दार्शनिक : श्री अरविंद घोष और राधाकृष्णन

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General studies paper – 4 notes 

Part – 18

Topic – अरविंद के चिंतन के दार्शनिक आधार, सामाजिक चिंतन, राधाकृष्णन दार्शनिक आधार , ईश्वर और निरपेक्षता,बुद्धि और अंतः प्रज्ञा


-अरविंद के चिंतन के दार्शनिक आधार

अरविंद ने आध्यात्मिक चिंतन के क्षेत्र में एक नए सिद्धांत को विकसित किया जिसके द्वारा उन्होंने जीवन के प्रति आशावादी दृष्टिकोण को बल दिया उन्होंने जीवन को एक कालकोठरी अथवा दुख का घर मानने से इनकार करते हुए जीवन के प्रति चिंतन को एक नवीन दीक्षा दी तथा आध्यात्मिक और भौतिकता का समन्वय कर दिया जिस प्रकार अनेक वैज्ञानिक ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार करते हैं उसी प्रकार अरविंद ने भौतिकता के साथ ही आध्यात्मिकता को प्रकट किया पांडिचेरी में आध्यात्मिक साधना में लीन रहते हुए भी अरविंद भारत और संसार की बहुत ही घटनाओं के प्रति सचेत रहें और आवश्यकता पड़ने पर आध्यात्मिक शक्ति को मित्र राष्ट्रों के पीछे रख दिया जबकि प्रत्येक व्यक्ति इंग्लैंड के अविलंब पतन और हिटलर की निश्चित विजय की आशा कर रहा था अरविंद को यह देखकर संतोष हुआ की आध्यात्मिक शक्ति के बल पर जर्मन विजय के तूफान को एकदम नियंत्रित कर दिया गया है और युद्ध की बाढ़ विपरीत दिशा में मोड़ने लगी है अरविंद ने ईश्वर की सत्ता में विश्वास रखा और इस विश्वास का दुरुपयोग कभी नहीं किया उनकी यह मान्यता रही कि ईश्वर में विश्वास का अभिप्राय यह नहीं है कि मनुष्य अपने जीवन के प्रति निराशा और उदासीन हो जाए अरविंद ने इस मानवतावादी विचार का प्रतिपादन किया कि हमें अपने जीवन से भागकर ईश्वर तक पहुंचने की कोशिश नहीं करनी चाहिए बल्कि हमारा प्रयत्न यह होना चाहिए कि ईश्वर स्वयं हमारे बीच यही इस संसार में हमारे जीवित रहने के लिए उत्तर आए उन्होंने कहा कि ईश्वर इस सृष्टि के कण-कण में विद्यमान हैं और अभिव्यक्त होता रहता है तथा ज्यों-ज्यों जो ईश्वर की यह अभिव्यक्ति बढ़ती जाएगी त्यों त्यों मानव समाज अधिक से अधिक उदातस् होता चला जाएगा अरविंद का विचार था कि भारत और यूरोप दोनों ही अति की ओर चले हैं उनको आशा थी कि भारतीय अध्यात्मवाद और यूरोपीय अलौकिकवाद और भौतिकवाद के बीच सामंजस्य स्थापित किया जा सकता है और यह ऐसे दर्शन की दृष्टि करके ही संभव हो सकता है इसमें पदार्थ तथा आत्मा दोनों की महत्व को स्वीकार किया जाए अपने दार्शनिक ग्रंथों में उन्होंने इस प्रकार के सामंजस्य का प्रयत्न किया । Philosophy of Arvind ghosh & Sarvepalli Radhakrishnan

-अरविंद का सामाजिक चिंतन

अरविंद ने पुनर्जागरण के विचार द्वारा भारत के राष्ट्रीय गौरव तथा हिंदू धर्म की महानता को संदेश दिया वे भारत की प्राचीन आत्मा आदर्श और पद्धतियों का पुनर्जागरण चाहते थे पश्चिम के अंधानुकरण की नीति उन्हें प्रिय नहीं थी किंतु वे ऐसे पुनर्जागरणवादी भी नहीं थे जो रूढ़िवाद से बंधे हो उन्होंने पश्चिम से ग्रहण करने योग्य विचारों को अपनाने में कोई आपत्ति नहीं थी उनका आग्रह केवल यहीं था कि हम ईश्वर की विधान में निष्ठा रखते हुए भारतीय बने रहे यूरोप की हवा में नहीं बह जाएं हम जो पश्चिम से ग्रहण करें वह एक भारतीय के रूप में ही करें अपना अस्तित्व विस्मित ना कर बैठे। Philosophy of Arvind ghosh & Sarvepalli Radhakrishnan

-राधाकृष्णन

राधाकृष्णन की प्रमुख कृतियां है

इंडियन फिलासफी हिंदू व्यू ऑफ लाइफ आइडियलिस्ट व्यू ऑफ लाइफ ईस्टर्न रिलेशंस एंड वेस्टर्न थॉट द रेन ऑफ रिलीजन इन कंटेंपरेरी फिलॉस्फी रिलिजन एंड सोसायटी कल्की एंड द यूचत ऑफ सिविलाइजेशन ।

-ईश्वर और निरपेक्षता (God and Absolute)

राधाकृष्णन ने एक आध्यात्मिक शाश्वत और पूर्ण सत्य की सत्ता को स्वीकार किया है उन्होंने ईश्वर और ब्रह्म के प्रत्यात्मक भेद को भी मान्यता दी है उनका मत है कि विश्व के मूल्यों के संदर्भ में ब्रह्म का रूप निश्चित करना ही ईश्वर है राधाकृष्णन के अनुसार ब्रह्म परमात्मा और ईश्वर के विभिन्न नाम हैं जिनमें हम एक अवर्णनीय आश्चर्य का बोध करते हैं और जिसे हम अनुभूत करते हैं वह भिन्न ना होकर एक ही तत्वों के रूप में देखते हैं तो उसे ईश्वर कहा जाता है और जब हम उसे लोकोत्तर व्यापक रूप की और देखते हैं तो उसे ब्रह्म कहते हैं भारतीय दर्शन को ब्रह्मही पाश्चात्य दर्शन का निरपेक्ष सत है राधाकृष्णन के दर्शन में परम सत्य के लिए इन दोनों नाम अर्थात निरपेक्षता और ब्रह्म का उल्लेख किया गया है राधकृष्णन के अनुसार निव्यक्तीक ब्रह्म चरम सत्ता का निरपेक्ष सत है जो शुद्ध एक और अव्यक्त है तथा अपनी अभिव्यक्तियों से भरे हुए हैं उनकी मान्यता है कि निरपेक्ष सत शुद्ध चेतना शुद्ध स्वतंत्रता तथा अनंत संभावना है चेतना अस्तित्व का आधार है इसका पूर्ण निषेध संभव नहीं है इसलिए ब्रह्म शुद्ध चेतना है ब्रह्म में अनंत संभावनाएं निहित है उनमें से जगत की सृष्टि भी एक संभावना है अतः ब्रह्म को अनंत संभावना कहा गया है असीम संभावनाओं से समृद्ध ब्रह्म के लिए यह आवश्यक नहीं है कि वह अपनी  संभावना को व्यक्त करें यदि ब्रह्म किसी संभावना को व्यक्त करता भी है तो एक स्वतंत्र क्रिया के रूप में अतएव ब्रह्म शुद्ध स्वतंत्रता है। Philosophy of Arvind ghosh & Sarvepalli Radhakrishnan

– बुद्धि और अंतः प्रज्ञा

सामान्य रूप से इंद्रियानुभव प्रज्ञा और अंतः प्रज्ञा ज्ञान के विविध साधन माना जाता है राधा कृष्ण के अनुसार इंद्रियानुभव सामान्य मनोविज्ञान का क्षेत्र है जिसमें किसी बाहरी या आंतरिक प्रभाव से इंद्रियों बाहरी संवेदन और अनुभव द्वारा ज्ञान सामग्री प्राप्त करता है इंद्रियानुभव सत्य ज्ञान के लिए उपयुक्त नहीं कहा जा सकता बुद्धि द्वारा अर्जित ज्ञान इंद्रियानुभाव पर आधारित हैं तथा यह ज्ञाता और ज्ञेय हैं इसके माध्यम से भी सत्य का ज्ञान संभव नहीं है केवल अतः प्रज्ञा से प्राप्त ज्ञान ही ज्ञाता और ज्ञेय के द्वेत से मुक्त होता है तथा इसी में सत्य का साक्षात्कार करने का सामर्थ्य है राधाकृष्णन ने अंतः प्रज्ञा को बुद्धि की अपेक्षा उच्च स्तरीय माना है उनके अनुसार अंतः प्रज्ञा ही प्रगति की अवस्था है यह प्रज्ञा की परिपूर्णता तथा चेतना का आयाम है प्रज्ञा सृजनात्मक है तथा यह स्वाध्याय तथा विश्लेषण की दीर्घकालीन और प्रक्रिया का परिणाम है प्रज्ञा केवल विश्व की तर्कसंगत को ग्रहण करने तक सीमित है लेकिन अंतः प्रज्ञा में आत्म अनुभूति को ग्रहण करने का सामर्थ्य है अंतः प्रज्ञा ज्ञान का साधन मात्र नहीं है बल्कि चिंतन का एक रूप भी है राधाकृष्णन की मान्यता है कि अंतः प्रज्ञा स्वतंत्र नहीं है बल्कि वह चिंतन के अधीन तथा चिंतन के स्वरूप में अंतर्निहित है यह ज्ञान की अवधारणा के घेरे को  तोड़कर जीवन सत्य का साक्षात्कार करती है अंतः प्रज्ञा आत्म निष्ठ व्यक्तित्व अपर्यात्मक है इसमें शुद्ध बोध समस्त सार्थकता और संपूर्ण सत्यता परिलक्षित है इन विशेषताओं के बाद भी अंतः प्रज्ञा को ना भावनाओं का उद्रेक कहा जा सकता है और ना संवेग की अंतः सुशट्टी और ना प्रत्यक्ष ज्ञान कहकर परिभाषित किया जा सकता है अन्य प्रज्ञा करी पूर्णता है राधाकृष्णन मानते हैं कि अंतः प्रज्ञा को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से प्रमाणित नहीं किया जा सकता लेकिन उसकी सत्यता पर कोई संदेह नहीं है उसमें अविश्वास नहीं किया जा सकता वह हमारे मन की रचना में ही विद्यमान हैं राधाकृष्णन को अंत परग्यात्मक चेतना के लिए उच्च स्तरीय बौद्धिक मानसिक उपकरणों की अपेक्षा है तथा इसका विकसित रूप अध्यात्मिक चेतना में ही मिलता है । Philosophy of Arvind ghosh & Sarvepalli Radhakrishnan


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