UPSC IAS mains GS Paper 4 All topics Notes

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General studies paper – 4 notes 

Part – 8

Topic – लोकसेवा की अवधारणा स्पष्ट करें, उत्तरदायित्व का अर्थ और प्रकार,लोक प्रशासन में पारदर्शिता


-लोकसेवा की अवधारणा स्पष्ट करें ।

-लोक सेवाओं को सामान्यता सरकार द्वारा संयोजित ऐसी नागरिक सेवाओं के रूप में परिभाषित किया जाता है जो सरकार की योजनाओं तथा कार्यक्रमों को व्यवहारिक रूप प्रदान कर सके आमतौर पर लोकसेवा से अभिप्राय सरकारी तंत्र के उस शाखा से होता है जिसका सरोकार कानून बनाना नहीं बल्कि कानून लागू करना होता है सरकार की कार्यपालिका शाखा के 2 हिस्से होते हैं मंत्री गण तथा लोक सेवक लोक सेवक मंत्रियों के आदेशों पर अमल करते हैं और उन्हें नीति निर्माण में सलाह देते हैं ग्लेडेन के अनुसार लोकसेवा एक महत्वपूर्ण सरकारी प्रतिष्ठान का नाम है जिसके अंतर्गत राज्य की केंद्रीय प्रशासन के कर्मचारी आते हैं इतना ही नहीं इसका अर्थ उस भावना से है जो आधुनिक लोकतंत्र की सफलता के लिए तथा अपना जीवन समाज की सेवा में प्रतिष्ठान करने वाले लोक कर्मचारियों में व्यवसाय आदर्श के लिए आवश्यक है प्रशासनिक हलकों में सार्वजनिक सेवाओं का अधिक व्यापक अर्थ इस दृष्टि से है कि लोक कर्मियों के अतिरिक्त उनके अंतर्गत ऐसे कर्मचारियों को भी गणना कर ली जाती है जो सार्वजनिक क्षेत्र के प्रतिष्ठानों में राष्ट्रीय कृत बैंकों तथा पूर्व अथवा आंशिक रूप से सरकार से सहायता प्राप्त सरकारी संगठनों में काम करते हैं जबकि लोक सेवाओं से संबंधित पदों पर आसीन व्यक्तियों को वेतन संचित भारतीय निधि से मिलता है अन्य को इस प्रकार वेतन नहीं मिलता ब्रिटेन में उनका साम्राज्य के ऐसे सेवकों के रूप में देखा जाता है जो राजनीतिक और न्यायिक पद से पृथक लोक सेवाओं के लिए नियुक्त हैं और संसद द्वारा पारित बजट से जिनको वेतन की प्राप्ति होती है संक्षेप में एच फायनर के अनुसार लोक सेवा स्थाई वेतन भोगी कर्मीको का एक व्यवसायिक निकाय है उसने ब्रिटेन लोक सेवा का तीन श्रेणी में वर्गीकरण किया है प्रशासनिक नीति निर्माण और कार्यान्वयन तकनीकी वैज्ञानिक विशेषक्रित श्रेणियां डॉक्टर इंजीनियर और निष्पादन करने वाले जो सामान्य व्यवहारिक क्रियाकलाप द्वारा पहली दो श्रेणियों के आदेशों का अमल में लाते हैं विकासशील देशो में लोक सेवा राजनीतिक आधुनिकीकरण का महत्वपूर्ण अभिकरण है सुसम्बंध और सुसंगठित सार्वजनिक अधिकारी तंत्र जनवाद के लिए पूर्व शर्त है यह सरकारी तंत्र को स्थिरता और निरंतरता प्रदान करता है लोकसेवा विशेषज्ञता विकास और नेतृत्व क्षमता जैसे विशेष गुणों का सामंजस्य है यह सामान्य से लोकसेवा को स्वतंत्र और प्रभावी रीति से चलाने में सहायक होता है। UPSC IAS mains GS Paper 4 All topics Notes

– उत्तरदायित्व का अर्थ और प्रकार

उत्तरदायित्व की अवधारणा प्रशासकों की योग्यता को परिभाषित करती है जिसके अंतर्गत उनको अपने कार्य निष्पादन का और उन्हें प्रदान की गई शक्तियों के प्रयोग के ढंग का संतोषजनक लेखा-जोखा देना होता है प्रशासनिक प्रक्रिया के अंतर्गत उत्तरदायित्व निम्न तीन प्रकार के होते हैं

-संस्थागत उत्तरदायित्व

एक प्रशासनिक संस्था का यह दायित्व है कि वह कल्याण के प्रति संवेदनशील रहे क्योंकि जनहित में कार्य करना और उसके प्रति उत्तरदाई रहना ही उसके प्रशासनिक संस्थान स्वयं के हित में है अन्यथा व लंबे समय तक स्थिर नहीं रह पाएगी ।

-व्यवसायिक उत्तरदायित्व

वर्तमान में विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ और लोग वकील डॉक्टर इंजीनियर प्रशासनिक सेवाओं में आ रहे हैं उनके व्यवसाय के कुछ नियम मान्यताएं और आचरण होते हैं अपने कर्तव्य निर्वाह के दौरान इनके द्वारा मान्यताओं और आचरण का अनुपालन आवश्यक होता है ।

-राजनीतिक उत्तरदायित्व

राजनीतिक उत्तरदायित्व संसदीय शासन व्यवस्था के अंतर्गत सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रशासनिक नियंत्रण होता है मंत्रिमंडल का प्रत्येक मंत्री अपने मंत्रालय और उससे सबन्ध  विभागों की कार्यप्रणाली हेतु उत्तरदायी होता है इसलिए प्रशासनिक अधिकारियों को चाहिए कि वे राजनीतिक उत्तरदायित्व को सफल बनाने हेतु उसके नीतिगत कार्यक्रमों को अपना पूर्ण सहयोग प्रदान करें । UPSC IAS mains GS Paper 4 All topics Notes

-21 वी शताब्दी में उत्तरदायित्व और नियंत्रण का महत्व प्रशासन के कार्य क्षेत्र और भूमिका के निरंतर जारी होने के कारण उत्तरदायित्व और नियंत्रण का महत्व बढ़ रहा है अच्छे अभिशासन की खोज और खुले उत्तरदायित्व प्रशासन की मांग के कारण मानव अधिकारों पर बढ़ती विश्वव्यापी चर्चा तथा मानवाधिकारों के संरक्षण की मांग के कारण जनप्रतिनिधियों के निराशाजनक आचरण और सेवा भावना की कमी के कारण सतत विकास और पर्यावरण की आवश्यकता के कारण लोक कल्याण विचारधारा के उदय के कारण समष्टि सामाजिक उत्तरदायित्व के कारण प्रशासन ने भी उत्तरदायित्व का महत्व बढ़ा है नव लोक प्रबंधन के कारण स्वायत्तता उत्तरदायित्व का मुद्दा तेजी से उभरा है नव लोक प्रशासन के आदेशों को प्राप्त करने के लिए प्रशासन में उत्तरदायित्व का होना आवश्यक है राज्य पश्च गमन जैसे सामाजिक क्षेत्र में उत्तरदायित्व निभाने लोक प्रशासन के लिए आवश्यक है ।

 

– लोक प्रशासन में पारदर्शिता

पारदर्शिता शब्द का प्रयोग खुलापन और जवाबदेही के अर्थ में प्रयोग किया जाता है एक संगठन को पारदर्शी माना जाता है जब इसके निर्णय निर्माण और काम करने का ढंग जनता के लिए मीडिया की छानबीन के लिए और सार्वजनिक चर्चा के लिए खुला प्रशासन की एक पारदर्शी व्यवस्था सरकार के निर्णय में जनता द्वारा सहभागी होने में सहायता करती है और इस प्रकार उसका कार्य प्रजातंत्र तथा योगदान समाज के निचले स्तर तक हो जाता है भारत में सूचना अधिकार अधिनियम 2005 के अधिनियम के साथ प्रशासन में पारदर्शिता की ओर एक मुख्य कदम उठाया पारदर्शिता की आवश्यकता क्यों है सुशासन के लिए भ्रष्टाचार की रोकथाम के लिए लोकतंत्र को सफल बनाने में क्रियाशील प्रशासनिक प्रणाली के लिए निर्णय में सुधार के लिए सहभागिता के प्रभावकारी साधन के रूप में पारदर्शिता के साधन सूचना का अधिकार सूचना की तकनीक का प्रयोग प्रशासन निष्ठा के लिए करार नैतिक चिंताएं और सुविधाएं

-नैतिक शास्त्र की विभिन्न परिभाषाएं तथा विभिन्न सिद्धांत यह संकेत करते हैं कि लोग एक साथ कई विकल्पों का सामना करते हैं जहां उन्हें निर्णय लेना पड़ता है जो दूसरों के साथ संबंध के परिप्रेक्ष्य में उन्हें नैतिक जीवन जीने के लिए प्रेरित करता है यह व्याख्या करता है कि लोग नैतिक दुविधा का सामना कर सकते हैं नैतिक दुविधा उस परिस्थितियों से उत्पन्न होती है जहां प्रतिस्पर्धी सिद्धांतों के समूह में से चुनाव करना पड़ता है इस प्रकार एक नैतिक दुविधा को उस परिस्थिति के रूप में वर्णित किया जा सकता है जो कि सामान्यता दी गई अवांछनीय दयनीय स्थिति में प्रतिस्पर्धी सिद्धांतों के समूह में से चुनाव करना होता है हित संघर्ष संभवत सर्वाधिक प्राकृतिक उदाहरण है जो सार्वजनिक क्षेत्र के नेतृत्व को नैतिक दुविधा में डाल सकता है क्रेस्टन और एनरिच के अनुसार कुछ अन्य प्रकार की नैतिक दुविधा है जिनमें लोक सेवक खुद को पा सकते हैं शामिल है लोक प्रशासन के मूल्यों के बीच के टकराव संस्थानों के लिए औचित्य आचार संहिता के विभिन्न पहलू निजी मूल्य और पर्यवेक्षक या सरकारी निर्देश पेशा गत नैतिकता और पर्यवेक्षक या सरकारी निर्देश निजी मूल्य और पेशा गत नैतिकता बनाम सरकारी निर्देश प्रतिस्पर्धा उत्तरदायित्व तथा नैतिक आचरण के विभिन्न पहलू । UPSC IAS mains GS Paper 4 All topics Notes

-लोक सेवकों द्वारा सामना किए जाने वाले नैतिक दुविधाए लोकसेवक जिन प्रमुख नैतिक सुविधाओं से दैनिक स्तर पर रूबरू होते हैं वह निम्न बिंदुओं के इर्द-गिर्द घूमता है प्रशासनिक भ्रष्टाचार भाई भतीजावाद प्रशासनिक गोपनीयता सूचना रिसाव लोक उत्तरदायित्व नीतिगत दुविधा ।

-नैतिक तर्क आमतौर पर तार्किकता का आशय उपलब्ध तथ्यों के आधार पर सर्वाधिक उपयुक्त तथ्य पर पहुंचना है जबकि नीति शास्त्र या नैतिकता का आशय मानव व्यवहार के सही और गलत से है इसलिए नैतिक तर्क का अर्थ होगा मानव जीवन के लिए सही और गलत के संदर्भ में उपयुक्त नैतिक विकल्पों का विकास करना है इस प्रक्रिया में नैतिकता के तत्वों जैसे ईमानदारी सत्यनिष्ठा जवाबदेही कार्य के प्रति प्रतिबद्ध खुलापन और गैर भेदभाव वाला व्यवहार आदि मार्गदर्शन करते हैं एक लोक सेवक के लिए अनिवार्य रूप से आवश्यक है कि वह व्यक्तिगत हित को स्थापित करने वाले मूल्यों की जगह सार्वजनिक को बढ़ावा देने वाले विकल्पों का चयन करें इस प्रक्रिया में नैतिक तर्क उसका मार्गदर्शन करती है नैतिक तर्क की प्रक्रिया नैतिक तर्क की प्रक्रिया से निम्न तर्को का पालन किया जाना चाहिए ।

-सही और गलत का आचरण का निर्धारण नैतिक तर्क विकास की प्रक्रिया में प्रथम समाज में उससे संबंधित सही और गलत की अवधारणा का पता करना शामिल है इससे हमें पता चलता है कि समाज में किसी विशेष विषय में कौन सी अवधारणा प्रचलित है और उसे सही गलत का दर्जा प्राप्त है । UPSC IAS mains GS Paper 4 All topics Notes

-उपयुक्त तर्कों का नैतिकता से तुलना नैतिक तर्क की प्रक्रिया के प्रथम चरण में ज्ञात किए गए सही और गलत आचरण की नैतिकता के तत्व जैसे ईमानदारी सत्यनिष्ठा खुलापन भेदभाव से तुलना की जाती है इस प्रक्रिया में हमें नैतिक रूप से स्वीकार्य तर्क प्राप्त होते हैं स्वीकार्य तर्क या विकल्पों का अंगीकरण इस चरण में नैतिक रूप से समाज में स्वीकार्य विकल्पों का चयन किया जाता है और यहीं पर नैतिक तर्क की प्रक्रिया पूर्ण हो जाती है यदि एक ही नैतिक विकल्प उपलब्ध हो तो ऐसा नहीं होने की स्थिति में नैतिक दुविधा उत्पन्न हो जाती है।

– नैतिक तर्क के कार्य भूमिका वर्तमान समय में समाज में कई चुनौतियां रिश्वतखोरी भ्रष्टाचार प्रशासनिक दायित्व में कमी चरित्र गिरावट नियम उल्लंघन की प्रवृत्ति आदि का सामना कर रहा है इस संदर्भ में नैतिक तर्क की भूमिका है कि हमें समाज को ज्यादा फायदा पहुंचाने वाले विकल्प और समाज के लिए हानिकारक विकल्पों को पहचानने में मदद करता है इसी के साथ लोक सेवक अपनी कार्ययोजना जिम्मेदारी को बेहतर तरीके से निष्पादित कर सकते हैं साथ ही एक आम व्यक्ति के लिए भी इसकी इतनी उपयोगिता है इससे सामाजिक लक्ष्य को प्राप्त करना अधिक सुविधजनक बन जाता है तथा समाज में शांति सौहार्द और समानता निर्माण में सहायता मिलती है।

-नैतिक तर्क और व्यक्तिगत अधिकार जहां नैतिक तर्क समाज में सार्वजनिक सुख को बढ़ावा देता है वहीं दूसरी और व्यक्तिगत अधिकार व्यक्ति के गरिमापूर्ण जीवनके लिए आवश्यक है इन दोनों की बेहतर सन्तुलन की आवश्यकता होती है लेकिन कई बार ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न हो जाती है जिससे कि नैतिक तर्क और व्यक्तिगत अधिकारों में संघर्ष उत्पन्न हो जाता है इस दशा में सार्वजनिक हित के लिए और सामूहिक को बढ़ावा देने के लिए व्यक्तिगत अधिकारों को छोड़ा जाना चाहिए । UPSC IAS mains GS Paper 4 All topics Notes

-नैतिक तर्क और कानून कानून का सामान्य अर्थ है या राज्य द्वारा आधिरोपित वे मान्यताएं जिन के उल्लंघन से समाज में अव्यवस्था या अस्थिरता उत्पन्न हो सकती है इसलिए इनका पालन अनिवार्य और उल्लंघन दंडनीय बनाया जाता है नैतिकता के कई पहलू ऐसे हैं जिनका कानून की परिभाषा से संघर्ष हो सकता है इन दशाओं के कानून का अनुपालन किया जाना चाहिए यह प्रश्न आवश्य उठता है कि जब कानून और नैतिक तर्क दोनों का ही उद्देश्य सार्वजनिक हित को बढ़ावा देना है तो फिर कानून को ही क्यों वरीयता दी जाए और इसका जवाब है कानून जहा प्रक्रियागत समानता स्थापित करता है वही नैतिक तर्क में समय देश काल के हिसाब से परिवर्तन हो सकता है और सिर्फ नैतिक तर्क को वरीयता देने से हर बार निर्णय लेना तो समाज के हित में नहीं लिए जाने की संभावना रहती है इसलिए कानून को वरीयता दी जानी चाहिए। UPSC IAS mains GS Paper 4 All topics Notes


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