मौर्यकालीन सामाजिक व्यवस्था और आर्थिक व्यवस्था संपूर्ण जानकारी हिंदी में

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आज की इस पोस्ट पर हम आपको मौर्य काल के सामाजिक और आर्थिक जीवन के बारे में बताएंगे तो चलिए शुरू करते हैं

मौर्यकालीन अर्थव्यवस्था Mauryan Economy Mauryan Economy and Mauryan social system

मौर्यकालीन आर्थिक व्यवस्था
 मौर्य कालीन आर्थिक व्यवस्था कृषि, पशुपालन, शिल्प – उद्योग एवं वाणिज्य व्यापार पर आधारित थी। इस काल में अर्थव्यवस्था के प्रत्येक स्तर में विकास हुआ।
• कृषि
मौर्य काल की अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि पर आधारित थी। इस काल में कृषि के क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति हुई। कृषि क्षेत्र में हुए विकास को प्रेरित करने वाले निम्नलिखित प्रमुख कारक थे –
1) मौर्य शासकों ने कृषि विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। चंद्रगुप्त मौर्य एवं अशोक ने सिंचाई हेतु सुदर्शन झील का क्रमशः  निर्माण एवं जीर्णोद्धार करवाया। राज्य की ओर से कृषकों को अच्छे बीज एवं उपकरण उपलब्ध करवाए जाते थे। साथ ही जैसा कि अर्थशास्त्र में उल्लेखित है कि सेना द्वारा खड़ी फसल को नष्ट किए जाने पर राज द्वारा कृषकों को हर्जाना दिया जाता था। इस काल में राज्य द्वारा युद्ध बंदियों को कृषि भूमि के विस्तार हेतु लगाया जाता था। Mauryan Economy and Mauryan social system
2) मौर्य काल में सिंचाई के क्षेत्र में नवीन तकनीकी के प्रयोग, जैसे -घेरेदार कुओं का निर्माण आदि ने भी कृषि के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
इस काल की कृषि अर्थव्यवस्था में हुई प्रगति का हो यह परिणाम था कि राजा प्रजा से कई प्रकार के कर, जैसे – भाग, भोग,  शुल्क, रज्जु, आदि प्राप्त कर सके एवं इसका निवेश लोग कल्याणकारी योजनाओं एवं साम्राज्य विस्तार में कर सके।
 • पशुपालन
 
मौर्य शासकों ने पशुपालन के हित में भी महत्वपूर्ण कार्य किए। राज द्वारा सार्वजनिक चारागाहों का निर्माण करवाया गया था तथा  इन चारागाहों के देखरेख हेतु  विविधताध्यक्ष नामक अधिकारी की नियुक्ति की गई थी। अशोक ने भी पशु पालन के महत्व को समझते हुए पशु हत्या पर प्रतिबंध लगाने के प्रयास किए थे।
•  शिल्प – उद्योग
मौर्य काल में  शिल्प – उद्योग में भी विकास हुआ। शिल्प – उद्योग के विकास का अनुमान इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि अशोक के समय में स्तंभ अभिलेखों का निर्माण एक ही पत्थर को तराश कर किया गया था तथा पत्थर पर की गई पॉलिश आज भी बनी हुई है।
शिल्प – उद्योग के विकास में सर्वप्रमुख भूमिका श्रेणियों की थी। प्रत्येक शिल्प – उद्योग से संबंधित एक पृथक श्रेणी होती थी। श्रेणियों के द्वारा माप तोल के पैमाने, वस्तुओं की कीमत आदि का निर्धारण किया जाता था। साथ ही यह श्रेणियां बैंकों का भी कार्य करती थी। श्रेणी व्यवस्था के अंतर्गत श्रेणी विशेष से जुड़े परिवार के सदस्यों हेतु व्यवसायिक शिक्षा का प्रबंध भी किया जाता था। Mauryan Economy and Mauryan social system
राज ने भी शिल्प – उद्योग के विकास हेतु महत्वपूर्ण प्रयास किए। राज्य द्वारा विभिन्न श्रेणियों को स्वायत्ता प्रदान की गई तथा इनकी सुरक्षा के भी उचित प्रबंध किए गए थे। साथ ही राज्य ने शिल्प -उद्योग के प्रबंधन हेतु कुछ अधिकारियों की भी नियुक्ति की गई थी, जैसे – लोहाध्यक्ष आकराअध्यक्ष, लवणाध्यक्ष आदि।
बौद्ध ग्रंथ महावास्तु में 36 प्रकार के शिल्पों का उल्लेख है जिनमें प्रमुख थे – लोहार, चर्मकार,  बढ़ई, वस्त्रकार आदि। इस काल में सर्वप्रमुख उद्योग वस्त्र  उद्योग था। काशी व मालवा सूती वस्त्र हेतु तथा बंगाल मलमल व रेशमी वस्त्र हेतु विश्व विख्यात था। Mauryan Economy and Mauryan social system
•  वाणिज्य – व्यापार
मौर्य काल में कृषि उत्पादन व शिल्प – उद्योग में हुए विकास ने वाणिज्य – व्यापार के विकास की आधारशिला निर्मित कर दी थी। राज्य के द्वार वाणिज्य व्यापार के विकास हेतु महत्वपूर्ण प्रयास किए गए। वाणिज्य- व्यापार के उचित प्रबंध हेतु कई अधिकारियों की नियुक्ति की गई थी, जैसे – पण्याध्यक्ष (वाणिज्य -व्यापार का अध्यक्ष), शुल्काध्यक्ष ( व्यापार कर वसूली करने वाले), संस्थाध्यक्ष (व्यापारिक मार्गों का अध्यक्ष), पौतवाध्यक्ष (माप तौल का अध्यक्ष) आदि।
 मौर्य काल में आंतरिक एवं ब्राह्म दोनों अवसरों पर व्यापार किया जाता था। इस काल में रोम, मध्य एशिया, चीन, दक्षिणी – पूर्वी एशिया आदि देशों के साथ भारत के व्यापारिक संबंध थे। भारत इन देशों में क्रमशः महंगी शराब, घोड़ों, रेशम, मसालों, आदि का आयात करता था, जबकि भारत द्वारा निर्यात किए जाने वाले प्रमुख मदें हाथी दांत की वस्तुएं, मोती, सूती वस्त्र, अनाज, इमारती लकड़ी आदि थी। Mauryan Economy and Mauryan social system
 • यातायात एवं संचार व्यवस्था
वाणिज्य – व्यापार के विकास में यातायात एवं संचार के साधनों का विशेष महत्व था। इस काल में सबसे महत्वपूर्ण व्यापारिक मार्ग उत्तरापथ माना जाता था, जो कि बंगाल के सोनार गांव से मथुरा तक जाता था, आगे इसका विस्तार पेशावर तक हो गया था। उसी प्रकार जल मार्गों से व्यापार में ताम्रलिप्ती, भड़ौच, सोपरा आदि बंदरगाहों का विशेष महत्व था।
  •  मुद्रा व्यवस्था
मौर्य काल में राजाओं के द्वारा मुख्यताः सोना, चांदी, एवं तांबे की मुद्राएं जारी की गई थी। सुवर्ण व पाद सोने की मुद्रा, पण, कार्षापन व धरण चांदी की मुद्रा और माषक, काकणी व अर्धकाकणी तांबे की मुद्रा का प्रचलन था। इनमें से सर्वाधिक प्रचलन पण का था। मुद्रा व्यस्था में हुई प्रगति भी इस काल के विकसित वाणिज्य – व्यापार की ओर संकेत करती है। Mauryan Economy and Mauryan social system
 • नगरीकरण
मौर्य काल में कृषि, पशुपालन, शिल्प – उद्योग एवं वाणिज्य – व्यापार के क्षेत्र में हुए विकास ने नगरीकरण को भी प्रोत्साहित किया। इस काल में पाटलिपुत्र, तक्षशिला, वाराणसी, उज्जैन, मथुरा, आदि नगरों का उन्नयन हुआ।
 इस प्रकार हम देखते हैं कि मौर्य काल में अर्थव्यवस्था के प्रत्येक स्तर में अभूतपूर्व विकास हुआ। वास्तव में इस काल की आर्थिक समृद्धि की वजह से ही मौर्य कालीन शासक न केवल लोककल्याणकी कार्यों को लागू कर सके, बल्कि एक मजबूत एवं अस्थाई सेना के गठन एवं साम्राज्य विस्तार करने में भी सफल हुआ।

मौर्यकालीन सामाजिक व्यवस्था

Mauryan social system

   •  वर्णाश्रम व्यवस्था
मौर्यकालीन समाज में वर्णाश्रम व्यवस्था प्रचलित थी। समाज में सर्वप्रमुख स्थान ब्राह्मणों को प्राप्त था, जबकि शूद्रों की स्थिति सबसे निम्न थी। इस काल में अनुलोम एवं प्रतिलोम विवाह के फलस्वरूप वर्णसंकर जातियों में वृद्धि हुई। परिणाम स्वरुप सामाजिक गतिशीलता बाधित हुई।
   • जाति व्यवस्था, अस्पृश्यता एवं स्त्रियों की दशा
 मौर्य काल में जाति व्यवस्था एवं अस्पृश्यता का विस्तार हुआ। इस काल में स्त्रियों की दशा में भी गिरावट आई। यद्यपि स्त्रियों को पुनर्विवाह एवं नियोग प्रथा का अधिकार था, किंतु इस काल में तलाक एवं सती प्रथा के भी साक्ष्य प्राप्त होते हैं। कौटिल्य ने कुछ शर्तों में तलाक की अनुमति दी थी, जैसे – पत्नी के वंध्या हो जाने, परपुरुषगामिनी हो जाने पर आदि। साथ ही इस काल में यद्यपि कौटिल्य ने सती प्रथा का उल्लेख नहीं किया है, किंतु कुछ विदेशी यात्रियों के विवरण से हमें सती प्रथा के साहित्यक साक्ष्य प्राप्त होते हैं। काल में पर्दा प्रथा का भी अप्रत्यक्ष रूप से साक्ष्य प्राप्त होते हैं। संभ्रांत कुल की स्त्रियां  प्रायः  घर के अंदर ही रहती थीं। Mauryan Economy and Mauryan social system
कौटिल्य ने ऐसी स्त्रियों को निष्कासिनी कहा है। मौर्य काल में वेश्यावृत्ति का भी प्रचलन था। वेश्यावृत्ति करने वाली स्त्रियों को रूपाजीवा कहा जाता था। राज्य वेश्यावृति पर कर भी प्राप्त करता था।
• दास व्यवस्था
मौर्य काल में दास अवस्था का भी विस्तार हुआ। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में 9 प्रकार के दासों का उल्लेख है। युद्ध में बंदी बनाए गए लोगों को एवं ऋण चुकाने वाले लोगों को दास बना लिया जाता था। किंतु दासों को यह अधिकार प्राप्त था कि वह मालिक को धन देकर दासता से मुक्त हो सकते थे।
• शिक्षा एवं मनोरंजन के साधन
मौर्य काल में वर्ण के आधार पर धर्म, व्याकरण, अर्थ एवं राजनीति की शिक्षा दी जाती थी। तक्षशिला, उज्जैन, एवं वाराणसी शिक्षा के प्रमुख केंद्र माने जाते थे। श्रेणियों द्वारा व्यवसायिक शिक्षा को भी व्यवस्था की जाती थी। इस काल में नट, नर्तक, गायक, वादक आदि समाज में लोगों का मनोरंजन करते थे। जुआं, शराब, शिकार इत्यादि भी मनोरंजन के साधन थे। Mauryan Economy and Mauryan social system
इस प्रकार मौर्यकालीन समाज में पूर्व काल की तुलना में गतिशीलता बाधित हुई। स्त्रियों एवं दासों की स्थिति में गिरावट आई। यह परंपरा आगे के कार्यों में भी बनी रही तथा इसने वर्तमान भारत का भी एक सामाजिक कुरीति का रूप धारण  कर लिया।
दोस्तों यह तो थी मौर्य काल के सामाजिक एवं आर्थिक व्यवस्था के बारे में जानकारी, अगले पोस्ट में हम आपको अशोक के धम्म नीति के बारे में विस्तार से बताएंगे तो बने रहिए Upsc Ias Guru .Com के साथ 🙂 

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