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General studies paper – 4 notes
Part – 13
Topic – कबीरदास तर्कवादिता, जातिवाद, सांप्रदायिकता, आडंबर का विरोध, कबीर नीति
-कबीरदास
हिंदी भक्ति काव्य की निर्गुण काव्य शाखा के महान कवि रहे हैं कबीर भक्ति काल के पुरोधा समाज में व्याप्त बुराइयों की दो टूक शब्दों में निंदा करने और प्रहार करने के कारण सामान्यता उन्हें एक सुधारक भी कहा जाता है पर कबीर सुधारक ना होकर एक मानवतावादी थे जिन्होंने समाज में व्याप्त भेदभाव पर प्रहार कर मानवीय मूल्य को साबित करने का प्रयास किया कबीर के संपूर्ण नैतिक सामाजिक चिंतन को हम निम्न प्रकार से समझ सकते हैं ।
-तर्कवादिता
उनका कहना था कि सिर्फ उसी बात को सच मानो जिसे तुमने अपनी आंख से देखा हो उनका कथन है तू कहता कागद की लिखी मैं मैं कहता आंखन की देखी ।
-जातिवाद का विरोध
कबीरदास ने जातिवाद का कठोर शब्दों में खंडन किया उस समय के समाज में जातिवाद अपने रूप में मौजूद था और मानवाधिकार हर कदम पर खतरे में रहते थे जातिवाद का इतना प्रचण्ड विरोध करना क्रांतिकारी कदम था जो तू बाभन बभनी का जाया आन बात क्यों नहीं आया KABIR DAS ETHICS THINKERS GS 4 notes
-सांप्रदायिकता का विरोध
संत कबीर की तर्कवादी सोच का दूसरा पहलू वहां दिखता है जहां वे सांप्रदायिकता के करारी चोट करते हैं उनके समय मे इस्लाम भारत में आया ही था ओर भारत के निवासी के सामने रहस्य बनकर खड़ा था हिंदू कहत है राम हमारा मुसलमान रहमान आपस में दो लड़ते हैं मर्म को नहीं जाना।
– आडंबर का विरोध
कबीरदास की तर्कवादी सोच का तीसरा पहलू उनके आडंबर विरोधी नजरिया में दिखता है पाहन पूजे हरि मिले तो मैं पूजू पहार तांती तो चाकी भली पीस खाए संसार। KABIR DAS ETHICS THINKERS GS 4 notes
इस प्रकार उन्होंने यह भी देखा कि हिंदुओं में मुंडन कराने की प्रथा प्रचंड रूप में विद्यमान है विशेष रूप से मंदिरों और मठों में ईश्वर के साधक इस लालच में गंजे हो जाते थे कि इस परंपरा पर चलकर स्वर्ग तथा ईश्वर की उपलब्धि कुछ आसान हो जाएगी कबीर दास ने इस अतार्किक परंपरा पर जबरदस्त व्यंग्य करते हुए कहा कि अगर गंजा होने से स्वर्ग की प्राप्ति होने लगे तो सभी गंजे हो जाएंगे फिर मजाक उड़ाते हुए कहते हैं कि अगर गंजा होने से स्वर्ग मिलता तो सारी भेड़े स्वर्ग चली जाती परंतु बार-बार मुंडे जाने के बावजूद उन्हें स्वर्ग नहीं मिलता उनका कथन है मुंड मुंडाए हरि मिले सब कोई ले मुंडाए बार-बार के मुंडते भेड़ना बैकुंठ जाए । KABIR DAS ETHICS THINKERS GS 4 notes
कबीर ने मुसलमानों को भी आडम्बरों के लिए इतने ही क्रोध के साथ फटकारा है जब उन्होंने मस्जिद के ऊपर चढ़कर मौलवी को अजान करते देखा तो व्यंग्य करते हुए पूछा कि क्या तुम्हारा खुदा बहरा है जो नीचे से तुम्हारी आवाज नहीं सुन पाता मौलवी पर व्यंग्य करते हुए कबीर ने 1 प्रसिद्ध कथन कहा कांकर पाथर जोरि के मस्जिद लई बनाय ता चढ़ी मलूला बांग दे क्या बहरा हुआ खुदाय।
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- – धन लिप्सा से दूर साईं इतना दीजिए जामे कुटुम समाय मैं भी भूखा ना रहूं साधु न भूखा जाए।
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- – अहिंसा समर्थक बकरी पाती खात है ताकि काधी खाल जै नर बकरी खात है तिनका कौन हवाल।
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- – विनम्रता ऐसी बानी बोलिए मन का आपा खोय औरन को शीतल करे आपहु शीतल होय।
- – आत्म आलोचना बुरा जो देखन मैं चला बुरा ना मिलया कोई जो दिल खोजो आपना मुझसे बुरा ना कोई ।
कबीर नीति के नकारात्मक पहलू किसी भी व्यक्ति के विचार इतने पूर्ण नहीं होते कि उन पर सवाल उठाया जा सके कबीर भी पूर्ण नहीं हैं उनके विचारों में कुछ ऐसे पक्ष मौजूद हैं जिन्हें पढ़कर चिंता होती है उनके समय में तो उन कमियों पर ज्यादा चर्चा नहीं हुई पर आधुनिक काल में जब हर विचारक कई विचारधाराओं की कसौटी परखने लगा है कबीर के कमजोर पक्ष में खुलकर सामने आने लगे हैं कबीर नीति पर सबसे गंभीर प्रश्न सिंह नारीवादी विचारको द्वारा लगाया गया है कबीर के कई ऐसे पद हैं जिनमें वे नारी की अनावश्यक निंदा करते हुए नजर आते हैं दरअसल वे मध्यका कि जिस परंपरा में दीक्षित थे उस में महिलाओं को माया समझा जाता था उन पर आरोप था कि पुरुषों का ध्यान भटकाने में लगी रहती हैं समझ नहीं आता कि कबीर जैसा महा तार्किक आदमी ऐसे बेवकूफ आना विचारों से कैसे प्रभावित हो गया आज यह सोचकर आश्चर्य होता है कि कबीरदास ने महिलाओं को कितना बुरा भला कहा है उदाहरण के लिए वे एक दोहे में कहते हैं कि जब नारी की परछाई मात्र पढ़ने से सांप अंधा हो जाता है तुम नारी की संगति में रहने वाले पुरुषों की स्थिति क्या होगी नारी की झाई परत अंधे होत भुजंग कबीरा तिनकी कौन गति जे नित नारी का संग। KABIR DAS ETHICS THINKERS GS 4 notes
एक दूसरे दोहे में तो कबीर ने यहां तक कहा कि नारी उन तीन सुखों का नाश कर देती है जो पुरुषों के पास होते हैं यह तीन सुख भक्ति मुक्ति और ज्ञान है किंतु नारी से प्रभावित पुरुष सुखों की उपलब्धि कर ही नहीं पाता नारी नसावे तीनी सुख जे नर पासे हुई भक्ति मुक्ति निजी ज्ञान में पेसी न सकई कोई ।
कबीर दास के अंध समर्थक इन कथनों पर भी सफाई देने की मुद्रा में रहते हैं पर सच यह है कि हम इस बिंदु पर कबीर दास की सीमा स्वीकार कर लेनी चाहिए कोई भी विचारक चाहे वह कितना भी महान हो सभी पक्ष पर बराबर प्रगतिशील नहीं हो सकता कबीर नारी के मुद्दे पर अपने समय की सीमाओं को नहीं लांघ सके उनकी यह कमी तो हमें माननी ही होगी। KABIR DAS ETHICS THINKERS GS 4 notes
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