प्लेटो का न्याय सिद्धांत व साम्यवाद

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General studies paper – 4 notes 

Part – 14

Topic – प्लेटो का न्याय सिद्धांत, प्लेटो के साम्यवाद का आधार,साम्यवाद की आलोचना, आधुनिक साम्यवाद से तुलना


-प्लेटो का न्याय सिद्धांत

न्याय की व्याख्या और प्राप्ति रिपब्लिक का केंद्रीय प्रश्न है रिपब्लिक ग्रंथ का मूल शीर्षक था जिसका अनुवाद न्याय प्रबंध या न्याय से संबंधित होता है ।

-न्याय का अर्थ

रिपब्लिक का आरंभ और अंत न्याय के स्वरूप की विवेचना के साथ होता है प्लेटो के अनुसार न्याय की परिभाषा नहीं है इसका अर्थ केवल इतना है कि मनुष्य अपने कर्तव्यों का पालन करें जिनका पालन समाज की दृष्टि से किया जाना आवश्यक है समाज और राज्य आवश्यकता तथा व्यक्ति की योग्यता के अनुसार कर्तव्यों का पालन करने का नियम बनाते हैं इनका ठीक-ठाक पालन करना ही माननीय है प्लेटो ने न्याय के दो रूप माने हैं ।

-सामाजिक न्याय

सामाजिक रूप में न्याय समाज के विभिन्न अंगों से उनके कर्तव्यों का पालन करता है उनमे सामंजस्य से एकता बनाए रखता है समाज के तीनों वर्गों उत्पादक सैनिक और शासक अपनी आवश्यकताओं के कारण एक होकर अपने निश्चित कर्तव्य का पालन करते हुए समष्टि को बनाए रखते हैं व्यक्ति के लिए तथा समाज के लिए इससे अच्छी कोई व्यवस्था नहीं हो सकती कि वह अपने कार्यों को पूरा करें। theory of justice by plato in hindi

– व्यक्ति न्याय 

प्रत्येक व्यक्ति में विचार भावनाएं पाई जाती है इसमें समन्वयक बना रहना व्यक्तिक न्याय या मानवीय सद्गुण है यह तीनो  तत्वों का सामंजस्य ना रहे तो इसमें धर्मांधता और कामांढता होती है न्याय का प्रयोजन आत्मा के तीनों तत्वों में  सामंजस्य और व्यवस्था बनाए रखना है इस प्रकार न्याय यहां एक और समाज में सामंजस्य स्थापित करने के कारण राज्य को एक सूत्र में पिरोने वाला सामाजिक गुण है वही दूसरी और व्यक्तिगत सद्गुण भी है क्योंकि यह मनुष्य के आध्यात्मिक संतुलन को ठीक बनाकर उसे श्रेष्ठ और समाजिक बनाता है ।

-प्लेटो के न्याय सिद्धांत

की विशेषताएं प्लेटो का न्याय बाहरी न होकर आंतरिक है और किसी बाहरी शक्ति द्वारा किसी पर आरोप नहीं किया जाएगा बल्कि व्यक्ति की आत्मा की प्रतिध्वनि है प्लेटो के आदर्श राज्य में प्रत्येक वर्ग के कार्य निर्धारित हैं और न्याय व्यक्ति से यह अपेक्षा करता है कि वह दूसरों के कार्य में हस्तक्षेप नहीं करेगा प्लेटो का न्याय सिद्धांत विशेष कार्य का सिद्धांत है इसके लिए प्लेटो मनुष्य के तीन प्रवृत्तियों ज्ञान साहस और तृष्णा के आधार पर समाज को शासक सैनिक और उत्पादक के तीन वर्गों में बांटा है प्लेटो के आदर्श राज्य में न्याय की भावना तभी संभव है जब वहां के शासक दार्शनिकों योग्य शासक वर्ग में संपत्ति तथा स्त्रियों के साम्यवाद की व्यवस्था हो प्लेटो का न्याय मानव जीवन के सभी पक्षो से संबंधित है प्लेटो न्याय के 2 स्वरूप  प्रस्तुत करता है व्यक्तिगत और सामाजिक व्यक्तिगत रूप में अपनी अपनी आत्मा में वृद्धि के शासन द्वारा समन्वय स्थापित करने तथा समाज की दृष्टि से व्यक्ति अपने अपने कार्य करता रहे और दूसरों के कार्य में हस्तक्षेप ना करें । theory of justice by plato in hindi

-न्याय व्यवस्था के तत्व

प्लेटो की न्याय व्यवस्था के प्रमुख तीन तत्व है जो कि मूल रूप उसके आत्मा के त्रिकोणीय सिद्धांत पर आधारित है ।

-कार्यात्मक विशेषीकरण

प्लूटो का कार्यात्मक विशेशीकरण का सिद्धांत निम्न मान्यताओं पर आधारित है प्लेटो प्राकृतिक असमानता में विश्वास रखता है अर्थात जन्म से व्यक्तियों की योग्यता में अंतर होता है व्यक्ति स्वभाव असमान क्षमताओं का होता है कार्यात्मक अंतर प्लेटो की न्याय की परिकल्पना का मूल तत्व है प्लेटो के अनुसार व्यक्ति की आत्मा के तीन तत्वों के मात्रात्मक अंतर के आधार पर व्यक्ति के कार्यों का विभाजन किया जाना चाहिए प्लेटो ने कहा है कि जिस व्यक्ति को किस काम को करने की आंतरिक रुचि हो उसे वही कार्य करने हेतु प्रेरित किया जाना चाहिए प्लेटो के अनुसार व्यक्ति क वयक्तित्व का पूर्ण विकास कार्यात्मक विशेषकरन के माध्यम से ही संभव है क्योंकि इसमें व्यक्ति को इच्छा अनुसार कार्य करने की छूट होती है अर्थात व्यक्ति में आत्मा के जिस तत्व की मात्रा अधिक होगी उस क्षेत्र में रूचि के अनुसार विशेषज्ञता हासिल करेगा। theory of justice by plato in hindi

-अहस्तक्षेप की नीति

समाज के तीन वर्गों को कार्यात्मक विशेषीकरण के आधार पर जो कार्य दिया गया हो वही कार्य उन्हें करना चाहिए किसी वर्ग को एक दूसरे वर्गों के कार्य में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।

– परस्पर सामंजस्य

विवेक साहस के बीच पारस्परिक सामंजस्य संबंध स्थापित किया जाना चाहिए और समाज के तीनों वर्गों शासक उत्पादक वर्ग और सैनिक के बीच परस्पर सहयोग और सद्भाव की भावना पैदा की जाए जिससे होना चाहिए ताकि एक वर्ग दूसरे वर्ग के कार्य निष्पादन में सहायक सिद्ध हो सके  उत्पादक वर्ग को अन्य दोनों वर्गों के लिए उत्पादन करना चाहिए दूसरी और सैनिक वर्ग को अन्य दोनों की सुरक्षा प्रदान करनी चाहिए जबकि शासक वर्गं को अन्य दोनों वर्गो को उचित प्रशासन व्यवस्था प्रदान  करनी चाहिए तीनो वर्गों के परस्पर समन्वय से ही न्याय दिया जाना सम्भव हो जाएगा। theory of justice by plato in hindi

-प्लेटो का साम्यवाद का सिद्धांत

– न्याय सिद्धांत के आधार पर प्लेटो ने जिस आदर्श समाज अथवा राज्य की कल्पना की है उस की समुचित व्यवस्था हेतु उसने एक साधन के रूप में संपत्ति तथा परिवार के साम्यवाद की व्यवस्था का प्रतिपादन किया है प्लेटो का साम्यवाद राजनीतिक सत्ता और आर्थिक प्रलोभन की बुराइयों को दूर करने के लिए एक साहसपूर्ण उपचार है साम्यवाद के द्वारा प्लेटो शासक वर्ग तथा सैनिकों को व्यक्तिगत संपत्ति और परिवारिक जीवन की चिंताओं से मुक्त रखना चाहता है जिससे वे निश्चित और निष्पक्ष भाव से शासन कार्य कर सकें ।

-प्लेटो के साम्यवाद का आधार

मनोवैज्ञानिक आधार प्लेटो का साम्यवाद एक साध्य ना होकर न्याय पर आधारित आदर्श राज्य को स्थापित करने का एक साधन मात्र था उनके अनुसार यदि देश को और सैनिकों को व्यक्तिगत संपत्ति और परिवार के बंधनों से मुक्त रखा जाएगा तभी अपने उत्तरदायित्व को निस्वार्थ और विवेकपूर्ण ढंग से निभा सकेंगे।

– राजनीतिक आधार प्लेटो का मानना था कि यदि राजनीतिक शक्ति और आर्थिक शक्ति एक ही हाथों में रहेगी तो इसके घातक परिणाम होंगे इसलिए राजनीतिक कार्य कुशलता बनाए रखने की दृष्टि से राजनीतिक और आर्थिक शक्तियों का अलग-अलग हाथों में रहना आवश्यक है प्लेटो का मत था कि जो लोग आर्थिक क्षेत्र में कार्यरत हैं उन्हें राजनीतिक शक्ति पर अधिकार नहीं मिलना चाहिए और जिन लोगों के हाथों में राजनीतिक शक्ति हैं उन्हें आर्थिक शक्ति पर किसी प्रकार का नियंत्रण का नहीं होना चाहिए। theory of justice by plato in hindi

– दार्शनिक आधार प्लेटो साम्यवाद की व्यवस्था अभिभावक वर्ग और सैनिक के लिए ही देता है उत्पादक वर्ग के लिए नहीं क्योंकि उत्पादक वर्ग उत्पादन का कार्य करता है वह अपरिग्रह अर्थात साम्यवादी नहीं हो सकता जबकि प्लेटो के लिए साम्यवाद का अर्थ अपरिग्रह से और राज्य का पतन करने वाले तत्वों से दूर रहने से है ।

-व्यवहारिक आधार प्लेटो के अनुसार शासन संचालन का अधिकार विवेक युक्त और सद्गुण व्यक्तियों को है ऐसे लोगों को अगर संपत्ति संग्रह करने की छूट दे दी जाएगी तो अंत में राजनीतिक पदों की नियुक्ति का आधार सद्गुण के स्थान पर संपत्ति हो जाएगा इस तरह आदर्श राज्य की व्यवस्था का पतन हो जाएगा एक खतरे से बचने के लिए प्लेटो ने शासक वर्ग को व्यक्तिगत संपत्ति से वंचित करना ही उचित समझा । theory of justice by plato in hindi

-प्लेटो के साम्यवाद की आलोचना

    • प्लेटो का साम्यवाद अर्ध साम्यवाद है जिसमें राज्य के केवल 2 वर्गों के लिए ही साम्यवाद का प्रावधान है और संख्या की दृष्टि से यह बहुत ही छोटा भाग है संपूर्ण समाज के लिए वह साम्यवाद की कोई व्यवस्था नहीं कर पाया है
    • इस साम्यवाद को समाज के कुछ भाग के लिए लागू करके शेष के लिए व्यक्तिगत संपत्ति व्यवस्था करके प्लेटो स्वयं एक राज्य में 2 राज्यों को जन्म दे रहा है इसमें समाज का विघटन ही होगा
    • यदि व्यक्तिगत संपत्ति समाज में फूट पैदा करने वाली है तो राज्य के तीसरे वर्ग से भी इस व्यवस्था को समाप्त क्यों नहीं कर दिया जाता है
    • राज्य व्यक्ति की आवश्यकता की पूर्ति का साधन है जबकि प्लेटो ने तो राज्य को ही साध्य ही बना दिया है
    • प्लेटो का मानना है कि भौतिक दशाएं आध्यात्मिक बुराइयों का कारण है और कारण का अंत करना आवश्यक है जो उचित नहीं लगता
  • प्लेटो ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता समानता को राज्य हित में ही नहीं माना है अन्यथा उसे निरर्थक माना है दो वर्गों के लिए संपत्ति विकास को अवरुद्ध करती है और 1 वर्ग के विकास में सहायक है यह अतार्किक प्रतीत होता है ।

-प्लेटो के साम्यवाद की आधुनिक साम्यवाद से तुलना

समानताएं

– प्लेटो ने अनियमित अनियंत्रित प्रतियोगिता को कोई महत्व नहीं दिया है मार्क्सवाद साम्यवाद भी अनियंत्रित अनियमित आर्थिक प्रतियोगिता में कोई स्थान नहीं देता प्लेटो ने अपने साम्यवाद में व्यक्ति के अधिकारों पर ध्यान न देकर उनके कर्तव्यों पर अधिक ध्यान दिया है आधुनिक साम्यवाद भी व्यक्ति पर इतने कर्तव्य आरोपित करता है कि वह अपने अधिकारों से वंचित सा हो जाता है प्लेटो के साम्यवाद की योजना काल्पनिक और अव्यावहारिक  है मार्क्सवादी योजना का भी यदि कोई गहराई और विस्तार से विश्लेषण करें तो वह अव्यवहारिक ठहरती है प्लेटो वादी और आधुनिक दोनों ही साम्यवादी सीमित क्षेत्र में ही सफल हो सकते हैं व्यापक क्षेत्र में नहीं प्लेटो का साम्यवाद एकांगी है क्योंकि वह मानव के स्वभाव के केवल एक पक्ष को महत्व देता है नैतिकता और आध्यात्मिकता के पहलू को तथा आधुनिक साम्यवाद भी अधूरा है क्योंकि उसमें भौतिकवाद और आर्थिकवाद की भी प्रधानता है प्लेटो उच्च दो वर्गों के निजी संपत्ति रखने पर प्रतिबंध लगाता है आधुनिक साम्यवाद भी व्यक्तिगत संपत्ति का विरोधी है प्लेटो का साम्यवाद दार्शनिक राजा के अधिनायकवाद में विश्वास रखता है आधुनिक साम्यवाद का विश्वास भी सर्वहारा वर्ग के अधिनायकवाद में है दोनों ही साम्यवाद स्त्री पुरुषों की स्वतंत्रता तथा उसके समान अधिकारों के समर्थक हैं । theory of justice by plato in hindi

-असमानताएं

प्लेटो के साम्यवाद का दृष्टिकोण आध्यात्मिक निराशावादी और विरक्तिमूलक हैं जिसमें मानव मस्तिष्क तथा नैतिक पहलुओं पर ही आग्रह किया गया है इसके विपरीत आधुनिक साम्यवाद का दृष्टिकोण भौतिकवादी क्रांतिकारी तथा प्रगतिशील है प्लेटो का साम्यवाद शासन और सैनिक वर्ग पर ही लागू होता है उत्पादक वर्ग पर नहीं आधुनिक साम्यवाद में किसान और मजदूर वर्ग के लिए ही साम्यवादी योजना प्रस्तावित है

प्लेटो की साम्यवाद में सामाजिक परिवर्तन तार्किक ढंग से होता है जबकि आधुनिक साम्यवाद में सामाजिक परिवर्तन एक ऐतिहासिक अनिवार्यता है प्लेटो के साम्यवाद की प्राप्ति का मार्ग नकारात्मक है जबकि आधुनिक साम्यवाद की प्राप्ति का मार्ग क्रांति और प्रचार है आधुनिक साम्यवाद प्लेटो की भांति आतम संयम और आत्म नियंत्रण के साधनों का उदघोषक नहीं है

प्लेटो का साम्यवाद उच्च वर्गों को प्रधानता देता है आधुनिक साम्यवाद निम्न और श्रमिक वर्ग को पहला कुलीन तंत्र का पोषक है तथा दूसरा कुलीन तंत्र का विरोधी और तथाकथित जनतंत्र का पोषक है तथा दूसरा तंत्र का विरोधी और तथाकथित जनतंत्र का पोषक।

 प्लेटो का साम्यवाद सुधारवादी है यह न्याय की स्थापना द्वारा सुधार का आकांक्षी है आधुनिक साम्यवाद क्रांति के माध्यम से परिवर्तन का पोषक है

प्लेटो का साम्यवाद विभिन्न वर्गों में सामंजस्य और एकता स्थापित करता है जबकि आधुनिक साम्यवाद वर्ग संघर्ष को अनिवार्य मानते हुए उनके द्वारा ही वर्ग विहीन समाज की स्थापना करना है अतः यह कहा जा सकता है कि प्लेटो के प्राचीन और मार्क्स के वर्तमान साम्यवाद में मौलिक अंतर है टेलर के शब्दों में रिपब्लिक के साम्यवाद और समाजवाद के संबंध में बहुत कुछ खा जाने के बावजूद भी वस्तुतः इस ग्रंथ में ना तो समाजवाद पाया जाता है और ना ही साम्यवाद मिलता है। theory of justice by plato in hindi


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