकता है। socialist democracy warrior dr ram manohar lohia

-लोहिया के सामाजिक विचार 

– समाजवाद ना तो संपत्ति का सिद्धांत है और ना राज्य का बल्कि इन सबसे ऊपर यह एक जीवन दर्शन है अतः इस दृष्टि से इसका संबंध जीवन के प्रत्येक पहल से है सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक इस सबंध में जैसा राम मनोहर लोहिया ने कहा है अगर समाजवाद का एक अंग लिया जाता है तो समाजवाद खंडित रह जाता है इसलिए एक सच्चे समाजवादी होने के नाते राम मनोहर लोहिया ने समाजवाद के हर पहलू पर विचार किया है इसमें समाजवाद का सामाजिक पहलू भी शामिल है डॉक्टर राम मनोहर लोहिया ने समाज से संबंधित जिन व्यवस्था पर अपने विचार प्रस्तुत किए हैं उन्हें बिंदु के माध्यम से स्पष्ट किया जा सकता है । socialist democracy warrior dr ram manohar lohia

-जाति प्रथा का विरोध

डॉक्टर लोहिया जाति प्रथा के विरोधी थे उनके अनुसार जाति प्रथा समाजवाद के मार्ग का मुख्य अवरोध है जति समाज में असमानता उत्पन्न करती है डॉक्टर राम मनोहर लोहिया ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि बड़े-बड़े तथ्य जन्म मृत्यु शादी विवाह और सभी रस्में जाति के चौखट में होती है ऐसेमोको पर दूसरी जाति के लोग किनारे पर रहते हैं जैसे वे तमाशबीन हो जाति प्रथा के कारण निम्न वर्ग शोषण का शिकार बनते हैं जाति उन्हें उन्नति के अवसरों से अलग रखती है लोहिया के अनुसार इन सब का शामिल परिणाम होता है राष्ट्रीय विकास में कमी।

– अस्पृश्यता का विरोध

अंबेडकर, नेहरु, जयप्रकाश नारायण की भांति डॉक्टर लोहिया ने भी अस्पृश्यता को जाति व्यवस्था का परिणाम माना और उसका विरोध किया। हरिजनों के मंदिर की समस्या के निराकरण के लिए उन्होंने आंदोलन चलाया। लोहिया ने अस्पृश्यता की भावना के कुपरिणामों का उल्लेख करते हुए कहा की अस्पृश्यता के कारण न केवल राष्ट्रीय विघटन और अवनति हुई है बल्कि इसके परिणाम स्वरूप भारत को अंतर्राष्ट्रीय अपमान तथा उपेक्षा भी सहन करनी पड़ी है ।यदि हमें अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में अपनी पहचान बनानी है तो हमें अस्पृश्यता निवारण के लिए प्रभावी कदम कदम उठाने होंगे इस समस्या के निवारण हेतु सुझाव इस प्रकार थे socialist democracy warrior dr ram manohar lohia

    • हरिजनों में स्वाभिमान और निर्भयता की भावना विकसित करना
    • हरिजनों में शिक्षा का प्रसार
    • हरिजनों को समान आध्यात्मिक अधिकार प्रदान करना
  • हरिजनों के साथ मानवचित व्हवहार।

– हिंदू मुस्लिम एकता 

बल राम मनोहर लोहिया ने सदैव हिंदू मुस्लिम एकता पर बल दिया कहा करते थे कि सरकार चाहे लड़ती रहे मगर हिंदू और मुसलमानों को एक हो जाना चाहिए डॉक्टर लोहिया ने न्याय उदारता और दृढ़ता से हिंदू मुसलमानों के विनाश के कारणों को ढूंढने तथा उनका समाधान करने की प्रेरणा दी ।

-स्त्री पुरुष समानता 

स्त्री पुरुष समानता के प्रबल समर्थक में से एक थे उनकी मान्यता थी कि वास्तविक समाजवाद तभी कायम होगा जब उसमें नारी सहभागिता हो डॉक्टर लोहिया प्रत्येक दृष्टिकोण से स्त्री को सक्रिय देखना चाहते थे उन्होंने भारतीय समाज में स्त्रियों का कार्यक्षेत्र झा केवल रसोई तक सीमित समझा जाता है उसकी आलोचना की लोहिया ने दहेज प्रथा का विरोध करते हुए कहा उनकी शादियों का वैभव आत्मा के मिलन में नहीं है बल्कि 20 लाख की गड़ियो और 50000 से भी ज्यादा साड़ियों में है विवाह और प्रेम संबंध में राम मनोहर स्त्री पुरुष समानता के पक्ष में थे डॉक्टर लोहिया ने बहुपत्नी प्रथा का विरोध किया वे पर्दा प्रथा के विरोध में थे उन्होंने पर्दा प्रथा को प्रगति के विरोध में माना इन सब बातों से अतिरिक्त लोहिया स्त्री का समान कार्य के लिए समान वेतन अवसर और कानून संबंधी समानता दिलवाने के पक्ष में थे डॉक्टर लोहिया के सामाजिक विचारों से स्पष्ट है कि सामाजिक दृष्टि क्षेत्र में उनके विचार अत्यंत प्रगतिशील तथा अपने समय से बहुत आगे थे । socialist democracy warrior dr ram manohar lohia


error: Content is protected !!
Don`t copy text!