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मौर्यकाल (322 ई. पू. – 185 ई. पू.) – संपूर्ण जानकारी के नोट्स
मौर्यकालीन राजनीतिक / प्रशासनिक व्यवस्था notes
मौर्यकालीन सामाजिक व्यवस्था और आर्थिक व्यवस्था संपूर्ण जानकारी हिंदी में
मौर्यकालीन धर्म /अशोक की धम्म – नीति
यह पोस्ट मौर्य काल के नोट्स की अंतिम पोस्ट है जिसमें हम आपको मौर्य काल के पतन के कारणों के बारे में बताएंगे
मौर्य साम्राज्य का पतन – DECLINE OF THE MAURYA DYNASTY maurya samrajya ka patan
चंद्रगुप्त मौर्य, एवं अशोक ने जिस विस्तृत साम्राज्य की स्थापना की थी, उसे साम्राज्य का अशोक की मृत्यु के पश्चात केवल 52 वर्षों में पतन हो गया। मौर्य साम्राज्य के पालन हेतु निम्नलिखित कारण उत्तरदाई थे –
• ब्राह्मणों की प्रतिक्रिया
हरप्रसाद शास्त्री के अनुसार अशोक द्वारा बौद्ध मतों पर आधारित धम्म – नीति को लागू करने से ब्राह्मणों के हित प्रभावित हुए। अशोक की धम्म – नीति में यज्ञ एवं पशु बलि को हतोत्साहित किया गया था, जबकि इन्हीं के माध्यम से ही ब्राह्मणों को धन एवं सम्मान प्राप्त होता था। इसकी प्रतिक्रिया स्वरुप उपजे ब्राह्मणवादी और संतोष में मौर्यवंश के अंतिम शासक वृहद्त्त की हत्या उसके ब्राह्मण सैनिक पुष्पमित्र शुंग द्वारा कर दी गई थी। इस प्रकार वृहदत्त की हत्या के साथ मौर्य साम्राज्य का अंत हो गया।
• अशोक की शांति वादी एवं अहिंसा वादी नीति
हेमचंद्र रायचौधरी के अनुसार अशोक ने कलिंग युद्ध के बाद भेरीघोष (युद्ध विजय) की नीति का त्याग कर धम्मघोष (धम्म विजय) की नीति अपनाई थी। साथ ही अशोक ने अहिंसा पर अत्यधिक बल देते हुए पशु हत्या पर भी प्रतिबंध लगा दिया था। अशोक कि इस शांतिवादी एवं अहिंसावादी नीति के कारण मौर्य राज्य की सैनिक शक्ति कमजोर होती गई । इसके परिणाम स्वरूप मौर्य साम्राज्य, आंतरिक व ब्राह्म खतरो का सफलतापूर्वक सामना नहीं कर सका तथा उसका पतन हो गया। Decline of Mauryan Empire or maurya samrajya ka patan
• वित्तीय संकट
डी डी कोसांबी के अनुसार विस्तृत नौकरशाही एवं लोककल्याणकारी कार्यों की वजह से मौर्य साम्राज्य का राजकीय खजाना खाली होता गया। निरंतर कमजोर होती आर्थिक स्थिति के कारण परवर्ती मोर्ये शासकों के द्वारा विस्तृत साम्राज्य पर प्रभावी नियंत्रण बनाए रखना मुश्किल हो गया था, परिणाम स्वरूप मोर्य साम्राज्य का पतन हो गया।
• अति केंद्रीय कृत शासन व्यवस्था
रोमिला थापर के अनुसारमौर्य प्रशासन का स्वरूप अत्यधिक केंद्रीकृत था। अतिकेंद्रीकृत व्यवस्था में कर्मचारियों की निष्ठा राज्य के प्रति नहीं, बल्कि राजा के प्रति होती थी। साथ ही अतिकेंद्रीकृत व्यवस्था के संचालन हेतु राजा का योग्य होना आवश्यक था, परंतु अशोक के उत्तराधिकार दुर्बल एवं अयोग्य थे। इससे वे ना तो अतिकेंद्रीकृत प्रशासनिक व्यवस्था का संचालन कर सके और ना ही साम्राज्य के विघटन की प्रक्रिया को रोक सके। परिणाम स्वरूप मौर्य साम्राज्य का पतन हो गया।
निष्कर्षत: यह कहा जा सकता है कि मौर्य साम्राज्य के पतन में इनमें से किसी एक कारण का नहीं, बल्कि सभी कारणों का सम्मिलित उत्तरदायित्व रहा होगा। वस्तुतः अशोक की धम्म नीति , शांतिवादी नीति, लोककल्याणकारी नीति एवं विस्तृत व केंद्रीकृत नौकरशाही व्यवस्था से उपजे आर्थिक संकट का सामना परवर्ती अयोग्यमौर्य शासक नहीं कर पाए। इसी दौरान लोहे के ज्ञान एवं वाणिज्य व्यापार के विकास के परिणाम स्वरूप मौर्य साम्राज्य में शामिल दूरस्थ क्षेत्र (मध्य भारत, दक्कन, कलिंग आदि) की सैनिक एवं आर्थिक शक्ति में बरोतरी हुई थी। इन दूरस्थ राज्यों ने परवर्ती मौर्य शासकों की कमजोरी का लाभ उठाते हुए अपनी स्वतंत्र सत्ता स्थापित कर ली थी। इसके प्रमाण के रूप में यह देखा जा सकता है कि मौर्य साम्राज्य के पतन के उपरांत मध्य भारत, दक्कन एवं कलिंग में क्रमशः शुंग व कण्व , सातवाहन एवं चेदी वंश के राज्यों की स्थापना हुई। इसी दौरान उत्तर पश्चिम सीमा प्रांत से विदेशी आक्रमण को भी प्रोत्साहन मिला होगा, जिसका सामना भी परवर्ती कमजोर मौर्य शासक नहीं कर सके तथा मौर्य साम्राज्य का पतन हो गया। Decline of Mauryan Empire or maurya samrajya ka patan
यह तो थी मौर्य काल के नोट्स अगले पोस्ट से हम आपको मौर्योत्तर काल (200 ई. पू. से 300 ई. ) तक के बारे में विस्तार से बताएंगे तो बने रही Upsc Ias Guru .Com के साथ 🙂