ऋग्वैदिक काल / उत्तरवैदिक का धार्मिक जीवन

हेलो दोस्तों, स्वागत है आपका Upsc Ias Guru .Com पर, इस पोस्ट में हम आपको उत्तर वैदिक काल का धार्मिक जीवन के बारे में जानकारी देंगे 

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ऋग्वेद काल का धार्मिक जीवन

इस काल के धार्मिक जीवन की जानकारी ऋग्वेद से प्राप्त होती है ऋग्वेद वैदिक कालीन धर्म, धर्म के विकास की आरंभिक अवस्था को इंगित करता है इसके अंतर्गत मनुष्य प्रकृति के नियमों एवं शक्तियों को नहीं समझ सका उसका उसने दैवीकरण कर दिया। इस प्रकार ऋगवैदिक धर्म का स्वरूप प्रकृतिवादी थी। यही कारण है कि इस  काल में हमें वर्षा के देवता इंद्र, अग्नि के देवता अग्नि, वायु के देवता वायु आदि का उल्लेख मिलता है। इनमें से आर्यों के सबसे महत्वपूर्ण देवता इंद्र थे, इंद्र को युद्ध का देवता एवं पुरंदर (दुर्गों को तोड़ने वाला) भी कहा जाता था। इंद्र के सम्मान में ऋग्वेद में सर्वाधिक 250 सूक्त हैं।  वरुण देवता को ऋतसयगोपा  कहां जाता था जिसका अर्थ है नैतिक -आचरण का संरक्षक। Religious status of rigvedic notes in hindi

ऋगवैदिककालीन धर्म में पुरुष भाव की प्रधानता दिखाई देती है इस काल में पुरुष देवताओं की तुलना में स्त्री देवियों का द्वितीयक महत्व था उदाहरणार्थ ऋग्वेद में वर्णित है कि इंद्र ने विपाशा नदी के किनारे उषा के रथ के टुकड़े टुकड़े कर दिए। इसका प्रतिक्रात्मक अर्थ था – पुरुष देवताओं की तुलना में स्त्री देवियों की निम्न स्थिति। 

इस काल के धर्म में बहुदेववाद के  साक्ष्य प्राप्त होते हैं आर्य एक से अधिक देवी-देवताओं में विश्वास करते थे। हालांकि इस काल के अंतिम चरण में हमें एकेश्वरवाद के दर्शन भी दिखाई देने लगते हैं।  ऋग्वेद में उल्लेखित है कि सत्य एक ही है भले ही उसके नाम अलग-अलग हैं।       

ऋगवैदिक धर्म में स्थान विशेष के आधार पर देवताओं का वर्गीकरण किया गया था,जैसे-  पृथ्वी के देवता: अग्नि, सोम ,पृथ्वी, आदि अंतरिक्ष के देवता: इंद्र ,वायु, मरुत आदि एवं आकाश के देवता: द्यो,  वरुण ,मित्र आदि। Religious status of rigvedic notes in hindi

इस काल के धर्म में यद्यपि कर्मकांडो का प्रचलन प्रारंभ हो गया था, किंतु अभी आराधना की मुख्य रीति प्रार्थनाएं एवं  स्तुति पाठ करना था।  इस काल में धार्मिक क्रियाकलाप का उद्देश्य पारलौकिक सुख की प्राप्ति नहीं,वरन् भौतिक सुख की प्राप्ति था। ऋग्वेद में हमें स्वर्ग नरक,मोक्ष ,आत्मा आदि के स्पष्ट साक्ष्य प्राप्त नहीं होते हैं। 

उत्तरवैदिक काल का धार्मिक जीवन

 इस काल के धार्मिक जीवन की जानकारी सामवेद यजुर्वेद अथर्ववेद, ब्राह्मण, अरण्यक एवं उपनिषद ग्रंथों से प्राप्त होती है।  उत्तर वैदिक काल के धर्म में मुख्यतः 3 परिवर्तन हुए- देवताओं की महत्ता में परिवर्तन, आराधना की नीति में परिवर्तन ,एवं धार्मिक उद्देश्यों में परिवर्तन।          

उत्तर वैदिक काल में प्रजापति को सर्वोच्च स्थान प्राप्त हो गया रुद्र एवं विष्णु का महत्व भी बढ़ गया जबकि वरुण एवं पूषण का महत्व कम हो गया। इस काल में यद्यपि मूर्ति पूजा का आभास मिलता है किंतु वास्तविक अर्थ में मूर्ति पूजा का प्रचलन गुप्त काल में ही माना जाता है।          

उत्तरवैदिक काल में आराधना की रीति में स्तुति पाठ व प्रार्थना ओं की जगह यज्ञ का महत्व बढ़ गया था यज्ञों में शुद्ध उच्चारण का विशेष महत्व था तथा बड़े पैमाने में पशु बलि दी जाती थी इस काल में प्रचलित महत्वपूर्ण यज्ञ थे-  राजसूय यज्ञ (राजा के राज्यभिषेक  से संबंधित), अश्वमेघ यज्ञ (साम्राज्य विस्तार हेतु) वाजपेय यज्ञ (रथ का आयोजन) आदि। Religious status of rigvedic notes in hindi

इस काल में धार्मिक उद्देश्यों में भी हमें परिवर्तन दिखाई देता है अब अलौकिक के साथ-साथ पर अलौकिक उद्देश्य भी महत्वपूर्ण हो गए। इसी काल में सर्वप्रथम शतपथ ब्राह्मण में पूर्ण जन्म तथा उपनिषदों में ब्रह्म आत्मा एवं मोक्ष का उल्लेख मिलता है।      

इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि उत्तरवैदिक काल के धर्म में कुछ ऐसे महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए जिसने वर्तमान काल के धर्म का स्वरूप निश्चित कर दिया था। साथ ही इस काल के यज्ञों में अत्यधिक मात्रा में पशु बलि दिए जाने के कारण शीघ्र ही इनके विरुद्ध कुछ धार्मिक संप्रदायों जैसे बौद्ध एवं जैन संप्रदाय का उद्भव संभव हो सका। Religious status of rigvedic notes in hindi

दोस्तों मुझे आशा है कि आप लोग को हमारी ऋगवैदिक और वैदिक काल की नोट्स बहुत ही पसंद आए होंगे और इसमें हमने बहुत ही विस्तार में सारे टॉपिक्स को कवर किया था। अगली पोस्ट से हम आपको छठी सदी ईसा पूर्व से तीसरी सदी ईसा पूर्व तक के इतिहास के बारे में जानकारी देंगे तो बने रहिए Upsc Ias Guru .Com के साथ 🙂

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