मौर्यकालीन धर्म /अशोक की धम्म – नीति

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आज की इस पोस्ट पर हम आपको मौर्यकालीन धर्म /अशोक की धम्म – नीति के बारे में बताएंगे तो चलिए शुरू करते हैं

मौर्यकालीन धर्म /अशोक की धम्म – नीति

Ashokas policy of dhamma history of india

  सम्राट अशोक ने अपने शासनकाल में कई महान कार्य किए, जिनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य था – अशोक की धम्म – नीति। अशोक की धम्म नीति की जानकारी हमें उस के अभिलेखों से प्राप्त होती है।

 • अशोक की धम्म – नीति के उद्देश्य

 अशोक की धम्म – नीति के निम्नलिखित उद्देश्य थे –

1) अशोक की धम्म – नीति तत्कालीन राजनीतिक, आर्थिक एवं सामाजिक आवश्यकताओं से प्रेरित थी। राजनीतिक दृष्टि से उसका उद्देश्य एक वृहद साम्राज्य की एकता एवं अखंडता को बनाए रखना था। आर्थिक दृष्टि से उसका उद्देश्य कृषि अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन देना था। यही वजह है कि अशोक ने अपनाएं प्रथम वृहद शिलालेख में पशु – हत्या पर पाबंदी लगाने  का आदेश दिया था। इसी प्रकार सामाजिक दृष्टि से अशोक के  धम्म का उद्देश्य विभिन्न भाषा – भाषी, नस्ले एवं संप्रदाय पर आधारित विस्तृत साम्राज्य को जोड़े रखना था।
2) अशोक की धम्म – नीति साम्राज्यवादी उद्देश्य से भी प्रेरित थी। अशोक सैनिक शक्ति की बजाय धम्म शक्ति के माध्यम से विदेशों में अपने प्रभाव को फैलाना चाहता था।
3) अशोक के धम्म का एक अन्य प्रमुख उद्देश्य प्रजा का भौतिक एवं आध्यात्मिक उत्थान करना था।
 • अशोक की धम्म – नीति के स्वरूप के संबंध में प्रचलित विभिन्न मत
 अशोक की धम्म – नीति विद्वानों के मध्य एक गहन चर्चा का विषय है। पश्चिमी विद्वानों ने अशोक के धम्म को Religion माना है, अर्थात – अशोक के धम्म की तुलना हिंदू धर्म, इस्लाम धर्म, ईसाई धर्म, आदि से की है। उन्होंने यहां तक कहा है कि अशोक ने धर्म परिवर्तन की भांति एक नवीन धर्म की स्थापना का प्रयास किया था। परंतु अन्य विद्वान इस मत से सहमत नहीं है।
 इसके विपरीत कुछ आने विद्वानों ने अशोक के धम्म को बौद्ध धर्म स्वीकार किया है तथा अशोक को बौद्ध धर्म का अनुयायी माना है। ऐसे विद्वानों ने कुछ ऐसे तथ्य भी प्रस्तुत किए हैं, जो अशोक को बौद्ध धर्म के अनुयायी के रूप में प्रमाणित करते हैं –

Ashokas policy of dhamma history of india

1)  अशोक ने भाब्रू अभिलेख में बौद्ध धर्म में उल्लेखित त्रि- रत्नों (बुद्ध,धम्म व संघ) के प्रति अपनी आस्था प्रकट की थी।
2)  अशोक के निगाली सागर अभिलेख से जानकारी मिलती है कि अशोक ने अपने शासन के 14वें वर्ष में इस क्षेत्र की यात्रा की थी तथा कनकमुनि बुध के स्तूप का  संवर्धन करवाया था।
3)  अशोक के रुम्मिनदेई अभिलेख से जानकारी मिलती है कि अशोक ने अपने शासन के 20वें  वर्ष रुम्मिनदेई  (लुंबिनी) की यात्रा की थी तथा यहां बुध के सम्मान में बलि नामक कर को समाप्त एवं भाग नामक कर को 1/6 से घटाकर 1/8 कर दिया था।
4) अशोक के समय में तृतीय बौद्ध संगीति का भी आयोजन किया गया था।
5) अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार हेतु विदेशों में धर्म प्रचारक भी भेजे थे।
 6) अशोक ने कई बौद्ध  स्तूपों, जैसे – सांची स्तूप, का निर्माण भी करवाया था।
 उपर्युक्त तथ्यों के आधार पर भी अशोक के धम्म  को महज बौद्ध धर्म नहीं माना जा सकता है। अशोक ने स्वर्ण को न तो बौद्ध धर्म के अनुयाई कहा और न ही उसने कभी बौद्ध धर्म को राजकीय धर्म घोषित किया। यहां तक कि अशोक ने बौद्ध धर्म के कतिपय सिद्धांतों एवं विचारों को तिलांजलि दे रखी थी। Ashokas policy of dhamma history of india
उदाहरणार्थ – उसने कभी – भी अपने उन लेखों में 4 आर्य सत्य एवं अष्टांगिक मार्ग का उल्लेख है नहीं किया। साथ ही अशोक के मानव – जीवन के परम लक्ष्य के संबंध में निर्वाण के बजाय स्वर्ग शब्द का प्रयोग किया है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि अशोक ने  न केवल बौद्ध, अपितु ब्राह्मणों तथा आजीविका के प्रति भी समान दृष्टिकोण अपनाया। अशोक ने बौद्ध भिक्षुओं के साथ-साथ ब्राह्मणों को भी दान दिए एवं आजीवको के निवास हेतु  गुफाओं का निर्माण करवाया। Ashokas policy of dhamma history of india
 अशोक भले ही व्यक्तिगत जीवन में बौद्ध धर्म के प्रति समर्पित रहा हो, किंतु उसका धम्म केवल बौद्ध सिद्धांतों तक सीमित नहीं था। वास्तव में अशोक का धम्म विभिन्न धर्मों से ली गई नैतिक बातों का संग्रह था। हमें अशोक की धम्म – नीति में जो भी बौद्ध प्रभाव दिखाई देता है, उसके पीछे प्रमुख कारण यह है कि तत्कालीन समय में बौद्धवाद् केवल एक धार्मिक आंदोलन न होकर एक सामाजिक आंदोलन भी था। अतः उस समय सामाजिक रुप से सजग किसी राजा के लिए इससे प्रभावित होना स्वाभाविक ही था।

  • अशोक की धम्म – नीति का वास्तविक स्वरूप एवं विशेषताएं

 अशोक के धम्म के वास्तविक स्वरूप एवं विशेषताओं को निम्नलिखित बिंदुओं के अंतर्गत देखा जा सकता है –
1) अशोक का धम्म विभिन्न धर्मों में विद्यमान अच्छे-अच्छे विचार का  संग्रह था। अशोक ने बौद्ध धर्म से नैतिकता व  आचार विचार ब्राह्मण धर्म से दंड  विधान व अनुशासन तथा आजीविकों से एंद्रजालिक पद्धति ली थी।
2) अशोक का धम्म वास्तव में एक आधार संहिता थी, जिसके अंतर्गत कई महत्वपूर्ण बातों पर बल दिया गया था, जैसे – माता पिता के प्रति आदर, गुरुजनों के प्रति सम्मान, दासों के प्रति नरम व्यवहार, गरीबों व भूखा के प्रति दयाभाव, पर्यावरण एवं पशुओं का संरक्षण, अल्पसंग्रह एवं अल्पवयय आदि। अशोक कहता है कि हमें सदैव सत्य  बोलना चाहिए, बोलने के संयम बरतना चाहिए, हमारे विचार सदैव शुद्ध हो तथा लोगों चाण्डालुता, निष्ठुरता, अहंकार, क्रोध एवं क्रूरता का अभाव होना चाहिए। Ashokas policy of dhamma history of india
3)  अशोक के धम्म का उद्देश्य मनुष्य का न केवल भौतिक, बल्कि आध्यात्मिक उत्थान करना भी था। अशोक के अभिलेखों में उल्लेखित है की धम्म नीति का पालन करने से ना केवल लोगों की भौतिक सुविधाओं में वृद्धि होगी, बल्कि उन्हें स्वर्ग भी प्राप्त होगा ।
4)  अशोक का धम्म अहिंसात्मक अवधारणा पर आधारित है। अशोक ने अपने प्रथम वृहद शिलालेख में पशु – हत्या पर प्रतिबंध लगाने संबंधी आदेश दिए थे।
5)  अशोक का धम्म अपने जिला लोककल्याणकारी अवधारणा पर आधारित था। अशोक के दूसरे वृहद शिलालेख से उसके लोककल्याणकारी कार्यों की जानकारी प्राप्त होती है।
6)  अशोक का धम्म पितृ सत्तात्मक – अवधारणा पर आधारित था। अशोक धौली अभिलेख में कहता है कि ‘सारी प्रजा मेरी संतान है’।
7)  अशोक का धम्म  सहज व सरल उपासना पद्धति पर आधारित था, जिसमें कर्मकांड एवं खर्चीली  पूजा –  पद्धति की कोई गुंजाइश नहीं थी।
8)  अशोक का धम्म सर्वधर्म – समभाव की भावना पर आधारित था। अशोक के 12वें  शिलालेख में उल्लेखित है कि संपूर्ण जनता अपने धर्म के सम्मान के साथ-साथ दूसरे के धर्मों का भी सम्मान करें। यदि कोई दूसरे के धर्म की आलोचना करता है, तो इससे उसके अपने ही धर्म की हानि होती है। Ashokas policy of dhamma history of india
9)  अशोक का धम्म विश्व – बंधुत्व की अवधारणा पर आधारित था। अशोक के धम्म  का स्वरूप ऐसा था, जिसे विश्व के किसी भी सभ्यता, संस्कृति या धर्म का पालन करने वाली जनता अपना सकती थी।
इस प्रकार अशोक का धम्म  एक आचार संहिता थी, जिसमें सर्वधर्म – समभाव, जनता का भौतिक एवं आध्यात्मिक उत्थान, जियो और जीने दो तथा विश्व – बंधुत्व की भावना समाहित थी !
  • अशोक द्वारा धर्म प्रचार – प्रसार हेतु किए गए उपाय
 अशोक के धम्म प्रचार के लिए अनेक उपाय किए गए थे, जैसे –
1) अशोक ने धम्म की प्रमुख बातों को स्तम्भ व शिलाओं पर खुदवाया तथा अपने पूरे साम्राज्य में स्थापित करवाया।
2)   धम्म प्रचार हेतु प्रयोग में लाए गए अभिलेखों की भाषा एवं लिपि, सामान्य जनता की पाली भाषा एवं स्थानीय लिपियां (ब्राह्म,खरोष्ठी, यूनानी एवं आरमेइक) थी, ताकि सभी लोग इन्हें पढ़ सके।
3)  अशोक ने  धम्म  के प्रचार – प्रसार हेतु अपने शासन के 14वें वर्ष धम्म – महामात्र की नियुक्ति की थी।
4)  अशोक के धम्म के प्रचार प्रसार हेतु सार्वजनिक गोष्ठियों का भी आयोजन करवाया था।
5) अशोक ने  धम्म के प्रचार-प्रसार हेतु विदेशों व पड़ोसी राज्यों में राजदूत भी भेजे थे।

• अशोक के धम्म की विफलता के कारण

अशोक द्वारा प्रतिपादित धम्म यद्यपि कई अर्थों में महत्वपूर्ण था, किंतु उसके धम्म  का प्रभाव सीमित रहा।  अशोक का धम्म बहुसंख्यक जनता को प्रभावित नहीं कर सका। वस्तुतः इसके पीछे निम्नलिखित कारण उत्तरदाई थे –
1) अशोक का कुशल प्रशासक था न कि महात्मा बुद्ध, महावीर आदि के समान धर्म संस्थापक।
2) अशोक के पास धम्म के प्रचार हेतु कोई योग्य सहयोगी नहीं था। उसके पास आनंद के समान कोई ऐसा कुशल शिष्य नहीं था, जो अपने गुरु के विचारों को जनता तक पहुंचा सके। Ashokas policy of dhamma history of india
3)  अशोक द्वारा धम्म प्रचार हेतु नियुक्त किए गए  धम्म – महामात्र नामक अधिकारी धम्म के वास्तविक स्वरूप को नहीं समझ सके। इन अधिकारियों ने अशोक के धम्म को बौद्ध धर्म ही माना तथा उसका प्रचार – प्रसार किया। इससे बौद्ध धर्म के विपरीत अन्य धर्म के अनुयायियों द्वारा तीव्र विरोध किया जाने लगा।
4)  मौर्यकालीन समाज परंपरावादी एवं रूढ़िवादी समाज था, जबकि अशोक के धम्म में निहित विचार नवीन एवं प्रगतिशील थे। अतः मौर्यकालीन समाज अशोक के धम्म का महत्व नहीं समझ सका।
 •  महत्व एवं उपयोगिता
अशोक के धम्म को यद्यपि अपेक्षित सफलता नहीं मिली, फिर भी इसे पूर्णताः विफल नहीं कहा जा सकता है। अशोक के शासनकाल में अहिंसावादी एवं सर्वधर्म – समभाव से प्रेरित धर्म की वजह से सामाजिक स्थिरता बनी रही तथा उसके शासन काल में जनता का कोई भी बड़ा विरोध नहीं हुआ। साथी अशोक के धम्म के प्रगतिशील विचारक प्रवृत्ति – शासकों को भी प्रभावित करते रहे अकबर के दीन- ए-इलाही धर्म में भी अशोक के धम्म के विचार देखे जा सकते हैं। यहां तक कि आधुनिक काल में भी पंचशील समझौते के अंतर्गत अशोक के धम्म में उल्लेखित शांतिपूर्ण सहअस्तित्व जैसे विचारों को शामिल किया गया है। Ashokas policy of dhamma history of india
दोस्तों यह तो थी मौर्यकालीन धर्म /अशोक की धम्म – नीति (Ashokas policy of dhamma history of india) के बारे में जानकारी, अगले पोस्ट में हम आपको मौर्य साम्राज्य के पतन के क्या कारण  के बारे में विस्तार से बताएंगे तो बने रहिए Upsc Ias Guru .Com के साथ 🙂 

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